Sunday, November 8, 2020

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कहानी- प्रसंग महात्मा गांधी और आचार्य कृपलानी से जुड़ा है। आचार्य कृपलानी का पूरा नाम जेबी कृपलानी था। वे हमारे देश के एक बहुत बड़े और पढ़े-लिखे नेता थे। एक दिन आचार्य कृपलानी गांधीजी की सभा में गए। गांधीजी जब भी कोई सभा करते थे तो वे शुरुआत में प्रार्थना जरूर करवाते थे। कृपलानी अनमने से बैठे हुए थे, क्योंकि वे नास्तिक थे इसलिए प्रार्थना में उनकी रुचि नहीं थी।

कृपलानी सोच रहे थे कि गांधीजी प्रार्थना कराएंगे तो इसका मतलब भगवान से बात करेंगे और भगवान को मैं मानता नहीं हूं। ये तो टाइम का वेस्टेज है, लेकिन गांधीजी के लिए प्रार्थना का अर्थ भगवान से कुछ मांगना नहीं था, उनके लिए प्रार्थना मनोबल बढ़ाने की एक प्रक्रिया थी।

गांधीजी ने जैसे ही प्रार्थना शुरू की, पूरा माहौल धार्मिक हो गया। कृपलानी को लगा कि अब ये प्रवचन देंगे। क्या हम किसी मंदिर में बैठे हैं? क्या हम धर्म का काम करने आए हैं? हमें देश आजाद कराना है और ये प्रार्थना करा रहे हैं, लेकिन उस प्रार्थना के बाद जो माहौल बना और गांधीजी ने जब अपनी बात बोली तो बात पूरी राजनीतिक थी।

प्रार्थना के प्रभाव से लोगों की एक्सेप्टेबिलिटी बढ़ गई, उनकी मोरेलिटी जाग गई, जो उस समय सबसे अधिक जरूरी थी। गांधीजी की सभा का ये दृश्य देखकर कृपलानी मान गए कि इस सभा में प्रार्थना का जो प्रयोग किया गया है, उसके प्रभाव से मेरे जैसा नास्तिक भी राष्ट्रभक्ति का प्रसाद लेकर उठा। इसलिए, गांधी का कहा हुआ ये शब्द रामराज्य आज तक प्रासंगिक है। गांधीजी के रामराज्य में राम शब्द अतीत है, जो बीत गया है। राज्य भविष्य है और राष्ट्रभक्ति वर्तमान है।

सीख- आप किसी भी सिस्टम में काम करें। अपने देश के लिए नियम और कानून का पालन करें और देश को क्या अच्छा दे सकते हैं, ऐसा सोचने के लिए रामराज्य को समझना होगा। हमें गांधीजी के प्रार्थना जैसे प्रयोग को अपने हर काम की शुरुआत में करना चाहिए।

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