Saturday, May 9, 2020

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पीएम केयर्स फंड को लेकर एक बार फिर सरकार को घेरा है। शनिवार को राहुल ने कहा- पीएम केयर्स फंड में रेलवे जैसे कई पीएसयू से काफी पैसा जमा हुआ है। प्रधानमंत्री इसका ऑडिट कराएं और इसकी जानकारी जनता को दें।
यह पहली बार नहीं जब राहुल ने पीएम केयर्स फंड को मिले पैसे की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है। इसके पहले शुक्रवार को उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीडिया से बातचीत की थी। तब भी उन्होंने यही मांग रखी थी।

दान और खर्च की जानकारी दें प्रधानमंत्री
शनिवार रात किए ट्वीट में राहुल गांधी ने कहा, “पीएम केयर्स फंड में पीएसयू और रेलवे जैसी अहम सार्वजनिक सेवाओं ने काफी योगदान दिया है। ये जरूरी है कि प्रधानमंत्री इस फंड का ऑडिट कराएं। इसके अलावा उन्हें इस फंड में आए डोनेशन और इसके खर्च का हिसाब भी जनता के सामने लाना चाहिए।”

कैग नहीं करेगा जांच
राहुल सरकार से बार-बार पीएम केयर्स फंड को मिले दान और इसके खर्च का हिसाब मांग रहे हैं। दूसरी तरफ, इस तरह की खबरें हैं कि कोरोना के खिलाफ जंग में मदद के लिए बनाए गए इस फंड की जांच कैग (नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक) नहीं कर सकता। न्यूज एजेंसी के मुताबिक, कैग ने भी साफ कर दिया है कि चूंकि ये पैसा मुख्य रूप से डोनेशन से आया है, लिहाजा उसे इसके ऑडिट का अधिकार नहीं है। राहुल ने शुक्रवार को कहा था- पीएम केयर्स फंड का तुरंत ऑडिट कराया जाना चाहिए। देश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि डोनेशन देने वाले लोग कौन हैं, और उन्होंने कितना दान दिया है।



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राहुल गांधी ने कहा है कि कोरोनावायरस से जंग के लिए बने पीएम केयर्स फंड को मिले डोनेशन की जांच होनी चाहिए और इसकी जानकारी जनता के सामने लानी चाहिए। (फाइल)


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लॉकडाउन खत्म होने के बाद उद्योगों के शुरू होने को लेकर सरकार ने रविवार को नई गाइडलाइन जारी की है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, किसी भी यूनिट में काम शुरू होने के पहले हफ्ते को ट्रायल या टेस्ट रन माना जाए। कारखानों में सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित किया जाए। किसी भी रूप में ज्यादा उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित न करें।



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लॉकडाउन का तीसरा फेज 17 मई को खत्म हो रहा है। केंद्र सरकार ने ऑरेंज और ग्रीन जोन में उद्योगों को शुरू करने की छूट दी है।


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लॉकडाउन खत्म होने के बाद उद्योगों के शुरू होने को लेकर सरकार ने रविवार को नई गाइडलाइन जारी की है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, किसी भी यूनिट में काम शुरू होने के पहले हफ्ते को ट्रायल या टेस्ट रन माना जाए। कारखानों में सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित किया जाए। किसी भी रूप में ज्यादा उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित न करें।



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लॉकडाउन का तीसरा फेज 17 मई को खत्म हो रहा है। केंद्र सरकार ने ऑरेंज और ग्रीन जोन में उद्योगों को शुरू करने की छूट दी है।


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कोरोनावायरस की वजह से अमेरिका दुनिया का सबसे प्रभावित देश है।पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने महामारी की वजह से देश के बुरे हालात के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने इसेअराजक आपदा करारदिया।

ओबामा के पूर्व कर्मचारियों के साथ बातचीत का वीडियो कॉल लीक

अल जजीरा के मुताबिक, ओबामा के साथ शुक्रवार को हुई बातचीत का वेब कॉल लीक हो गया। इसका वीडियो सबसे पहले याहू न्यूज को मिला, जिसमें उन्होंने अपने पूर्व कर्मचारियों से नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन का साथ देने का आग्रह किया।

हमारी लड़ाई कई चीजों के खिलाफ है: ओबामा

ओबामा ने कहा कि हम जिन चीजों के खिलाफ लड़ रहे हैं, वह है स्वार्थी, पिछड़ा, विभाजित होना और एक-दूसरे को दुश्मन के रूप में देखना। यह सब अमेरिकियों की जिंदगी में गहराई से शामिल होता जा रहा है। इसी वजह से वैश्विक संकट के लिए उठाए जा रहे कदम अनैतिक और दागदार है। यह अच्छी सरकारों के साथ भी बुरा होता। यह पूरी तरह से एक अराजक आपदा रही है।

अमेरिका में महामारी से अब तक 80 हजार से ज्यादा जान जा चुकी है, जबकि 13 लाख 47 हजार संक्रमित हैं। कोरोना से निपटने में नाकाम रहने पर ट्रम्प प्रशासन की आलोचना की जा रही है। कहा जा रहा है कि राज्यों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।



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महामारी से निपटने में नाकाम रहने पर ट्रम्प की आलोचना हो रही है। (राष्ट्रपति ट्रम्प और पूर्व राष्ट्रपति बराक आबोमा फाइल फोटो)


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आज दुनियाभर में विभिन्न व्यवसायों से जुड़ी मांएं घर-परिवार छोड़कर निस्वार्थ भाव से कोविड-19 से लड़ रही हैं। इनमें से कइयों को तो घर जाने का मौका भी नहीं मिला। आज जब पूरा देश इन योद्धाओं के समर्थन में खड़ा है और इनके योगदान को दिल से सराह रहा है, ऐसे हालात में हम उनका जितना भी आभार मानें, कम ही होगा। भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने मदर्स डे पर ऐसी मांओं से बात की जो फ्रंटलाइन पर कोरोना का डटकर मुकाबला कर रही हैं। इनमें कलेक्टर, एसपी, डॉक्टर्स, नर्स से लेकर समाजसेवी तक शुमार हैं। पेश है कोविड चैंपियंस मांओं से सचिन की बातचीत...

सचिन- मेरा पहला प्रश्न वायनाड कलेक्टर आदिला अब्दुल्ला से है। आप अपने परिवार और व्यस्त दिनचर्या में सामंजस्य कैसे बनाकर रखती हैं?
आदिला- शुरू में बड़ी मुश्किल हुई। मेरे 3 छोटे बच्चे हैं और तीनों सात साल से छोटे हैं। मेरा सबसे छोटा बच्चा डेढ़ साल का है, जिसे मुझे फीड भी करना होता है। इस लिहाज से देखें तो मैं दो फ्रंट पर युद्ध लड़ रही हूं। एक तरफ तो ये सुनिश्चित करना है कि आम जनता में संक्रमण न फैले वहीं ये भी बहुत जरूरी है कि मेरी वजह से मेरे बच्चे संक्रमित न हो जाएं।

शुरूआती एक हफ्ते में तो एडजस्ट करने में बड़ी दिक्कतें आईं। मेरे बच्चों को मुझे उनके पिता के पास छोड़ना पड़ता था तो कभी अपनी मां से मदद लेनी पड़ती थी। शुरुआत में मैं बच्चे को दोपहर में सिर्फ एक बार फीड कर पाती थी। पर जैसे-जैसे सिस्टम बनता गया चीजें नियंत्रित होती गईं। लेकिन, अब बच्चों को कोरोना से नफरत हो गई है।

उनमें एक बदलाव जो मैं देखती हूं वो ये है कि अब वो क्रेयान्स या खेलने-कूदने या मॉल जाने की मांग नहीं करते। वो सिर्फ ये चाहते हैं कि जल्द से जल्द कोरोना का अंत हो जाए ताकि वो मां के साथ पहले जैसे समय बिता सकें। पहले उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे उनकी मां किसी सुपरमैन या बैटमैन की तरह कोरोना से लड़ रही है, लेकिन अब वो चाहते हैं कि ये स्पाइडरमैन या बैटमैन की कहानी खत्म हो।

सचिन- मेरा दूसरा सवाल काेच्चि की डिप्टी पुलिस कमिश्नर जी. पुंगझली से है। बच्चों को बड़ा अच्छा लगता है जब वो किसी के पुलिस अफसर बनने की बात सुनते हैं तो। एक पुलिस ऑफिसर मां होने के नाते संकट के समय में आप बच्चों को क्या संदेश देंगी?
जी पुंगझली- मेरा सबसे पहला संदेश हर बच्चे, उसकी मां और उसके परिवार को ये होगा कि चीजों को बांटना सीखें ताकि जिम्मेदार नागरिक बन सकें। मेरा दूसरा संदेश ये होगा कि वो गलती करने से न डरें और हर हाल में कुछ नया सीखने की कोशिश करें क्योंकि जीवन सफलता और असफलता, दोनों से मिलकर बनता है।

ऐसे में बच्चों को ये सिखाना जरूरी है कि वो अपनी असफलताओं को स्वीकारें और ये सीखें कि वो अपनी असफलताओं से उबर कैसे सकते हैं। हम सबको याद रखना होगा कि सिर्फ एक जिम्मेदार मां ही एक जिम्मेदार बच्चे का निर्माण कर सकती है, क्योंकि अधिकतम स्थितियों में बच्चों का जुड़ाव अपनी मां से अधिक होता है इसीलिए मां की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है कि वो अपने बच्चों को सिखाएं कि वे समाज में कैसे अपना योगदान दे सकते हैं। ये सबसे महत्वपूर्ण है।
सचिन- ये एक शानदार संदेश है। मैं मानता हूं कि हर महिला अपने परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है।

सचिन- मेरा तीसरा सवाल कानूनी पेशे से जुड़ी यूके की अमृता जयकृष्णन से है। कोविड 19 से गुजरना अपने आप में मुश्किल रहा होगा। आप न सिर्फ उबरीं बल्कि आप फिर से कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा में लग गईं। इस दौरान आपने कैसा महसूस किया?
अमृता जयकृष्णन- मेरे पति एक डॉक्टर हैं और वो मरीजों की सेवा में तब से ही लगे हैं जब से यह संक्रमण यूके में फैला। एक कोविड योद्धा की पत्नी होने के नाते मैं और मेरे पति, जानते थे कि इस लड़ाई में कितने खतरे हो सकते हैं। जैसा कि अंदेशा था हम दोनों ही बीमार पड़े। हमारे पास 14 दिन के आइसोलेशन में जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।

मुझे डर वायरस के लक्षण से उतना नहीं था जितना उस अनजान परिस्थिति से था जिसकी तरफ हम सब बढ़ रहे थे। यूके में अनगिनत ऐसी लैब हैं जहां उपकरण और टेक्नीशियन दोनों हैं, लेकिन यहां कोविड 19 की टेस्टिंग नहीं हो रही थी। हमने ऐसी लैब से संपर्क शुरू किया ताकि इन्हें जरूरी वित्तीय सहायता देकर कोरोना की टेस्टिंग के लिए तैयार किया जा सके।

इस प्रोग्राम में बहुत सारे लोग स्वेच्छा से 24 घंटे जुटे हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कई छोटे युद्धों को मिलाकर एक बड़ा युद्ध बनता है और बहुत छोटे-छोटे योगदान को मिला लें तो युद्ध जीता जा सकता है। मुझे खुशी है कि मैं इस कोरोना युद्ध में एक छोटा सा हिस्सा बन पाई हूं।

  • अग्रिम मोर्चे पर कोरोना से लड़ रही मांओं ने भी सचिन से पूछे सवाल

बर्मिंघम में पीडियाट्रिक्स कंसल्टेंट डॉ. दीप्ति ज्योतिष ने सचिन से पूछा कि आपके कॅरिअर के चुनाव के मामले में आपकी मां का क्या योगदान रहा है?

सचिन- आज की ही चर्चा में हमने सुना कि पेरेंट्स को स्वतंत्रता देनी चाहिए ताकि बच्चे अपने कॅरिअर का चुनाव खुद कर सकें। मेरे परिवार में भी ऐसा ही माहौल था। मेरा परिवार बड़ा है तो मेरे भाई-बहनों और माता-पिता से लेकर मेरे चाचा-चाची ने भी इस बात पर जोर दिया कि अगर मैं क्रिकेट खेलना चाहता हूं तो मुझे मौका मिलना चाहिए और हमें उसकी मदद करनी चाहिए।

अब मुझे क्रिकेट खेलना है ये निर्णय मेरी मां का नहीं था, मेरे भाई का मार्गदर्शन था, जिसे मेरे मां-पापा का आशीर्वाद मिला। प्रोफेसर होने के बावजूद मेरे पिता ने भी मुझे सपोर्ट किया। मेरी मां तो बस यही चाहती थीं कि मैं स्वस्थ और खुश रहूं। मुझे तो बस इतना याद है कि बचपन से ही अगर मुझे कुछ चाहिए होता था तो मैं मां के पास जाता था। मेरी मां तो मेरे लिए ढाल की तरह रही हैं, जिसने सिर्फ और सिर्फ मेरी रक्षा की।
आप घर के बाहर खेलते रहे हैं और आज लॉकडाउन की वजह से बच्चे घर में कैद हैं। आप क्या सलाह देंगे?
सचिन- पहली सलाह तो यह है कि सिर्फ समस्या को देखेंगे तो तनाव बढ़ेगा। पर जैसे ही आप समस्या के हल की तरफ सोचना शुरू करेंगे आप बेहतर होते चले जाएंगे। मैं अपनी चाची को गोल्फ की गेंद थमाता था ताकि मैं बैकफुट डिफेंस प्रैक्टिस कर सकूं, तो कभी मोजे में गेंद डाल रस्सी से लटकाकर कमरे में प्रैक्टिस किया करता था। आपके लक्ष्य के अनेक आयाम होते हैं। कई बार घर पर रहकर आप उन आयामों पर काम कर पाते हैं जिन पर आप ग्राउंड पर ध्यान नहीं दे पाते। ऐसे ही ये लॉकडाउन भी आपके लिए कोई अड़चन नहीं है, अवसर भी बन सकता है।

यह अप्रत्याशित समय और चुनौतियां अनगिनत

सौम्या भूषण (पत्रकार)- हम खुशकिस्मत हैं कि लॉकडाउन में परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है। आपका दिन कैसे बीत रहा है?
सचिन- मैं यह नहीं मानता कि खुशकिस्मती जैसी कोई चीज लॉकडाउन में है। किसी भी सूरत में आप ऐसी परिस्थिति से दोबारा नहीं गुजरना चाहेंगे। यह अप्रत्याशित समय है और चुनौतियां अनगिनत हैं। 3 महीने पहले किसी ने भी ऐसी परिस्थितियों की कल्पना नहीं की होगी। लेकिन, आज पूरी दुनिया नए तरीके से सोचने पर विवश हो गई।

हां, मुझे अपने परिवार के साथ पहले से अधिक समय बिताने का मौका जरूर मिल रहा है। 15 मार्च के बाद मैं अपने किसी मित्र से एक बार भी नहीं मिला हूं। मैं अपने सारे दोस्तों को भी यही कह रहा हूं कि सरकार के दिशा-निर्देश का आदर करें क्योंकि मैं भी यही कर रहा हूं। मेरी मां के साथ मुझे समय बिताने का मौका मिल रहा है।

महिलाएं ही परिवार का आधार होती हैं...

डॉ. मिनी पीएन ने पूछा कि आपने अपनी पत्नी अंजलि को भी एक सशक्त मां के रूप में देखा है। आपका इस पर क्या कहना है?
सचिन- इस विषय पर बोलने के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ते हैं। अंजलि का कॅरिअर अपने आप में काफी सफल था, पर जब हमारा परिवार बढ़ा तो उसने आगे होकर परिवार पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला लिया। महिलाएं परिवार का आधार होती हैं। असल में यह योगदान महिलाओं का है जो कभी मां, बहन के रूप में या सास के रूप में भी समाज को मिलता है। यही कारण है परिवार आगे बढ़ते हैं। मुझे गर्व है मेरी पत्नी पर कि मेरी गैरमौजूदगी में भी उन्होंने मेरे दोनों बच्चों की बहुत अच्छे से परवरिश की। अंजलि मेरे लिए खुशकिस्मती है और किसी किस्म की शिकायत की मेरे पास कोई वजह नहीं है।

डॉ. संध्या कुरूप (कोझिकोड में कोविड सेल की नोडल ऑफिसर)- आपकी मां 2013 में आपका खेल देखने के लिए स्टेडियम में आई थीं, कैसा अनुभव था?

सचिन- आप विश्वास नहीं करेंगी कि मेरे जीवन में वो इकलौता मैच था, जिसमें मैं खेलते समय अपनी मां को देख पा रहा था। ये मेरी आखिरी ख्वाहिश थी। वो मेरा आखिरी मैच था। मुझे याद है जब मैं आखिरी ओवर खेल रहा था, तब मेगास्क्रीन पर हर बॉल मेरी मां को दिखाकर फेंका गया, जो कि मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं हर बॉल के साथ मां को स्क्रीन पर देख पा रहा था, लेकिन मां को नहीं पता था कि वो कैमरे की निगरानी में है।



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सचिन तेंदुलकर ने कहा कि मैं मानता हूं कि हर महिला अपने परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है।  


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कोरोनावायरस की वजह से विदेशों में फंसे भारतीयों को लाने के मिशन वंदे भारत का आज चौथा दिन है। लंदन में फंसे 326 भारतीयों को लेकर एक विशेष विमानरविवार तड़के डेढबजेछत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर पहुंचा। एयरपोर्ट के अफसरों ने बताया कि मुंबई में रहने वाले कोरोना के लक्षण वाले यात्रियों को आइसोलेशन सेंटर में भेजा जाएगा। जो शहर के बाहर के उन्हें राज्य सरकार उनके घरों तक पहुंचाएगी। जिला स्तर पर फिर इनकी जांच होगी और प्रोटोकॉल के तहत आगे की कार्रवाई की जाएगी।इससे पहले शनिवार कोमिशन वंदे भारत के तहत अलग 5देशों से6 फ्लाइट आई थीं।इनमें दो फ्लाइट कुवैत से थीं।

खाड़ी देशों से केरल आए दो भारतीय पॉजिटिव
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन नेशनिवार कोबताया कि मिशन के पहले दिन (7 मई) को खाड़ी देशों से लौटे दो भारतीयों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इनमें से एक दुबई से कोझिकोड और दूसरा अबू धाबी से कोच्चि आया था। अबू धाबी से आई पहली फ्लाइट के 181 भारतीयों में से 5 लोगों में कोरोना के लक्षण मिले थे। ये जिन विमानों में आए उनमें 9 बच्चों समेत 363 लोग थे। केरल में कोरोना मरीजों की संख्या 505 हो गई है।

9 मई को:सबसे ज्यादा 183 भारतीय मस्कट से कोच्चि पहुंचे

फ्लाइट्स यात्री
ढाका- दिल्ली 129
शारजाह-लखनऊ 182
कुवैत-हैदराबाद 163
कुवैत-कोच्चि 177
मस्कट-कोच्चि 183
कुआलालम्पुर-त्रिची 177
कुल 1011

8 मई को 5 उड़ानों से लोग भारत लौटे
वंदे भारत मिशन के दूसरे दिन यानी 8 मई को पहली फ्लाइट दोपहर 12 बजे दिल्ली पहुंची। इस फ्लाइट में सिंगापुर से 234 लोग आए। दूसरी फ्लाइट ढाका से 167 मेडिकल स्टूडेंट को लेकर श्रीनगर आई। तीसरी फ्लाइट रियाद से 153 लोगों को लेकर कोझिकोड पहुंची। बहरीन से कोच्चि और दुबई से चेन्नई आई उड़ानों में 182-182 लोग आए।

7 मई को दो उड़ानें आईं
मिशन के पहले दिन यानी 7 मई को पहली फ्लाइट अबू धाबी से 181 भारतीयों को लेकर कोच्चि पहुंची। इनमें से 5 लोगों में कोरोनावायरस के लक्षण दिखने पर उन्हें आइसोलेशन वार्ड में भेज दिया गया। दूसरी फ्लाइट दुबई से 182 यात्रियों को लेकर कोझिकोड आई।

दूसरा फेज 15 मई से शुरू होगा
वंदे भारत मिशन के तहत भारत लौट रहे लोगों को फ्लाइट का किराया और क्वारैंटाइन का खर्च खुद उठाना होगा। पहले फेज में 14 मई तक 12 देशों से 14 हजार 800 भारतीयों को लाने का प्लान है। मिशन का दूसरा फेज 15 मई से शुरू होगा। इस फेज में सेंट्रल एशिया और यूरोपीय देशों जैसे- कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, रूस, जर्मनी, स्पेन और थाईलैंड से भारतीयों को लाया जाएगा।



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लंदन से फ्लाइट एआई 130 रविवार तड़के 1:30 बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंची। इसमें 129 भारतीय सवार थे।


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कोरोनावायरस की वजह से विदेशों में फंसे भारतीयों को लाने के मिशन वंदे भारत का आज चौथा दिन है। लंदन में फंसे 326 भारतीयों को लेकर एक विशेष विमानरविवार तड़के डेढबजेछत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर पहुंचा। एयरपोर्ट के अफसरों ने बताया कि मुंबई में रहने वाले कोरोना के लक्षण वाले यात्रियों को आइसोलेशन सेंटर में भेजा जाएगा। जो शहर के बाहर के उन्हें राज्य सरकार उनके घरों तक पहुंचाएगी। जिला स्तर पर फिर इनकी जांच होगी और प्रोटोकॉल के तहत आगे की कार्रवाई की जाएगी।इससे पहले शनिवार कोमिशन वंदे भारत के तहत अलग 5देशों से6 फ्लाइट आई थीं।इनमें दो फ्लाइट कुवैत से थीं।

खाड़ी देशों से केरल आए दो भारतीय पॉजिटिव
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन नेशनिवार कोबताया कि मिशन के पहले दिन (7 मई) को खाड़ी देशों से लौटे दो भारतीयों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इनमें से एक दुबई से कोझिकोड और दूसरा अबू धाबी से कोच्चि आया था। अबू धाबी से आई पहली फ्लाइट के 181 भारतीयों में से 5 लोगों में कोरोना के लक्षण मिले थे। ये जिन विमानों में आए उनमें 9 बच्चों समेत 363 लोग थे। केरल में कोरोना मरीजों की संख्या 505 हो गई है।

9 मई को:सबसे ज्यादा 183 भारतीय मस्कट से कोच्चि पहुंचे

फ्लाइट्स यात्री
ढाका- दिल्ली 129
शारजाह-लखनऊ 182
कुवैत-हैदराबाद 163
कुवैत-कोच्चि 177
मस्कट-कोच्चि 183
कुआलालम्पुर-त्रिची 177
कुल 1011

8 मई को 5 उड़ानों से लोग भारत लौटे
वंदे भारत मिशन के दूसरे दिन यानी 8 मई को पहली फ्लाइट दोपहर 12 बजे दिल्ली पहुंची। इस फ्लाइट में सिंगापुर से 234 लोग आए। दूसरी फ्लाइट ढाका से 167 मेडिकल स्टूडेंट को लेकर श्रीनगर आई। तीसरी फ्लाइट रियाद से 153 लोगों को लेकर कोझिकोड पहुंची। बहरीन से कोच्चि और दुबई से चेन्नई आई उड़ानों में 182-182 लोग आए।

7 मई को दो उड़ानें आईं
मिशन के पहले दिन यानी 7 मई को पहली फ्लाइट अबू धाबी से 181 भारतीयों को लेकर कोच्चि पहुंची। इनमें से 5 लोगों में कोरोनावायरस के लक्षण दिखने पर उन्हें आइसोलेशन वार्ड में भेज दिया गया। दूसरी फ्लाइट दुबई से 182 यात्रियों को लेकर कोझिकोड आई।

दूसरा फेज 15 मई से शुरू होगा
वंदे भारत मिशन के तहत भारत लौट रहे लोगों को फ्लाइट का किराया और क्वारैंटाइन का खर्च खुद उठाना होगा। पहले फेज में 14 मई तक 12 देशों से 14 हजार 800 भारतीयों को लाने का प्लान है। मिशन का दूसरा फेज 15 मई से शुरू होगा। इस फेज में सेंट्रल एशिया और यूरोपीय देशों जैसे- कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, रूस, जर्मनी, स्पेन और थाईलैंड से भारतीयों को लाया जाएगा।



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आज दुनियाभर में विभिन्न व्यवसायों से जुड़ी मांएं घर-परिवार छोड़कर निस्वार्थ भाव से कोविड-19 से लड़ रही हैं। इनमें से कइयों को तो घर जाने का मौका भी नहीं मिला। आज जब पूरा देश इन योद्धाओं के समर्थन में खड़ा है और इनके योगदान को दिल से सराह रहा है, ऐसे हालात में हम उनका जितना भी आभार मानें, कम ही होगा। भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने मदर्स डे पर ऐसी मांओं से बात की जो फ्रंटलाइन पर कोरोना का डटकर मुकाबला कर रही हैं। इनमें कलेक्टर, एसपी, डॉक्टर्स, नर्स से लेकर समाजसेवी तक शुमार हैं। पेश है कोविड चैंपियंस मांओं से सचिन की बातचीत...

सचिन- मेरा पहला प्रश्न वायनाड कलेक्टर आदिला अब्दुल्ला से है। आप अपने परिवार और व्यस्त दिनचर्या में सामंजस्य कैसे बनाकर रखती हैं?
आदिला- शुरू में बड़ी मुश्किल हुई। मेरे 3 छोटे बच्चे हैं और तीनों सात साल से छोटे हैं। मेरा सबसे छोटा बच्चा डेढ़ साल का है, जिसे मुझे फीड भी करना होता है। इस लिहाज से देखें तो मैं दो फ्रंट पर युद्ध लड़ रही हूं। एक तरफ तो ये सुनिश्चित करना है कि आम जनता में संक्रमण न फैले वहीं ये भी बहुत जरूरी है कि मेरी वजह से मेरे बच्चे संक्रमित न हो जाएं।

शुरूआती एक हफ्ते में तो एडजस्ट करने में बड़ी दिक्कतें आईं। मेरे बच्चों को मुझे उनके पिता के पास छोड़ना पड़ता था तो कभी अपनी मां से मदद लेनी पड़ती थी। शुरुआत में मैं बच्चे को दोपहर में सिर्फ एक बार फीड कर पाती थी। पर जैसे-जैसे सिस्टम बनता गया चीजें नियंत्रित होती गईं। लेकिन, अब बच्चों को कोरोना से नफरत हो गई है।

उनमें एक बदलाव जो मैं देखती हूं वो ये है कि अब वो क्रेयान्स या खेलने-कूदने या मॉल जाने की मांग नहीं करते। वो सिर्फ ये चाहते हैं कि जल्द से जल्द कोरोना का अंत हो जाए ताकि वो मां के साथ पहले जैसे समय बिता सकें। पहले उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे उनकी मां किसी सुपरमैन या बैटमैन की तरह कोरोना से लड़ रही है, लेकिन अब वो चाहते हैं कि ये स्पाइडरमैन या बैटमैन की कहानी खत्म हो।

सचिन- मेरा दूसरा सवाल काेच्चि की डिप्टी पुलिस कमिश्नर जी. पुंगझली से है। बच्चों को बड़ा अच्छा लगता है जब वो किसी के पुलिस अफसर बनने की बात सुनते हैं तो। एक पुलिस ऑफिसर मां होने के नाते संकट के समय में आप बच्चों को क्या संदेश देंगी?
जी पुंगझली- मेरा सबसे पहला संदेश हर बच्चे, उसकी मां और उसके परिवार को ये होगा कि चीजों को बांटना सीखें ताकि जिम्मेदार नागरिक बन सकें। मेरा दूसरा संदेश ये होगा कि वो गलती करने से न डरें और हर हाल में कुछ नया सीखने की कोशिश करें क्योंकि जीवन सफलता और असफलता, दोनों से मिलकर बनता है।

ऐसे में बच्चों को ये सिखाना जरूरी है कि वो अपनी असफलताओं को स्वीकारें और ये सीखें कि वो अपनी असफलताओं से उबर कैसे सकते हैं। हम सबको याद रखना होगा कि सिर्फ एक जिम्मेदार मां ही एक जिम्मेदार बच्चे का निर्माण कर सकती है, क्योंकि अधिकतम स्थितियों में बच्चों का जुड़ाव अपनी मां से अधिक होता है इसीलिए मां की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है कि वो अपने बच्चों को सिखाएं कि वे समाज में कैसे अपना योगदान दे सकते हैं। ये सबसे महत्वपूर्ण है।
सचिन- ये एक शानदार संदेश है। मैं मानता हूं कि हर महिला अपने परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है।

सचिन- मेरा तीसरा सवाल कानूनी पेशे से जुड़ी यूके की अमृता जयकृष्णन से है। कोविड 19 से गुजरना अपने आप में मुश्किल रहा होगा। आप न सिर्फ उबरीं बल्कि आप फिर से कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा में लग गईं। इस दौरान आपने कैसा महसूस किया?
अमृता जयकृष्णन- मेरे पति एक डॉक्टर हैं और वो मरीजों की सेवा में तब से ही लगे हैं जब से यह संक्रमण यूके में फैला। एक कोविड योद्धा की पत्नी होने के नाते मैं और मेरे पति, जानते थे कि इस लड़ाई में कितने खतरे हो सकते हैं। जैसा कि अंदेशा था हम दोनों ही बीमार पड़े। हमारे पास 14 दिन के आइसोलेशन में जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।

मुझे डर वायरस के लक्षण से उतना नहीं था जितना उस अनजान परिस्थिति से था जिसकी तरफ हम सब बढ़ रहे थे। यूके में अनगिनत ऐसी लैब हैं जहां उपकरण और टेक्नीशियन दोनों हैं, लेकिन यहां कोविड 19 की टेस्टिंग नहीं हो रही थी। हमने ऐसी लैब से संपर्क शुरू किया ताकि इन्हें जरूरी वित्तीय सहायता देकर कोरोना की टेस्टिंग के लिए तैयार किया जा सके।

इस प्रोग्राम में बहुत सारे लोग स्वेच्छा से 24 घंटे जुटे हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कई छोटे युद्धों को मिलाकर एक बड़ा युद्ध बनता है और बहुत छोटे-छोटे योगदान को मिला लें तो युद्ध जीता जा सकता है। मुझे खुशी है कि मैं इस कोरोना युद्ध में एक छोटा सा हिस्सा बन पाई हूं।

  • अग्रिम मोर्चे पर कोरोना से लड़ रही मांओं ने भी सचिन से पूछे सवाल

बर्मिंघम में पीडियाट्रिक्स कंसल्टेंट डॉ. दीप्ति ज्योतिष ने सचिन से पूछा कि आपके कॅरिअर के चुनाव के मामले में आपकी मां का क्या योगदान रहा है?

सचिन- आज की ही चर्चा में हमने सुना कि पेरेंट्स को स्वतंत्रता देनी चाहिए ताकि बच्चे अपने कॅरिअर का चुनाव खुद कर सकें। मेरे परिवार में भी ऐसा ही माहौल था। मेरा परिवार बड़ा है तो मेरे भाई-बहनों और माता-पिता से लेकर मेरे चाचा-चाची ने भी इस बात पर जोर दिया कि अगर मैं क्रिकेट खेलना चाहता हूं तो मुझे मौका मिलना चाहिए और हमें उसकी मदद करनी चाहिए।

अब मुझे क्रिकेट खेलना है ये निर्णय मेरी मां का नहीं था, मेरे भाई का मार्गदर्शन था, जिसे मेरे मां-पापा का आशीर्वाद मिला। प्रोफेसर होने के बावजूद मेरे पिता ने भी मुझे सपोर्ट किया। मेरी मां तो बस यही चाहती थीं कि मैं स्वस्थ और खुश रहूं। मुझे तो बस इतना याद है कि बचपन से ही अगर मुझे कुछ चाहिए होता था तो मैं मां के पास जाता था। मेरी मां तो मेरे लिए ढाल की तरह रही हैं, जिसने सिर्फ और सिर्फ मेरी रक्षा की।
आप घर के बाहर खेलते रहे हैं और आज लॉकडाउन की वजह से बच्चे घर में कैद हैं। आप क्या सलाह देंगे?
सचिन- पहली सलाह तो यह है कि सिर्फ समस्या को देखेंगे तो तनाव बढ़ेगा। पर जैसे ही आप समस्या के हल की तरफ सोचना शुरू करेंगे आप बेहतर होते चले जाएंगे। मैं अपनी चाची को गोल्फ की गेंद थमाता था ताकि मैं बैकफुट डिफेंस प्रैक्टिस कर सकूं, तो कभी मोजे में गेंद डाल रस्सी से लटकाकर कमरे में प्रैक्टिस किया करता था। आपके लक्ष्य के अनेक आयाम होते हैं। कई बार घर पर रहकर आप उन आयामों पर काम कर पाते हैं जिन पर आप ग्राउंड पर ध्यान नहीं दे पाते। ऐसे ही ये लॉकडाउन भी आपके लिए कोई अड़चन नहीं है, अवसर भी बन सकता है।

यह अप्रत्याशित समय और चुनौतियां अनगिनत

सौम्या भूषण (पत्रकार)- हम खुशकिस्मत हैं कि लॉकडाउन में परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है। आपका दिन कैसे बीत रहा है?
सचिन- मैं यह नहीं मानता कि खुशकिस्मती जैसी कोई चीज लॉकडाउन में है। किसी भी सूरत में आप ऐसी परिस्थिति से दोबारा नहीं गुजरना चाहेंगे। यह अप्रत्याशित समय है और चुनौतियां अनगिनत हैं। 3 महीने पहले किसी ने भी ऐसी परिस्थितियों की कल्पना नहीं की होगी। लेकिन, आज पूरी दुनिया नए तरीके से सोचने पर विवश हो गई।

हां, मुझे अपने परिवार के साथ पहले से अधिक समय बिताने का मौका जरूर मिल रहा है। 15 मार्च के बाद मैं अपने किसी मित्र से एक बार भी नहीं मिला हूं। मैं अपने सारे दोस्तों को भी यही कह रहा हूं कि सरकार के दिशा-निर्देश का आदर करें क्योंकि मैं भी यही कर रहा हूं। मेरी मां के साथ मुझे समय बिताने का मौका मिल रहा है।

महिलाएं ही परिवार का आधार होती हैं...

डॉ. मिनी पीएन ने पूछा कि आपने अपनी पत्नी अंजलि को भी एक सशक्त मां के रूप में देखा है। आपका इस पर क्या कहना है?
सचिन- इस विषय पर बोलने के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ते हैं। अंजलि का कॅरिअर अपने आप में काफी सफल था, पर जब हमारा परिवार बढ़ा तो उसने आगे होकर परिवार पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला लिया। महिलाएं परिवार का आधार होती हैं। असल में यह योगदान महिलाओं का है जो कभी मां, बहन के रूप में या सास के रूप में भी समाज को मिलता है। यही कारण है परिवार आगे बढ़ते हैं। मुझे गर्व है मेरी पत्नी पर कि मेरी गैरमौजूदगी में भी उन्होंने मेरे दोनों बच्चों की बहुत अच्छे से परवरिश की। अंजलि मेरे लिए खुशकिस्मती है और किसी किस्म की शिकायत की मेरे पास कोई वजह नहीं है।

डॉ. संध्या कुरूप (कोझिकोड में कोविड सेल की नोडल ऑफिसर)- आपकी मां 2013 में आपका खेल देखने के लिए स्टेडियम में आई थीं, कैसा अनुभव था?

सचिन- आप विश्वास नहीं करेंगी कि मेरे जीवन में वो इकलौता मैच था, जिसमें मैं खेलते समय अपनी मां को देख पा रहा था। ये मेरी आखिरी ख्वाहिश थी। वो मेरा आखिरी मैच था। मुझे याद है जब मैं आखिरी ओवर खेल रहा था, तब मेगास्क्रीन पर हर बॉल मेरी मां को दिखाकर फेंका गया, जो कि मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं हर बॉल के साथ मां को स्क्रीन पर देख पा रहा था, लेकिन मां को नहीं पता था कि वो कैमरे की निगरानी में है।



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सचिन तेंदुलकर ने कहा कि मैं मानता हूं कि हर महिला अपने परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है।  


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दुनिया में संक्रमितों की संख्या 41 लाख से ज्यादा हो गई है। 2 लाख 80 हजार 431 की मौत हुई है। इसी दौरान 14 लाख 41 लाख हजार 429 स्वस्थ भी हुए। दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में पिछले दिनों लॉकडाउन में बड़ी ढील दी गई। आम लोगों के लिए कुछ शर्तों के साथ नाइट क्लब, होटल, बार और डिस्को खुल गए थे। अब यहां फिर संक्रमण के मामले सामने आए। लिहाजा, सरकार ने ये सभी जगहें फिर बंद कर दी हैं।
पाकिस्तान में संक्रमितों की तादाद 28 हजार से ज्यादा हो गई है। मौत का आंकड़ा भी 700 से ज्यादा हो गया। लेकिन, इमरान सरकार ने कथित लॉकडाउन में ढील दे दी। देश के डॉक्टर्स इसका विरोध कर रहे हैं।

साउथ कोरिया : सियोल फिर बंद
दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में पिछले दिनों लॉकडाउन में ढील दी गई थी। नाइट क्लब, होटल, बार और डिस्को खुल गए थे। अब यहां संक्रमण के नए मामलों का पता लगा है। इसके फौरन बाद सरकार ने इन सभी जगहों को अगले आदेश तक के लिए फिर बंद कर दिया है। एक अधिकारी ने माना कि कुछ लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया। इसकी वजह से सभी को परेशानी होगी।

ब्रिटेन : सरकार की पहल
बोरिस जॉनसन सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के लिए एक नई पहल की है। सरकार यहां साइकल से चलने के लिए जागरुकता अभियान चलाएगी। इसके लिए 2.48 करोड़ डॉलर का बजट मंजूर किया गया है। परिवहन मंत्री ग्रांट शेप्स ने कहा- इससे पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को मदद मिलेगी। वहां भीड़ कम होगी और लोग शारीरिक तौर पर ज्यादा मजबूत होंगे।

अमेरिका : दो अफसर क्वारैंटाइन
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कोरोना से निपटने के लिए टास्क फोर्स बनाई थी। इसके दो अफसर अब क्वारैंटाइन हो गए हैं। डॉक्टर रॉबर्ट रेडपील्ड सीडीएस के डायरेक्टर हैं। वो दो हफ्ते घर से काम करेंगे। वो एक संक्रमित के संपर्क में आए थे। इनके अलावा एफडीए कमिश्नर स्टीफन हान भी दो हफ्ते के लिए क्वारैंटाइन हो गए हैं। हालांकि, उनकी पहली टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई है।

राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ शुक्रवार को व्हाइट हाउस में मीडिया से बातचीत करते सीडीएस डायरेक्टर रॉबर्ट रेडफील्ड। रॉबर्ट एक संक्रमित के संपर्क में आए थे। इसके बाद वो शनिवार को दो हफ्ते के लिए क्वारैंटाइन हो गए।

पाकिस्तान : संक्रमण बढ़ा, लेकिन लॉकडाउन में ढील
यहां 27 हजार से ज्यादा संक्रमित हैं। 700 की मौत हो चुकी है। लेकिन, सरकार ने लॉकडाउन में ढील देना शुरू कर दी है। शनिवार से देश के ज्यादातर हिस्सों में दुकानें और फैक्ट्रियां खुल गईं। हालांकि, लॉकडाउन का असर पहले भी नहीं था। मस्जिदों में सामूहिक नमाज पर लगी रोक पहले ही हटा ली गई थी। डॉक्टर्स एसोसिएशन ने सरकार को चेताया भी था। लेकिन, उनकी सलाह और मांग पर प्रधानमंत्री इमरान ने कोई ध्यान नहीं दिया।



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दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में सरकार को लॉकडाउन में ज्यादा ढील देना भारी पड़ गया। यहां होटल, बार और नाइट क्लब्स में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हुआ। नए मामले सामने आए तो सरकार ने यह छूट फौरन वापस ली और इन सभी जगहों को अगले आदेश तक फिर बंद कर दिया। यहां लोग मास्क तो लगाए हैं लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं।


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कोरोना संक्रमित 18 माह की बेटी के साथ 20 दिन एक बेड पर रहकर भी मां संक्रमण से बची रही। अपनी तरह की यह पहली घटना चंडीगढ़ पीजीआई में सामने आई। पीजीआई इस पर रिसर्च करवाएगा कि इतने करीब रहकर भी मां संक्रमण से कैसे बची। 18 माह की चाहत 20 अप्रैल को संक्रमित मिली थी। मां सीजर 20 दिन तक पीजीआई में बेटी के साथ ही।

17 दिन में तीन बार बेटी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई

17 दिन में तीन बार बेटी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। लेकिन, मां की रिपोर्ट हर बार निगेटिव रही। शनिवार को बेटी की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद छुट्‌टी दे दी गई। कोविड सेंटर के डॉ. रश्मि रंजन गुरु ने कहा कि मां का इम्यून सिस्टम मजबूत रहा। उन्होंने मास्क लगाए रखा और बार-बार हाथ धोती रहीं। बच्ची को खांसी-जुकाम नहीं होने के कारण ड्रॉपलेट मां तक नहीं पहुंचे।



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बच्ची को खांसी-जुकाम नहीं होने के कारण ड्रॉपलेट मां तक नहीं पहुंचे।


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भले लाॅकडाउन खुलने की स्थितियां बन रही हैं औरबच्चे कई गतिविधियाें की प्लानिंग कर रहे हैं मगर परिजन को तो उन्हें समझाना ही पड़ रहा है कि अब वे बहुत ज्यादा शौक पूरे नहीं कर पाएंगे। परिजन किराए और भोजन के लिए पर्याप्त पैसे होने की बात कहकर उम्मीद बंधा सकते हैं, लेकिन बच्चों केआंख-कान तेज होते हैं। ऐसी स्थिति में जानिए कि अगर नौकरी चली जाए तो बच्चों के सवालों और नजरों का सामना कैसे करेंः

अपनी चिंता पर गाैर करें
ग्राहक केंद्रित अर्थव्यवस्था औरसेल्फ ब्रांडिंग के दाैर में अपने बजट काे बढ़ाना और‘क्या जरूरी है’ काे ‘हम क्या चाहते हैं’ से अलग करना मुश्किल है। तय करें कि इस खराब माहाैल में भी आप सतर्क परिजन बने रहेंगे। बच्चाें काे आश्वस्त करें किबदतर स्थिति में भी आपकेपास इतने पैसे रहेंगे कि बिल चुका सकते हैं और भोजन खरीद सकते हैं।

यदि कुछ नया करने जा रहे हैं, या बेराेजगारी लाभ प्राप्त कर रहे हैं ताे वह भी बताएं। इससे उन्हें आपके संसाधनाें और याेजनाओं के बारे में जानकारी मिलेगी। उनके सवाल गाैर से सुनें।
कड़वा सच बताएं कि नहीं
बच्चाें से बात करते समय यह तय करें कि उन्हें कितना बताना है। यह इस पर निर्भर करता है कि बच्चे की उम्र क्या है, नकारात्मक खबर सुनने की क्षमता कैसी है। बच्चाें काे नए आर्थिक परिदृश्य में सामंजस्य बैठाने के बारे में बताकर भी सच से अवगत करा सकते हैं। छाेटे बच्चे यह साेच सकते हैं कि बड़ाें के साथ बुरा हाे गया है ताे हमारे साथ भी ऐसा होगा। बुरे सपने आसकते हैं।

किशाेर यह जानने के लिए उत्सुक हाेंगे कि हम अब भी डिनर पर जा सकेंगे?, मैं पहले वाले स्कूल ही जाऊंगा?, हम बेघर हाे जाएंगे? उन्हें बताएं कि क्या वैसा ही रहेगा औरक्या बदल सकता है। हर बदलाव से अवगत कराएं।
आगे की साेचें
बच्चाें काे समझाएं कि अर्थव्यवस्था दाैड़ते ही, परिस्थिति भी बदलेगी। नई नाैकरी मिल सकती है। आपकी परिस्थितियां बदल सकती हैं। नए दाैर में पूरे परिवार काे छाेटी टीम मानकर चलें।



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विशेषज्ञ मानते हैं कि परिजन बच्चाें काे आश्वस्त करें कि बदतर स्थिति में भी आपके पास इतने पैसे रहेंगे कि बिल चुका सकते हैं और भोजन खरीद सकते हैं। -प्रतीकात्मक फोटो


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केन्या की सरकार को कोरोनावायरस के संकट से निपटने की चुनौती के बीच अब क्वारैंटाइन में लोगों से हो रहे व्यवहार को लेकर विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, नैरोबी में क्वारैंटाइन किए गए कई लोगों को 14 दिन की सीमा पूरी होने के बावजूद बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा। उन्हें वहां से निकलने के बदले पैसे मांग जा रहे हैं।

कहा जा रहा है कि यह उन पर हुए खर्च की वसूली है, लेकिन ऐसा नहीं है। ऐसा ही एक मामला वेलेंटाइन ओचोगो का है। वे बताती हैं,"जब मैं दुबई में नौकरी से निकाले जाने के बाद केन्या पहुंची, तो एक यूनिवर्सिटी के छात्रावास में अन्य यात्रियों के साथ क्वारैंटाइन में रखा गया था। लेकिन, 14 दिन क्वारैंटाइन और तीन टेस्ट निगेटिव आने के बावजूद बाहर नहीं निकलने दिया गया। मुझे बताया गया कि जब तक करीब 31 हजार रुपए नहीं चुका देती, जाने नहीं दिया जाएगा। आखिरकार चार हजार रुपए में बात तय हुई। मैं 32 दिन बाद वहां से निकल पाई। लेकिन, कई लोग वहां फंसे हैं।''

लोगों को पकड़कर थानों के बजाए क्वारैंटाइन में भेजा जा रहा

केन्या में कर्फ्यू का उल्लंघन करने या मास्क न पहनने के कारण पकड़े गए लोगों को पुलिस थानों में न भेजकर क्वारैंटाइन में भेजा जा रहा है। उन्हें कई बार तो संक्रमितों के साथ ही रख दिया जाता है। हाल ही में 7 और लोग वहां से बाहर निकले हैं। उन्होंने बताया कि बेहद गंदी जगहों पर रखा गया था। वहां न भोजन था, न पानी और न ही टेस्ट के नतीजे बताए जाते थे।

दूसरी तरफ क्वारैंटाइन में लोगों के साथ दुर्व्यवहार की बातें बाहर आने के बाद लोग सरकार के विरोध में उतर आए हैं। मोई यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉ. लुकोए एटवोली कहते हैं,"जबरदस्ती करने के बजाय लोगों को सहयोग करने के लिए राजी करने की जरूरत है, खासकर यदि आप उनकी भलाई करने का तर्क दे रहे हो।''

हालात पता चलने पर लोग टेस्ट करवाने आगे नहीं आ रहे

केन्या में एक महीने में 50 लोग क्वारैंटाइन से भाग चुके हैं। इसके अलावा क्वारैंटाइन सेंटर में दुर्व्यवहार और पैसे मांगे जाने की खबरों के बाद अब लोग कोरोना के लक्षण दिखने के बावजूद टेस्ट करवाने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। ऐसे में सरकार हरकत में आई है और स्वास्थ्य मंत्रालय ने सफाई दी है कि व्यवस्था सुधारी जा रही है, शुल्क पर रोक लगाएंगे।



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क्वारैंटाइन में लोगों के साथ दुर्व्यवहार की बातें बाहर आने के बाद लोग सरकार के विरोध में उतर आए हैं।


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देश में 62 हजार 808कोरोना संक्रमित हैं। शनिवार को 2894 नए मामले सामने आए।सीआरपीएफ के 62, बीएसएफ के 35, सीआईएसएफ के 13 और आईटीबीपी के 6 जवानों में संक्रमण की पुष्टि हुई।देशभर में अर्धसैनिक बलोंमें 600से ज्यादा संक्रमित केस हैं। इस बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पीएम केयर में जमा हुए फंड के ऑडिट की मांग की। उन्होंने ट्वीट किया, ''पीएम केयर में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और रेलवे ने बड़ी रकम दान की है। ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि प्रधानमंत्री इस रकम के खर्च की पूरी जानकारी जनता के साथ साझा करें।''

बीते 24 घंटे मेंमहाराष्ट्र में 1165, गुजरात में 394, मध्यप्रदेश में 116, तमिलनाडु में 526, उत्तरप्रदेश में 159,राजस्थान में 129, पश्चिम बंगाल में 108, पंजाब में 31 रिपोर्ट पॉजिटिव आईं।ये आंकड़े covid19india.org और राज्य सरकारों से मिली जानकारी के आधार पर हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में59 हजार 662 संक्रमित हैं। 39 हजार 834 का इलाज चल रहा है। 17 हजार 846 ठीक हो चुके हैं, जबकि 1982 मरीजों की मौत हो चुकी है।

5 दिन जब संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले आए

दिन मामले

04 मई

3656
06 मई 3602
07 मई 3344
08 मई 3563
05 मई 2971

26 राज्य, 7 केंद्र शासित प्रदेशों में फैला संक्रमण
कोरोनावायरस का संक्रमण देश के 26 राज्यों में फैला है। 7केंद्र शासित प्रदेश भी इसकी चपेट में हैं। इनमें दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान-निकोबार, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, पुडुचेरी और दादर एंड नगर हवेलीशामिल हैं।

राज्य कितने संक्रमित कितने ठीक हुए कितनी मौत
महाराष्ट्र 20228 3800 779

गुजरात

7797 2019 472
दिल्ली 6542 2020 68
तमिलनाडु 6535 1824 44

राजस्थान

3708 2162 106
मध्यप्रदेश 3457 1480 211
उत्तरप्रदेश 3373 1499 74
आंध्रप्रदेश 1930 887 44
पंजाब 1762 157 31
पश्चिम बंगाल 1786

372

171
तेलंगाना 1163 751 30
जम्मू-कश्मीर 836 368 9
कर्नाटक 794 386 30
हरियाणा 675 290 9
बिहार 611 318 5

केरल

506

485

4
ओडिशा 294 68 2
चंडीगढ़ 169 24 2

झारखंड

156 52 3
त्रिपुरा 135 2 0
उत्तराखंड 67 46 1
छत्तीसगढ़ 59 43 0
असम 63 35 2

हिमाचल प्रदेश

52 35 3
लद्दाख 42 18 0

अंडमान-निकोबार

33 33 0
मेघालय 13 10 1

पुडुचेरी

10 8 0
गोवा 7 7 0
मणिपुर 2 2 0
अरुणाचल प्रदेश 1 1 0
दादर एंड नगर हवेली 1 1 0
मिजोरम 1 1 0

ये आंकड़े covid19india.org और राज्य सरकारों से मिली जानकारी के अनुसार हैं।केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में कुल 59 हजार 662 संक्रमित हैं। 39 हजार 834 का इलाज चल रहा है। 17 हजार 846 ठीक हो चुके हैं, जबकि 1982 मरीजों की मौत हो चुकी है।

5 राज्य और 1 केंद्र शासित प्रदेश का हाल

  • मध्यप्रदेश, संक्रमित- 3457:यहां शनिवार को 116 नए संक्रमित मिले। इंदौर में 53 और भोपाल में 25 रिपोर्ट पॉजिटिव आईं।लॉकडाउन में गुजरात और महाराष्ट्र में फंसे मध्यप्रदेश के मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए सरकार ने तैयारी कर लीहै। मई में 27 श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलेंगी, जो 32 हजार 400 मजदूरों को लेकर आएंगी। 15 ट्रेन चलना तय हो चुका है। बाकी 12 भी 4- 5 दिन में फाइनल हो जाएंगी।
  • उत्तरप्रदेश, संक्रमित- 3373:राज्य में शनिवार को कोरोना के 159नए मामले सामने आए। अब तक 74 मौतें हुई हैं। इनमें से 1800मरीजों का इलाज चल रहाहै। उधर, वाराणसी में क्लस्टर जोन बनाकर बाहर से आएलोगों की पहचान करथर्मल स्क्रीनिंग की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग की 92 टीम23 क्लस्टर जोनमें 2595 घरों का सर्वे करेंगी।
  • महाराष्ट्र, संक्रमित- 20228:राज्य में शनिवार को 1165 नए मामले सामने आए। 48 मौतें भी हुईं। अब तक 3800 मरीज ठीक हो चुके हैं।मुंबई में संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित वर्ली और डिलाइरोड बीडीडी चॉल को 8 दिन पूरी तरह बंद करने की तैयारी है। इस संबंध में बीएमसी प्रशासन ने मुंबई पुलिस को पत्र लिखा है।
  • राजस्थान, संक्रमित- 3708:यहां शनिवार को संक्रमण के 129नए मामले सामने आए।इनमें जयपुर में 51, उदयपुर में 24, अजमेर में 15, जोधपुर में 11, चित्तौड़गढ़ में 10,पाली में 5, जालोर और चूरूमें 3-3, राजसमंद में 2, जबकिकोटा, बाड़मेर और दौसा में 1-1 मरीज मिला।
  • दिल्ली, संक्रमित- 6542:यहां फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग, सरोज मेडिकल इंस्टीट्यूट, और खुशी हॉस्पिटल को सरकार ने कोविड-19 हॉस्पिटल घोषित किया है। निजी अस्पतालों में आइसोलेशन बेड की कमी को देखते हुए यह फैसला किया गया है। राजधानी मेंकुल संक्रमितों में से 4454का इलाज चल रहा है। 68 की मौत हुई है, जबकि 2020 ठीक हो चुके हैं।
  • बिहार, संक्रमित- 611:यहां शनिवार को 22 पॉजिटिव मरीज मिले। अब तक 388 संक्रमित ठीक हो चुके हैं।दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है। अत तक राज्य में 70 ट्रेनों से 83 हजार प्रवासी लौट चुके हैं। 15 ट्रेनों से 18 हजार 115 प्रवासी शनिवार को लौट रहे हैं। इन मजदूरों में संक्रमित भी मिल रहे हैं।

केरल में अब हर रविवार को लॉकडाउन

कोरोना संक्रमण की रोकथाम और पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए केरल में आज से हर रविवार को टोटल लॉकडाउन रहेगा। सरकार ने शनिवार को इसका आदेश जारी किया। सरकार ने जरूरी सेवाओं को छोड़कर सभी दुकानें बंद रखने का फैसला किया है।मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने बताया कि 7 मई को खाड़ी देशों से लौटे दो भारतीयों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इनमें से एक दुबई से कोझिकोड और दूसरा अबू धाबी से कोच्चि आया था। राज्य में कोरोना मरीजों की संख्या 506 हो गई है।

आरोग्य सेतु ने 300 हॉट स्पॉट बताए

कोरोनावायरस से जंग में आरोग्य सेतु ऐप अहम हथियार बनकर सामने आया है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि इससे सरकार को देशभर में 650 से ज्यादा हॉट स्पॉट के बारे में जानकारी जुटाने में मदद मिल रही है। इतना ही नहीं इस ऐप से 300 उभरते हुए कोरोना हॉट स्पॉट को लेकर अलर्ट मिला है। सरकार ने सभी लोगों को यह ऐप डाउनलोड करने का सुझाव दिया है।



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कोलकाता में हाथ गाड़ी पर लहसुन ले जाते मजदूर। लॉकडाउन फेज-3 में रियायतें मिलने के बाद जरूरी सामानों की आपूर्ति में तेजी आई है।


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सबसे पहले बात चीन के वुहान में हुई एक स्टडी की। जामा पीडिएट्रिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वुहान में 33 बच्चे संक्रमित मां से पैदा हुए थे। जिनमें से तीन को छोड़कर सभी स्वस्थ्य थे। जो तीन संक्रमित थे उनमें से 2 बच्चे 6 दिन के होने से पहले ही ठीक भी हो गए थे।

इस रिपोर्ट का जिक्र इसलिए क्योंकि वुहान वह जगह है जहां से कोरोना संक्रमण की शुरुआत हुई। और वहां की ये रिसर्च बताती है कि मां मुश्किल वक्त में मजबूत साबित होती है। और अपनी हिम्मत से बच्चों की सुरक्षा करती है। मेडिकल साइंस ये बात माने या न माने ये तस्वीरें यही कहानी कह रही हैं...

तस्वीर वियतनाम के हनोई शहर की है। यहां एक मां ने अपने छोटे बच्चे को कोरोना से बचाने के लिए शील्ड पैक कर दिया है। यहां अब तक कोरोना के सिर्फ 288 मरीज मिले हैं। अच्छी बात ये है कि यहां कोरोना ने अब तक किसी की जान नहीं ली।

तस्वीर इंडोनेशिया के जावा शहर की है, जिसे 1 अप्रैल को खींचा गया था। इस तस्वीर में जो दिख रही हैं, वो हैं 35 साल की युका, जो अपने 12 दिन के बेटे को गोद में खिला रही हैं। कोरोना की वजह से इंडोनेशिया के अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं के साथ सिर्फ एक व्यक्ति को ही जाने की इजाजत है। यहां अब तक करीब 13 हजरा 700 केस और 950 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। अब जाते-जाते इस बच्चे का नाम भी जान लीजिए। युका ने इसका नामएलजुना सतरिया नुगरोहो रखा है।
मां पहले बच्चों को खिलाती है, फिर खुद खाती है। ये तस्वीर इसका सटीक उदाहरण है। कोलकाता की ये तस्वीर 5 अप्रैल को ली गई थी। लॉकडाउन की वजह से मजदूरों और छोटे कामगारों का काम ठप हो गया। लेकिन, उसके बाद भी मां कहीं से खाना लेकर आई और अपनी दोनों बेटियों को दे दिया। बड़ी बेटी भी इतनी समझदार कि पहले अपनी छोटी बहन को खिला रही है।
तस्वीर श्रीनगर की है। यहां एक मां 14 दिन का क्वारैंटाइन पीरियड पूरा करने के बाद जब 6 अप्रैल को बाहर आई, तो अपने बच्चे को गोद लेने से पहले मास्क और ग्लव्स पहनना नहीं भूली। जम्मू-कश्मीर में 9 मई तक 823 केस आ चुके हैं। जबकि, 9 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
तस्वीर ब्राजील की है। कोरोना को फैलने से रोकने के लिए यहां की सरकार ने गरीब बेघरों को शेल्टर होम में रखा है। शेल्टर होम के गेट से झांकता ये बच्चा शायद यही सोच रहा होगा कि कब यहां से बाहर निकलूंगा। ब्राजील में अब तक 1.5 लाख कोरोना मरीज आ चुके हैं। संक्रमण से अब तक 10 हजार से ज्यादा की मौत भी हो चुकी है।
कोरोना से बचने का तरीका है- मास्क पहनना। लेकिन, जब मास्क नहीं मिला तो फिलीस्तीनी मां ने अपने बच्चों को सब्जी के पत्तों से बना मास्क ही पहना दिया। फिलीस्तीन में अब तक 400 से भी कम मामले आए हैं। जबकि, सिर्फ 4 मौतें ही यहां कोरोना से हुई है।
कोरोना की वजह से लॉकडाउन है और सैलून बंद पड़े हैं। ऐसे में ब्रिटेन के कील शहर में रहने वाली मां ने खुद ही कंघा-ट्रिमर लिया और बच्चे के बाल कटने शुरू कर दिए। यूरोपीय देशों में ब्रिटेन सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। यहां अब तक 2.10 लाख से ज्यादा मामले आ चुके हैं। जबकि, 31 हजार मरीज दम तोड़ चुके हैं।
तस्वीर थाईलैंड के बैंकॉक शहर की है। चीन के जिस वुहान शहर से कोरोना निकला, वहां से बैंकॉक की दूरी 2.5 हजार किमी से भी कम है। फिर भी यहां अब तक 3 हजार के आसपास ही मरीज मिले हैं और 56 मौतें हुई हैं। अब यहां धीरे-धीरे सब नॉर्मल भी हो रहा है। इस तस्वीर को देखकर तो यही लग रहा है कि मानो अपनी मां का हाथ थामे बच्ची कोरोना को बोल रही हो कि जब तक मां है, तब तक तू मुझे छू भी नहीं सकता।
तस्वीर लेबनान के सिडोन शहर की है। कोरोना उसकी मां को छू भी न सके, इसके लिए बच्चा खुद अपनी मां को मास्क पहना रहा है। यहां अब तक करीब 800 केस मिल चुके हैं। 26 लोगों ने कोरोना की वजह से दम भी तोड़ दिया है।
तस्वीर फिलीपींस के मनीला शहर की है। गरीब बेघरों को कोरोनावायरस से बचाने के लिए सरकार ने यहां के एक स्कूल को शेल्टर होम में तब्दील कर दिया है, जहां इन लोगों को ठहराया गया है। ऐसे ही एक शेल्टर होम में ठहरी एक मां मास्क पहनकर अपने बच्चे को दूध पिला रही है। फिलीपींस में अब तक 10 हजार से ज्यादा कोरोना के मामले आ चुके हैं। इससे अब तक यहां 700 से ज्यादा मौतें भी हुई हैं।


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ये तस्वीर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एक जिला अस्पताल की है। यहां 23 अप्रैल को एक कोरोना पॉजिटिव मां ने बच्चे को जन्म दिया था। कोरोना की वजह से दोनों को अलग-अलग वॉर्ड में रखा गया था। इसीलिए मां ने वीडियो कॉलिंग के जरिए अपने बच्चे को देखा। महाराष्ट्र पूरे देश में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है। यहां अब तक कोरोना के 19 हजार से ज्यादा मामले आ चुके हैं। 730 से ज्यादा मौतें भी हो चुकी हैं।


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मेघना गिरीश, जम्मू के नगरोटा आतंकी हमले में शहीद हुए मेजर अक्षय गिरीश की मां हैं। 2016 में अपने बेटे को खोने के बाद वह ऐसी कई मांओं से मिली हैं जिन्होंने उन्हीं की तरह अपने बेटे को खोया है, 'लाइन ऑफ ड्यूटी' में। शहीदों के परिवारों से मिलने वह नॉर्थ से लेकर साउथ तक घूमी हैं, मेघना इसे तीर्थयात्रा कहती हैं। मदर्स डे पर ऐसे ही कुछ शहीदों की माओं से हमारी वर्चुअल मुलाकात करवा रही हैं मेघना गिरीश, पढ़िए-

जब मेरा बेटा अक्षय छोटा था तो मैं प्यार से उसे लोरी सुनाती थी, ‘चंदा है तू मेरा सूरज है तू...।’ और अक्षय मुस्कुरा देता, गले लग जाता मेरे। बड़ा हुआ तब भी कहा था, ‘अभी भी आप ही का राजा बेटा हूं।’ जब पिता बना तब भी उसे याद था, कहता था, ‘मां आप मेरे लिए वो गातीं थीं ना....वो गाना मेरा है।’

अक्षय बड़ा होकर मेजर अक्षय गिरीश बन गया और फिर 29 नवंबर 2016 को एक नेशनल हीरो। तब, जब वह जम्मू कश्मीर के नगरोटा में हुए जैश ए मोहम्मद के आतंकी हमले के दौरान क्यूआरटी यानी क्विक रिएक्शन टीम को लीड कर रहा था।

अपने राजा बेटे अक्षय की तस्वीर के साथ ये है उनकी मम्मी मेघना की तस्वीर।

पाकिस्तानी आतंकी चार जवानों को मारकर सेना के रेसिडेंशियल इलाके में घुस आए थे। जहां बच्चे, महिलाएं और बिना हथियार कितने ही सैनिक थे। पूरी तरह सुबह भी नहीं हुई थी जब अक्षय की टीम ने अदम्य साहस दिखाया और मासूम जिंदगियों को उन आतंकियों से बचाया। बतौर अक्षय की मां मैं हमेशा यही कहूंगी कि, जिस बहादुरी से अपनी परवाह किए बिना उसने उन मासूम जिंदगियों को बचाया इसका हमें गर्व है।

देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर हमारी तरह के बाकी पैरेंट्स से मिलना बेहद भावुक कर देता है। लेकिन, ये काफी सुकून देने वाला और कई मायनों में इंस्पायरिंग भी है। मेरी पहली मुलाकात उधमपुर में आशा गुप्ता से हुई। जब हम पहली बार गले मिले तो बिना कुछ बोले, खुद ब खुद हमारी आंखें नम हो गईं। पैरा स्पेशल फोर्स के यंग कैप्टन तुषार महाजन फरवरी 2016 में कश्मीर के पाम्पोर में एक सरकारी बिल्डिंग में फंसे कई लोगों की जान बचाने के बाद उन्होंने देश के खातिर अपनी जान दे डाली। तुषार के घर जाकर मालूम हुआ कि उनके हीरो शहीद भगत सिंह थे। आशा और मैं पिछले तीन सालों से अपना दुख साझा कर रहे हैं।

बेंगलुरुमें हमारे घर से थोड़ी ही दूर पर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पेरेंट्स रहते हैं। संदीप ने ताज होटल मुंबई में कई टूरिस्ट की जान बचाई थी, अपनी जान की कीमत पर। आज वह लीजेंड बन चुका है।

धनलक्ष्मी अक्का, मेजर संदीप की खूबसूरत मां की बातों से पता चलता है, अक्का हर वो कुछ करना चाहती हैं जो संदीप चाहता था। उन्होंने साइकिल चलाना सीखा, बैंक का काम भी। संदीप के मम्मी पापा कई ऐसे युवाओं से भी मिले जो उनके बेटे से इंस्पायर्ड और मोटीवेटेड थे। वह कहती भी हैं, ‘जब लोग कहते हैं आपका एक ही बेटा था और आपने उसे आर्मी में जाने दिया, तो मैं कहती हूं ये सारे बच्चे भी मेरे हैं।’

पहली बार जब मैं मेजर मोहित शर्मा के घर दिल्ली गई तो उस दिन मोहित का बर्थडे था। उसकी मम्मी सुशीला जी ने सुबह से कुछ नहीं खाया था और तो और वह कमरे से बाहर ही नहीं निकली थीं। मार्च 2009 में मेजर मोहित और उनकी स्पेशल फोर्स की टीम कश्मीर के कुपवाड़ा में एक आतंकी ऑपरेशन का हिस्सा थी। मोहित ने अदम्य साहस से मुकाबला किया, खुद कुर्बान होने से पहले उन्होंने चार आतंकियों को मार गिराया और अपने दो साथियों को बचा भी लाए।

जब सुशीला जी ने हिम्मत बटोरी और बाहर हमसे मिलने आईं तो हमें उनके दुख का एहसास हो रहा था, लेकिन वह यही कोशिश कर रहीं थी कि हम असहज महसूस न करें। उस शाम के खत्म होने से पहले, मोहित की शरारतों, शौर्य और दीवानगी की कहानियां सुनकर हम दो परिवार एक बन चुके थे। गर्व और दर्द में हिस्सेदारी जो थी हमारी। खुशी हुई जब पता चला कि पिछले साल एक मेट्रो स्टेशन का नाम इस वीर के नाम पर रखा है।

तस्वीर अक्षय की पॉसिंग ऑउट परेड की है। बेटे को फौजी बनते देखा तो लगा जैसे कोई युद्ध जीता हो।

लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह अशोक चक्र पर उस वक्त क्यूआरटी को लीड करने का जिम्मा था, जब 2004 में आतंकियों ने जम्मू रेलवे स्टेशन पर हमला किया और 7 लोगों की हत्या कर दी। लेफ्टिनेंट त्रिवेणी ने आतंकियों का पीछा किया और जान गंवाने से पहले दो को मार गिराया। मैं उनकी मां पुष्पलता के साथ किचन में आ गई और वह अपने बेटे की बातें सुनाते हुए हमारे लिए चाय बनाने लगीं।

वो बोलीं, ‘त्रिवेणी को तो काम करने की जरूरत ही नहीं थी। इतनी प्रॉपर्टी, लीची के बागीचे....लेकिन बचपन से ही उसको पैसों से नहीं, लोगों से प्यार था। शादी की पूरी तैयारी हो चुकी थी, मेन्यू डिसाइड हो रहा था जब हमें खबर मिली।’ उनके लिए अपना गम, गरिमा के पीछे छिपा पाना नामुमकिन हो रहा था। बाहर गेट पर जब हमनें पूछा कि क्या वो अक्षय की कार के साथ फोटो खिंचवाएंगी तो मां बोलीं, ‘हमारे भी बच्चे की कार है’, फिर अक्षय की कार पर हाथ रखकर बोलीं, ‘कितने प्यारे, निडर और दिलेर थे हमारे शेर बच्चे।’

हम उस दिन करगिल के पहले हीरो कैप्टन सौरभ कालिया की फैमिली से मिलने जा रहे थे। सौरभ की मम्मी हैं विजया दीदी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और बोलीं, ‘मेरा बड़ा मन था आपसे मिलने का...विकास को भी कई बार बोला, अच्छा हुआ आप लोग आए।’ विजया दीदी सौरभ की कई कहानी सुनातीं हैं। कहने लगीं, ‘एक बार फैमिली में कोई गुजर गए थे, तो लोगों को रोते और उदास देखकर सौरभ बोला, मम्मी ये क्या है, डेथ तो कलरफुल होनी चाहिए...जब सौरभ शहीद हुआ तो लोगों की भीड़ किलोमीटर लंबी थी, सब चिल्ला रहे थे, भारत माता की जय और सौरभ अमर रहे।’ उनकी बातें सुनकर मेरा गला भर आया और आंसुओं को आंखों में रोके रखना बेहद मुश्किल था।

23 साल के सिपाही विकास डोगरा रेजिमेंट के उन 18 सैनिकों में से एक थे जो 2015 में मणिपुर में शहीद हुए। उनकी बस पर यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट के उग्रवादियों ने हमला किया था। आपने यदि उरी मूवी देखी है तो याद होगा फिल्म की शुरुआत मएक एम्बुश से होती है। जिसका हमारे सैनिक जवाब देते हैं। हिमाचल के एक गांव में विकास के पेरेंट्स रहते हैं। उनकी ज्यादा उम्र भी नहीं, आंखें दर्द से नम और उनकी बातें गुमसुम। विकास की मां, पिता और दादी को समझाती हैं, फिर अपनी बेटी की चिंता करते हुए कहती हैं, ‘बहन को भाई के जाने का बहुत दुख है, हमारी तो जिंदगी यूं ही कट जाएगी, पर उसे भाई का प्यार कहां से मिलेगा।’

कैप्टन सौरभ कालिया की मां विजया दीदी से मिलकर सौरभ की कहानियां सुनी थीं, वक्त कैसे गुजर गया पता नहीं चला।

हममें से कितने लोग मेजर सुधीर वालिया के बारे में जानते हैं? इंडिया के रैंबो रियल हीरो हैं वह। 4 जाट रेजिमेंट के मेजर सुधीर वालिया श्रीलंका में पीस कीपिंग फोर्स का हिस्सा थे। उन्होंने पैरा स्पेशल फोर्स को चुना, करगिल युद्ध लड़े, सेना प्रमुख जनरल वेद मलिक के एडीसी चुने गए, दो बार सियाचिन ग्लेशियर पर पोस्टेड रहे और जम्मू कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कई ऑपरेशन्स को अंजाम दिया।
किसी वक्त में जोश से सराबोर रहनेवाली उनकी मां अब बोल भी नहीं पातीं और चलना फिरना भी बंद है। उनके दिमाग में खून के थक्के जम गए थे और फिर स्ट्रोक। मैंने जब कहा, ‘आप तो शेर की मां हैं’, तो उनकी आंखों में चमक थी, उन्होंने सिर हिलाकर हामी भी भरी और मेरी हथेली को अपनी मुट्‌ठी में भींच लिया।

मेजर शिखर के पेरेंट्स अरविंद कुमार और पूनम थापा हैं। उनकी मां कहती हैं, ‘क्या करें जीना तो पड़ेगा, जब मैं सुवीर (अपने पोते) को देखती हूं तो और बुरा लगता है। कम से कम हम पेरेंट्स को शिखर के साथ 30 साल मिले, बहन के 24 साल और बीवी को 2 साल, लेकिन बेचारे इस बच्चे को तो पिता का प्यार बस 2 महीने ही नसीब हुआ।’ शिखर की पत्नी सुविधा ने अपने पति के नक्शे कदम पर चलने का फैसला किया। वह ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में वह कैडेट है। और बेटा सुवीर अपने दादा दादी के पास।

वैसे तो सभी हीरो और उनके बहादुर पेरेंट्स के साथ मैं न्याय नहीं कर सकी हूं। लेकिन कैप्टन अनुज नैय्यर, मेजर पी आचार्य, कैप्टन अमोल कालिया, कैप्टन उदयभान सिंह, कैप्टन देविंदर सिंह जस, राइफलमैन सोहनलाल, कैप्टन अमित भारद्वार, कैप्टन पवन कुमार, नायक चितरंडन देबारम, मेजर कुनाल गोसावी, कांस्टेबल एच गुरू, फ्लाइट लेफ्टिनेंट समीर अबरोल, सिपाही रविकांत ठाकुर उनमें से हैं जो मेरी ताकत का हिस्सा रहेंगे और उनकी बदौलत हमारे देश का झंडा उंचा।

हाल ही में हंदवाड़ा एनकाउंटर में हमने 5 वीरों को खो दिया, मातृभूमि की रक्षा करते, अधर्म से धर्म का युद्ध चलता रहेगा। हर वो युवा सैनिक जो युद्ध भूमि में धोखेबाज दुश्मन से मुकाबले को दाखिल होता है, यह जानकर कि उसका लौटना असंभव है, आज का अभिमन्यु है। अभिमन्यु की तरह उनमें काबीलियत है हिम्मत और शौर्य भी, दुश्मन के चक्रव्यूह में घुसने और उसे तोड़ने का।

हां वह मारे गए हैं लड़ते हुए, लेकिन उनकी महिमा हमेशा जिंदा रहेगी। इन शहीद सैनिकों को सैल्यूट कर और उनके खूबसूरत और अद्भुत परिवारों से मिलकर हमारी जिंदगी और ज्यादा अमीर और सार्थक हो गई है।

अब हमें अपने उन बेटों के फोन नहीं आते, चिटि्ठयां भी नहीं मिलतीं लेकिन वो हमेशा हमारे साथ हैं। आश्चर्य लगेगा लेकिन मेरी तरह की मांएं जो सांस लेती हैं तो हर सांस में जी रहा होता है उनका बेटा। वो अपने भाई बहनों के जरिए भी जिंदा रहते हैं, और हां अगर शादी शुदा हैं तो पत्नी और बच्चों में भी। एक मां आसपास के बच्चों में अपने बेटे को देखती है। मुझे लगता है, ‘हम सब के चंदा और सूरज जैसे बच्चे अब एक साथ गगन के तारों में चमकते हैं।’

मेरी ओर से आप सभी को हैप्पी मदर्स डे। ऊपर वाला आपके परिवारों को खुशी और साथ दे, हमेशा। मैं उम्मीद करती हूं आप आजादी और सुरक्षा के लिए लड़नेवाले हमारे सैनिकों के लिए गर्व और सम्मान महसूस करते होंगे।

जय हिंद की सेना। जय हिंद।



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2017 की बात है, अक्षय का बर्थडे था, मुझे रोता देख मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की मां धनलक्ष्मी ने मुझे ऐसे संभाला था। (साड़ी में मेजर उम्मीकृष्णन की मां और उनके बगल में सूट पहने मेघना गिरीश)


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आज मदर्स डे है। मई का दूसरा रविवार जो इस खास दिन को मनाने के लिए दर्ज हो चुका है। वह दिन जब मांओं की दुनिया तोहफे, फूल और खिदमतों से गुलजार हो जाती है। इसका ये मतलब हरगिज नहीं कि बाकी दिनों में इनमें से कुछ मां के हिस्से नहीं आता। या फिर ये भी नहीं कि यदि मदर्स डे पर ऐसा नहीं होता तो वह मां कुछ कम खास है।

पर जो दिन ही खास है तो लाजमी है मां की खूबियों की एक बार फिर गिनती कर ली जाए। आंकड़ों में उन्हें समेटना तो असंभव है लेकिन हौले से इसमें उन्हें खोजा और गुना जाए। गिनती जो बताती है कि भारतीय मांएं क्यों खास हैं...

वो मां है, बच्चों को अकेले भी संभाल सकती है
2019 में यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट आई थी। रिपोर्ट का टाइटल था ‘द प्रोग्रेस ऑफ वुमन 2019-20'। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 10.1 करोड़ सिंगल मदर हैं। जबकि, 4.5 करोड़ सिंगल मदर भारत में हैं।
इनमें से भी 1.3 करोड़ ऐसी सिंगल मदर हैं, जो अपने बच्चों के साथ अकेली ही रहती हैं। बाकी 3.2 करोड़ बच्चों के साथ ससुराल में या रिश्तेदारों के साथ रहती हैं।

वो मां है, बच्चों के लिए अपना करियर भी दांव पर लगा सकती है
2018 में अशोका यूनिवर्सिटी ने ‘प्रेडिकामेंट ऑफ रिटर्निंग मदर्स' नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि, 73% कामकाजी महिलाएं मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देती हैं।

50% महिलाएं ऐसी होती हैं, जो 30 साल की उम्र में बच्चों की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ देती हैं। सिर्फ 27% महिलाएं ही हैं, जो मां बनने के बाद दोबारा काम पर लौटती हैं। हालांकि, इनमें से 16% ऐसी होती हैं, जो सीनियर पोजिशन पर होती हैं।

वो मां है, दुनिया मॉडर्न हो रही तो वो भी मॉडर्न हो गई
टेक्नोलॉजी ने पूरी दुनिया को मॉडर्न बना दिया है। तो इससे भला भारतीय मां कैसे दूर रहतीं। पिछले साल हुए yougov के सर्वे में 70% मांओं ने माना था कि वो बच्चों की देखभाल के लिए स्मार्टफोन की मदद लेती हैं।

इस सर्वे में शामिल 10 में से 8 (79%) मांओं का कहना था कि टेक्नोलॉजी ने पेरेंटिंग को आसान बना दिया है। जिन मांओं के बच्चों की उम्र 3 साल से कम थी, उनमें से 54% और जिनके बच्चों की उम्र 4 साल से ऊपर थी, उनमें से 42% मांओं ने ये भी माना था कि वो बच्चों को संभालने के लिए पेरेंटिंग एप्स की मदद लेती हैं।

वो मां है, वो बच्चों को हमेशा खुद से आगे रखती है
2018 में फ्रैंक अबाउट वुमन नाम की संस्था ने 'ग्लोबल मदरहुड सर्वे' किया था। इस सर्वे में सामने आया था कि ऑस्ट्रेलिया की मांएं जहां अपने बच्चों से पहले खुदको रखती हैं, वहीं भारतीय मांएं खुद से पहले अपने बच्चों को रखती हैं। इस मामले में भारतीय मांएं, ऑस्ट्रेलियाई मांओं से 36 गुना ज्यादा आगे हैं।

इस सर्वे में ये भी सामने आया था कि, 65% भारतीय मांओं को बच्चे की सफलता को लेकर चिंता रहती है। इसके उलट चीन की 71% मांएं बच्चों की सफलता को लेकर चिंता नहीं करतीं।

हालांकि, भारतीय मांएं ग्लोबल एवरेज की तुलना में ज्यादा स्ट्रिक्ट भी होती हैं। ग्लोबल एवरेज 7% का है। जबकि, 9% भारतीय मांएं बच्चों के प्रति स्ट्रिक्ट रहती हैं।

वो मां है, इसलिए लॉकडाउन में भी उसे खुद से ज्यादा बच्चे की हेल्थ की चिंता है
कोरोना को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन है। ऐसे में भारतीय मांओं को सबसे ज्यादा चिंता अपने बच्चों की हेल्थ और साफ-सफाई को लेकर है। Momspresso के सर्वे में ये बात सामने आई है।

इस सर्वे के मुताबिक, 78% मांएं बच्चों की हेल्थ को लेकर चिंता में रहती हैं। उन्हें डर है कि कहीं लॉकडाउन के बीच में बच्चों की तबियत न बिगड़ जाए। वहीं, 74% मांएं बच्चों की साफ-सफाई को लेकर स्ट्रेस में रहती हैं।



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If the day is special, then it is imperative to count the characteristics of the mother once again: 5 research reports detailing the characteristics of Indian mothers


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