Saturday, March 28, 2020

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वॉशिंगटन. कोरोनावायरस महामारी की वजह से अमेरिकामें पहली बार कोई नवजात की मौत का मामला सामने आया है। शनिवार को अमेरिका केशिकागो में इस महामारी से संक्रमित नवजात बच्चे ने दम तोड़ दिया। बच्चाइलिनॉय राज्य का रहने वाला था। उसकीवास्तविक उम्र का खुलासा नहीं किया गया है।स्वास्थ्य विभाग का दावाहै कि दुनिया में इस तरह का यहपहला मामला है। इससे पहले शिकागो में एक साल से कम उम्र के बच्चे की जान गई थी।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में गवर्नर जेबी प्रित्जकर ने कहा, 'नवजात को 24 घंटे पहले कोरोनावायरस का संक्रमण हुआ था। उसकी मौत की खबर ने मुझे हिलाकर रख दिया। उसके मौत की पूरी जांच की जा रही है।' उन्होंने बताया, 'मैं जानता हूं, एक नवजात की मौत की खबर कितनी दुखदायी हो सकती है। यह पूरे परिवार के बेहद दुखभरा समय है, जो पूरे साल भर से बच्चे के आने की खुशियां संजो रहा था।'

इलिनॉय में अब तक 13 मौतें हुई हैं, इनमें नवजात भी शामिल है।

वायरसयुवाओं मेंदुर्लभ ही गंभीर रूप लेता है
यूएस के हेल्थ डायरेक्टर नेगोजी एजिक ने भी माना कि ऐसा मामला पहली बार देखा गया। उन्होंने कहा, 'वैश्विक महामारी का रूप ले रहे कोरोनावायरस से अब तक किसी नवजात की मौत का मामला सामने नहीं आया था।' हालांकि, फ्रांस के स्वास्थ्य अधिकारी जेरोम सॉलोमन ने पिछले हफ्ते बताया था कि पेरिस के इले-द-फ्रांस इलाके में एक 16 साल की लड़की की मृत्यु कोरोनावायरस से हुई है। उन्होंने बताया था कि युवाओं में कोरोनावायरस के मामले दुर्लभ हैं, लेकिन जिनमें भी देखे गए हैं वे गंभीर रूप लेते हैं।

बूढ़े लोगों को ज्यादा प्रभावित करता वायरस
एक शोध के मुताबिक, चीन में तीन महीनों में कोरोनावायरस बीमारी से 2100 बच्चे संक्रमित हुए थे, लेकिन मौत सिर्फ एक बच्चे की हुई। इसकी उम्र 14 साल थी। अध्ययन ने पाया कि संक्रमित 6% बच्चे ही गंभीर रूप से बीमार हुए।कई अध्ययनों में पाया गया है कि कोरोनावायरस बुजुर्गों, शारीरिक रूप से कमजोर और दूसरी बीमारियों से ग्रसित रोगियों को ज्यादा प्रभावित करता है, क्योंकि ऐसे लोगों की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम होती है और उन्हें इस वायरस से निपटने का मौका नहीं मिलता।

अमेरिका में न्यूयॉर्क बना एपिसेंटर
अमेरिका में संक्रमितों की संख्या एक लाख 23 हजार से ज्यादा हो गई है। 2,221 लोगों की मौत हुई है। देश में संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले न्यूयॉर्क से सामने आए हैं। यहां 53 हजार से ज्यादा संक्रमित हैं, जबकि 782 लोगों की मौत हुई है।इलिनॉय में अब तक 13 मौतें हुई हैं, इनमें नवजात भी शामिल है।



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मौत कोरोनावायरस से ही हुई है, इस दावे की जांच की जा रही है। फाइल फोटो


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न्यूयॉर्क टाइम्स से विशेष अनुबंध के तहत. अब तक यह देखा गया है कि कोरोनावायरस से नवजात ज्यादा प्रभावित नहीं हुए हैं,लेकिन, तीन नई रिसर्च के मुताबिक, यह वायरस गर्भाशय में भ्रूण तक पहुंच सकता है। हालांकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि इनस्टडी कोपूरी तरह सही नहीं माना जा सकता, क्योंकि ये अभी बहुत छोटे स्तर पर हुई हैं। इनके आधार पर अभी यह नहीं कह सकते कि कोरोनावायरस सच में गर्भाशय की दीवारों को पार कर सकता है।

गर्भाशय की दीवारें किसी भी वायरस और बैक्टीरिया के लिए सबसे बड़ा अवरोध होती है। इस पर स्टडी कर चुकींपीट्सबर्ग यूनिवर्सिटी की डॉ. कैरोलिन कोयने कहती हैं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि कोरोनावायरस गर्भाशय की दीवारों को पार कर सकता है। फिर भी, नई स्टडी में यह बात सामने आई है तो यह चिंता का विषय है, क्योंकि अगर वाकई वायरस गर्भाशय में पहुंच सकता है तो यह भ्रूण के लिए एक खतरा ही होगा।’’

गर्भवती को सांस से जुड़ी बीमारियों की आशंकाज्यादा रहती है
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में प्रसव के दौरान होने वाली महामारियों की विशेषज्ञ डॉ. क्रिस्टीना चेंबर्स बताती हैं, ‘‘गर्भवती महिलाओं को सांस से जुड़ी बीमारियों के संक्रमण की आशंकाज्यादा रहती है और यह उनके और उनके बच्चे के लिए हमेशा से एक खतरा रहाहै। हम इस बारे में अब तक कुछ नहीं जानते हैं। यह भी साफ नहीं है कि इस वायरस के गर्भ में पहुंचने के बाद भ्रूण पर क्या असर होगा।’’

गर्भाशय की दीवारें वायरस को रोक लेती हैं,एंटीबॉडीज को जाने देती हैं
आमतौर पर गर्भाशय की दीवारें नुकसान पहुंचाने वाले वायरस और बैक्टीरिया को भ्रूण तक पहुंचने से रोक लेती हैं। ये सिर्फ एंटीबॉडीज को जाने देती हैं, ताकि जन्म से पहले और जन्म के ठीक बाद किसी भी तरह के विषाणु से नवजात को सुरक्षित रखा जा सके। हालांकि, कुछ वायरस इन दीवारों को पार भी कर जाते हैं जैसे हाल ही में जीका वायरस को ऐसा करते पाया गया था। अगर जीका एक से तीन महीने के गर्भ के दौरान भ्रूण के संपर्क में आ जाता है तो इससे बच्चे का मस्तिष्क विकास प्रभावित होता है। उसे गहरा न्यूरॉलाजिकल नुकसान भी होने की आशंकारहती है।

डॉ. कोयने कहती हैं, ‘‘जीका की तरह कोरानावायरस भ्रूण को इतना नुकसान पहुंचाता नजर नहीं आता,लेकिन अगर ऐसा होता है तो गर्भ के गिरनेया समय से पहले प्रसव के ज्यादा मामले सामने आ सकते हैं।’’

तीन स्टडी में नवजातों में कोरोनावायरस को पहचानने वाली एंटीबॉडीज देखीं गई
मार्च में मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ में छपे के एक आर्टिकल में वुहान में नौ नवजातों पर हुए अध्ययन के मुताबिक, मां से भ्रूण तक कोरोनावायरस पहुंचने का कोई मामला सामने नहीं आया। लेकिन गुरुवार को अमेरिका के जामा पेपर्स में छपी दो स्टडी के मुताबिक, डॉक्टर्स ने नवजातों में कुछ एंटीबॉडीज पायीं, जो वायरस को पहचान सकती थीं। यह इस ओर इशारा करती है कि एंटीबॉडीज की तरह ही कोरोनावायरस भीमां से भ्रूण में पहुंच सकता है।दोनों ही स्टडी में नवजातों में इम्यूनोग्लोब्यूलिन-जी नाम की एंटीबॉडीज को अच्छी संख्या में पाया गया। ये मां से ही भ्रूण तक पहुंचती है।तीन नवजातों में अलग तरह की एंटीबॉडीज भी देखी गईं। इन्हें इम्यूनोग्लोब्यूलिन-एम (आईजी-एम) नाम से जाना जाता है, ये भी कोरोनावायरस को पहचान सकती हैं।

वुहान मेटरनल एंड चाइल्ड हेल्थ हॉस्पिटल में वॉलेंटियर एक गर्भवती महिला कोकोरोनावायरस टेस्ट के लिए ले जाते हुए। - फाइल

डॉक्टर्स के मुताबिकतीनों स्टडी में कुछ कमियां भी थीं
इन स्टडी में कमी बताते हुए डॉ. कोयने कहती हैं, ‘‘हो सकता है कि वायरस गर्भाशय की दीवार को पार कर गया हो, लेकिन इन स्टडी में गर्भाशय की दीवारों, गर्भनाल के रक्त और भ्रूम के आसपास के द्रव में वायरस को नहीं खोजा गया।’’ द लांसेट जर्नल में छपी स्टडी पर काम करने वाले नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. वी झांग बताते हैं, ‘‘जामा पेपर्स में छपी स्टडी में मां से भ्रूण में वायरस जाने के सबूत अप्रत्यक्ष थे, इनके आधार पर ये नहीं कहा जा सकता कि नवजात में वे एंटीबॉडीज मां से ही आई होंगी।’’



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अमेरिका में गर्भवती और नवजातों पर कोरोनावायरस के असर का अध्ययन शुरू हो चुका है। - प्रतीकात्मक चित्र


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वॉशिंगटन. दुनिया के सभी 195 देश कोरोनावायरस की चपेट में हैं। रविवार सुबह तक 6 लाख 63 हजार 541 संक्रमितों की पुष्टि हुई। 30,873 लोग जान गंवा चुके हैं। इसी दौरान एक लाख 42 हजार 175 स्वस्थ भी हुए। यूरोप में मौतौं का आंकड़ा 20 हजार से ज्यादा हो गया है। वहीं, अमेरिका में 2200 से ज्यादा जानें गई हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शनिवार देर रात कहा कि न्यूयॉर्क और उसके पड़ोसी राज्यों में क्वारैंटाइन नहीं लगाया जाएगा।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि कोरोनावायरस के प्रसार के बीच न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और कनेक्टिकट के लिए ट्रैवल एडवाइजरी जारी किया जाएगा। वे थोड़े समय से इन राज्यों को क्वारैंटाइन करने पर विचार कर रहे थे। व्हाटइट हाउस के कोरोनावायरस टास्क फोर्स की सिफारिश और न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और कनेक्टिकट के गवर्नरों से बातचीत के बाद मैंने कुछ दिनों के लिए इन जगहों पर सख्त ट्रैवल एडवाइजरी जारी करने के लिए कहा है।’’

अमेरिका: 1 लाख 23 हजार से ज्यादा संक्रमित
अमेरिका में संक्रमितों की संख्या एक लाख 23 हजार से ज्यादा हो गई है। केवल एक दिन में संक्रमण के मामले 15 हजार से ज्यादा बढ़े हैं। वहीं, यहां 2221 लोगों की मौत हुई है।

न्यूयॉर्क में एक सुपरमार्केट के बाहर अंदर जाने के लिए इंतजार करते लोग।

इटली: 3 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म हो रहा
यूरोप में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देश इटली है। शनिवार को यहां 889 लोग मारे गए। अब तक दस हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 92,472 लोग संक्रमित हैं। सरकार ने यहां 9 मार्च से 3 अप्रैल तक लॉकडाउन लगा दिया था। देश के करीब 6 करोड़ लोग अपने घरों में कैद है। इटली के प्रधानमंत्री ग्यूसेप कोंटे लॉकडाउन की समय सीमा और बढ़ा सकते हैं।

इटली के बोन शहर में स्थित यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में कोरोना मरीज को इलाज के लिए जाते चिकित्सक।

स्पेन: अब तक करीब 6 हजार लोगों की मौत
स्पेन यूरोप का दूसरा सबसे प्रभावित देश है। यहां अब तक 5982 लोगों की मौत हुई है, जबकि 73,235 व्यक्ति संक्रमित हैं। यहां भी सरकार ने 11 अप्रैल तक लॉकडाउन लगा दिया है। चीन ने शनिवार को स्पेन को 12 लाख मास्क दिए हैं।



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कोरोनावायरस के कारण न्यूयॉर्क स्थित चाइना टाउन खाली हुआ।


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नई दिल्ली.दुनिया के लिए मार्च का महीना बेहद खराब रहा। वो इसलिए, क्योंकि मार्च के 27 दिनों में दुनियाभर में कोरोनावायरस के मामले 573% बढ़ गए। लेकिन इसी दौरान जिस चीन से ये वायरस निकला, वहां सिर्फ 1.7% ही नए मामले आए। 1 मार्च तकदुनियाभर में 88 हजार 585 और चीन में 80 हजार 26 मामले थे। इस तरह से उस समय दुनिया के कुल मामलों में चीन की हिस्सेदारी 90% तक थी। लेकिन 27 तारीख तक दुनिया में कोरोना के 5.96 लाख और चीन में 81 हजार 394 मामले हो गए। अब कुल मामलों में चीन की हिस्सेदारी घटकर 15% से भी कम हो गई।

मौतें : दुनिया में 27 दिन में मौतों का आंकड़ा 798% बढ़ा, चीन में 13% ही
मार्च के इन 27 दिनों में मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता रहा। 1 मार्च तक दुनियाभर में 3 हजार 50 मौतें हुई थीं, उनमें से 95% से ज्यादा यानी 2 हजार 912 मौतें अकेले चीन में हुई थी। इसके बाद 27 मार्च तक चीन में मौत का आंकड़ा बढ़कर 3 हजार 295 पर पहुंच गया, लेकिन दुनियाभर में ये आंकड़ा 798% बढ़कर 27 हजार 371 पर आ गया।

रिकवरी : चीन में अब तक 92% मरीज ठीक हुए, दुनिया में यही आंकड़ा 22% का
चीन में कोरोनावायरस का पहला केस 27 दिसंबर को सामना आया था। उसके बाद से 27 मार्च तक चीन में 81 हजार 394 मामले आ चुके हैं। इनमें से 92% यानी 74 हजार 971 मरीज ठीक भी हो गए। जबकि, 3 हजार 295 मरीजों की मौत हो गई। जबकि, दुनियाभर में अब तक 5.96 लाख मामले मिले हैं, जिनमें से 22% यानी 1.33 लाख से ज्यादा मरीज ही रिकवर हुए हैं।

और भारत में : 885 नए मरीज आए, 22 मौतें हुईं

मार्च का महीना हमारे देश के लिए भी बहुत खराब रहा। देश में कोरोनावायरस का पहला केस 30 जनवरी को केरल में आया था। उसके बाद 1 और 2 फरवरी को भी केरल से ही 1-1 केस और आए। लेकिन कुछ ही समय में ये तीनों मरीज ठीक भी हो गए। लेकिन मार्च के महीने में देश में 2 मार्च के बाद से रोजाना मामले बढ़ते गए। इस महीने 27 मार्च तक देश में 886 मामले आए। इस दौरान 22 मौतें भी हुईं।

इस महीने सबसे ज्यादा मामले अमेरिका में बढ़े, लेकिन सबसे ज्यादा मौतें इटली में हुईं

देश मामले बढ़े मौतें हुईं
अमेरिका 1.04 लाख+ 1,695
इटली 85,370 9,105
स्पेन 65,661 5,138
जर्मनी 50,792 351
फ्रांस 32,864 1,993


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In 27 days of March, 1.7% of Corona cases occurred in China, 383 deaths occurred, but 573% cases increased in the world and 27 thousand deaths occurred.


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नई दिल्ली.दुनिया के लिए मार्च का महीना बेहद खराब रहा। वो इसलिए, क्योंकि मार्च के 27 दिनों में दुनियाभर में कोरोनावायरस के मामले 573% बढ़ गए। लेकिन इसी दौरान जिस चीन से ये वायरस निकला, वहां सिर्फ 1.7% ही नए मामले आए। 1 मार्च तकदुनियाभर में 88 हजार 585 और चीन में 80 हजार 26 मामले थे। इस तरह से उस समय दुनिया के कुल मामलों में चीन की हिस्सेदारी 90% तक थी। लेकिन 27 तारीख तक दुनिया में कोरोना के 5.96 लाख और चीन में 81 हजार 394 मामले हो गए। अब कुल मामलों में चीन की हिस्सेदारी घटकर 15% से भी कम हो गई।

मौतें : दुनिया में 27 दिन में मौतों का आंकड़ा 798% बढ़ा, चीन में 13% ही
मार्च के इन 27 दिनों में मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता रहा। 1 मार्च तक दुनियाभर में 3 हजार 50 मौतें हुई थीं, उनमें से 95% से ज्यादा यानी 2 हजार 912 मौतें अकेले चीन में हुई थी। इसके बाद 27 मार्च तक चीन में मौत का आंकड़ा बढ़कर 3 हजार 295 पर पहुंच गया, लेकिन दुनियाभर में ये आंकड़ा 798% बढ़कर 27 हजार 371 पर आ गया।

रिकवरी : चीन में अब तक 92% मरीज ठीक हुए, दुनिया में यही आंकड़ा 22% का
चीन में कोरोनावायरस का पहला केस 27 दिसंबर को सामना आया था। उसके बाद से 27 मार्च तक चीन में 81 हजार 394 मामले आ चुके हैं। इनमें से 92% यानी 74 हजार 971 मरीज ठीक भी हो गए। जबकि, 3 हजार 295 मरीजों की मौत हो गई। जबकि, दुनियाभर में अब तक 5.96 लाख मामले मिले हैं, जिनमें से 22% यानी 1.33 लाख से ज्यादा मरीज ही रिकवर हुए हैं।

और भारत में : 885 नए मरीज आए, 22 मौतें हुईं

मार्च का महीना हमारे देश के लिए भी बहुत खराब रहा। देश में कोरोनावायरस का पहला केस 30 जनवरी को केरल में आया था। उसके बाद 1 और 2 फरवरी को भी केरल से ही 1-1 केस और आए। लेकिन कुछ ही समय में ये तीनों मरीज ठीक भी हो गए। लेकिन मार्च के महीने में देश में 2 मार्च के बाद से रोजाना मामले बढ़ते गए। इस महीने 27 मार्च तक देश में 886 मामले आए। इस दौरान 22 मौतें भी हुईं।

इस महीने सबसे ज्यादा मामले अमेरिका में बढ़े, लेकिन सबसे ज्यादा मौतें इटली में हुईं

देश मामले बढ़े मौतें हुईं
अमेरिका 1.04 लाख+ 1,695
इटली 85,370 9,105
स्पेन 65,661 5,138
जर्मनी 50,792 351
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In 27 days of March, 1.7% of Corona cases occurred in China, 383 deaths occurred, but 573% cases increased in the world and 27 thousand deaths occurred.


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कोच्चि से बाबू के पीटर.केरल देश का पहला राज्य था, जहां कोराेनावायरस का मामला सामने आया था। शनिवार को यहां इससे पहली मौत हुई है। सबसे पहले वुहान से लौटे तीन छात्र काेराेना पॉजिटिव मिले थे। ये छात्र कासरगोड, त्रिशूर और अलपुझा जिले के थे। तुरंत कदम उठाते हुए इन्हें आइसोलेशन में रखा गया और इनके संपर्क में आए करीब 3 हजार लोगों को घरों में क्वारेंटाइन में भेज दिया गया। इन मामलाें के सामने आने के बाद राज्य में आपदा घोषित कर दी गई थी, लेकिन चार दिन में स्थिति नियंत्रण में आ गई और आपदा की चेतावनी वापस ले ली गई। फिर आठ मार्च को अचानक एक साथ पांच मामले सामने आए। इनमें से तीन लोग इटली से लौटे एक ही परिवार से थे। दो लोग वो थे, जो इनके संपर्क में आए थे। इसके बाद राज्य में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। नौ मार्च को एक साथ तीन और मामले सामने आए। इसके बाद से यह सिलसिला जारी है। अब 69 साल के एक व्यक्ति ने कोच्चि के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में दम ताेड़ दिया है। यह राज्य में कोराना वायरस से पहली मौत है। यह व्यक्ति 22 मार्च को ही दुबई से लौटा था। जबकि देश में अब तक बीस से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।

14 जिलों में मिले पॉजिटिव
केरल देश में काेराेना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित दूसरा राज्य है। यहां 187 मामले पॉजिटिव पाए गए हैं। इनमें से 11 विदेशी नागरिक हैं। 14 जिलों में पॉजिटिव मामले मिल चुके हैं। इसमें कासरगोड जिले में 85 से अधिक मामले सामने आए हैं। यह राज्य का सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र बन गया है। कासरगोड सेंट्रल यूनिवर्सिटी को कोविड प्राइमरी सेटर केयर सेंटर में तब्दील कर दिया गया है। कासरगोड मेडिकल कॉलेज में भी विशेष इंतजाम किया जा रहा है। शनिवार को यहां हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। पड़ाेसी राज्य ने जिले से लगी अपनी सीमा सील कर दी है। इधर, पूरे केरल में एक लाख 10 हजार से अिधक लोग निगरानी में हैं। इन्हें राज्य के 616 अस्पतालों में रखा गया है। केरल में काेरोनावायरस के मरीजों पर एचआईवी की दवा देने के प्रभावशाली प्रयोग के बाद सरकार ने तालुका स्तर के अस्पतालों में यह दवा उपलब्ध कराने का फैसला किया है।

राज्य में कम्युनिटी किचन खोले जा रहे
अब तक यह दवा सिर्फ जिला स्तर के अस्पतालों में ही दी जाती थी। राज्य सरकार मरीजाें के इलाज के लिए क्यूबन मेडिसिन के इस्तेमाल पर भी विचार कर रही है। इसके लिए ड्रग कंट्रोलर अथॉरिटी से अनुमति मांगी जाएगी। आम लोगों को दिक्कत न हो इसलिए पूरे राज्य में कम्युनिटी किचन खाेले जा रहे हैं। कृषि विभाग गांवों में सब्जियों के बीज किसानोें को उपलब्ध कराने का फैसला किया है। यह व्यवस्था स्थानीय प्रशासन के माध्यम से की जाएगी। एक और खास बात यह देखने में आई है कि केरल के मंदिरों में भक्तों के न पहुंचने से बंदर हिंसक हो रहे हैं, इसे देखते हुए प्रशासन ने मंदिरों के बाहर बंदरों के लिए खाने-पीने का इंतजाम किया है।
एक लाख युवाओं काे तैयार किया

  • युवा मामलों का विभाग काेराेना से लड़ने के लिए 22 से 24 साल के युवाआें को तैयार कर रहा है। करीब 1 लाख युवा इसमें काम करने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं।
  • राज्य में 4603 कैम्प शुरू किए गए हैं। इनमें बाहर के मजदूरों के रहने का इंतजाम है। इन मजदूरों को हिन्दी, बंगाली और उड़िया भाषा में जानकारियां दी जा रही हैं।
  • राज्य में लोगों को मुफ्त भोजन उपलब्ध करवाने के लिए करीब 748 कम्युनिटी किचन शुरू किए गए हैं। ऐसे ही 300 और किचन आने वाले दिनों में शुरू किए जाएंगे।


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यहां कम्युनिटी किचन खाेले गए हैं।


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नई दिल्ली.देशभर मेंकोरोनावायरस के अभी तक1029 मामले सामने आ चुके हैं। शनिवार को मध्यप्रदेश में 5 नए केस सामने आए हैं।

शनिवार को कोरोना संक्रमणके179 नए केस आए। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, यह देश में एक दिन में संक्रमण के सबसे ज्यादा सामने आने वाले मामले हैं। इनमें महाराष्ट्र के 30, कर्नाटक के 17,उत्तर प्रदेश के 16,जम्मू कश्मीर के 13,दिल्ली के 9,तेलंगाना और गुजरात के 8-8, केरल के 6,मध्य प्रदेश के 5,राजस्थान-तमिलनाडु के 4-4, अंडमान निकोबार और पश्चिम बंगालके 3-3, छत्तीसगढ़-उत्तराखंड के 1-1 मामले शामिल हैं।वहीं, भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में अब तकसंक्रमण के 918 मामले बताए हैं, जिनमेंसे 819 एक्टिव मरीजहैं। हालांकि,covid19india.org के मुताबिक देश में संक्रमितों की संख्या 1024 है। एक दिन में संक्रमण के सबसे ज्यादा 151 मामले शुक्रवार को सामने आए थे, जबकि3 लोगों की मौत हुई थीऔर 25 लोग ठीक हुए थे। इससे पहले 23 मार्च को एक दिन में 102 लोग संक्रमित हुए थे। इधर,पुणे के पास पिंपरी-चिंचवड़ में कोरोनावायरस संक्रमित 5 और मरीज ठीक हो गए हैं। इनकी दूसरी टेस्ट रिपोर्ट भी निगेटिव आई है।नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग के एक अफसर ने बताया कि इन सभी मरीजों की जल्द ही अस्पताल से छोड़ दिया जाएगा। इससे पहले, 14 दिन अस्पताल में आइसोलेशन में रहने के बाद 3 मरीजों की टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई थी। इन्हें शुक्रवार को डिस्चार्ज किया गया था। पिंपरी-चिंचवड़ में अब तक कोरोनावायरस के 12 केस सामने आए हैं। हालांकि, बीते 8 दिनों में एक भी नया मामला सामने नहीं आया।

पंजाब ने कोरोना से लड़ने के लिए केंद्र से 150 करोड़ की मदद मांगी
इधर, पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलवीर सिंह ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को चिठ्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने बताया है कि राज्य में एनआरआई की संख्या बहुत ज्यादा है। इसी महीने 90 हजार अनिवासी भारतीय पंजाब आए हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ने की आशंका है। इससे लड़ने के लिए राज्य को 150 करोड़ के अतिरिक्त फंड की जरूरत पड़ेगी।

राज्यों के हाल
मध्यप्रदेश;कुल संक्रमित- 34: राज्य में शनिवार को 5 नए मामले सामने आए। इससे पहले शुक्रवार कोजबलपुर मेंदो लोगों की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। दोनों नए मरीज पहले से संक्रमित सराफा व्यापारी के यहां काम करते हैं। अब इंदौर में 16, जबलपुर में 8, भोपाल-उज्जैन में 3-3, शिवपुरी में 2 औरग्वालियर में 2 पॉजिटिव हैं। प्रदेश में अब तक 2 लोगों की मौत हुई है।
राजस्थान; कुल संक्रमित- 54: आज4 नए मामले सामने आए।अजमेर में 23 साल का युवक संक्रमित मिला है। वह हाल ही में पंजाब से लौटा था। 21 साल की एक युवती भीलवाड़ा में संक्रमित पाई गई है। भीलवाड़ा में ही बांगड़ हॉस्पिटल केनर्सिंग स्टाफ के दो लोग संक्रमित मिले हैं।राज्य में भीलवाड़ा में सबसे ज्यादा 20 मरीज हैं।
महाराष्ट्र;कुल संक्रमित- 186:महाराष्ट्र में आज 30 नए मामले सामने आए। शुक्रवार को पॉजिटिव मिले 29 मरीजों में से 15 केवल सांगली के थे।सांगली के मरीज पहले से ही संक्रमित लोगों के संपर्क में आए थे।राज्य में मुंबई, पुणे और नागपुर समेत कई शहरों सेमजदूरअपने राज्यों कोपैदल ही लौट रहे हैं। कुछ लोगों को 200-300 किलोमीटर तक का सफर करना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इनसे अपील की है कि वे कहीं न जाएं महाराष्ट्र में उनका पूरा ख्याल रखा जाएगा।
छत्तीसगढ़;कुल संक्रमित- 7:शनिवार को 1नया मामला सामने आया।7 संक्रमितोंमें से 5 मामलेबुधवार से गुरुवार के बीच सामने आए। यहां रायपुर में 3 और बिलासपुर, दुर्ग और राजनांदगांव में 1-1 संक्रमित हैं।इस बीच,राज्य के कृषि मंत्री रवींद्र चौबे का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान किसानों को मंडी सेखाली वाहन लेकर लौटने पर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने निर्देश दिया है कि किसानों को किसी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए।
उत्तरप्रदेश;कुल संक्रमित- 65:आज 16 मामले सामने आए।राज्य में सबसे ज्यादा 9 संक्रमित आगरा में हैं। इसके बाद 8 केस लखनऊ में सामने आए हैं। लॉकडाउन के कारण आसपास के इलाकों और सीमावर्ती राज्यों में मुश्किलों का सामना कर रहे मजदूरों को उत्तर प्रदेश सरकार सरकार बसों के जरिए उनके घर भेज रही है। इसके लिए एक हजार बसों का इंतजाम किया गया।
बिहार; कुल संक्रमित- 11:शनिवार को राज्य में कोरोना संक्रमण के दो नए केस सामने आए।11 संक्रमितोंमें से 10 का इलाज चल रहा है।जबकि 38 साल के मरीज की पटना में 21 मार्च को मौत हो गई थी। कुल मरीजों में6 संक्रमित ऐसे हैं, जिनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं है।यानी, इन लोगों ने देश में या देश से बाहर कहीं यात्रा नहीं की है। राज्य में शुक्रवार कोदो संक्रमित पाए गए थे।
दिल्ली; कुल संक्रमित- 49:यहां आज संक्रमण के 9 मामले सामने आए। इससे पहले यहां 6 लोग ठीक हो चुके हैं और एक मौत हुई है।वहीं, लॉकडाउन के बाद शहर से मजदूरों का पलायन नहीं थम रहा। उन्हें तमाम मुश्किलों का भी सामना करना पड़ रहा है।
पंजाब; कुल संक्रमित- 39:शनिवार को यहां 1 नया मामला सामने आया।शुक्रवार को 5 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई थी। राज्य के 39 संक्रमितों में से 27 लोग पिछले हफ्ते जान गंवाने वाले 70 साल के कोरोना पॉजिटिव बुजुर्ग के परिजन और मिलने वाले हैं।
उत्तराखंड; कुल संक्रमित- 6:आज एक संक्रमित मिला। बुधवार को भी एक कोरोना पॉजिटिव मिला था,जो स्पेन से लौटा था। राज्य में संक्रमण को रोकने की हर संभव कोशिश की जा रही है। शनिवार को यहां चमोली की पुरसादी जिला जेल से उन 15 कैदियों को 6 महीने की पैरोल पर रिहा कर दिया गया, जिन्हें 7 साल से कम सजा हुई है। फिलहाल जेल में 89 कैदी हैं।
केरल; कुल संक्रमित- 182:यहां आज 6 नए मामले सामने आए।सबसे ज्यादा 82केस कासरगोड़ जिले में सामने आए।लॉकडाउन के बीच यहां जरूरी सामानों की कमी हो रही है।मुख्यमंत्री पी विजयन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख नेशनल हाईवे 30 खुलवाने की अपील की है। उनका कहना है कि कर्नाटक पुलिस वहां से जरूरी सामानों के वाहन नहीं आने दे रही।
तमिलनाडु; कुल संक्रमित- 42: शनिवार को यहां 4 नए पॉजिटिव मिले।कुम्बकोणम में 42 साल का व्यक्तिसंक्रमित मिला, जो वेस्टइंडीज से लौटा था। वहीं, काटपड़ी में 49 साल का व्यक्तिसंक्रमित मिला। वह ब्रिटेन से लौटा था। दोनों को वेल्लोर में भर्ती किया गया है। इस बीच,चेन्नई में आइसोलेशन वार्ड में भर्ती तीन मरीजों की शनिवार को मौत हो गई। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वे कोरोना पॉजिटिव थे। उनकी टेस्ट रिपोर्ट का इंतजार है। मृतकों में एक की उम्र 66 साल थी। उन्हें किडनी की गंभीर समस्या थी। 24 साल के दूसरे मृतक को निमोनिया की शिकायत थी। तीसरा मृतक दो साल का बच्चा है, जो ऑस्टियोपेट्रेटिस (हडि्डयों की बीमारी)से पीड़ित था।



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मुंबई (विनोद यादव).कोरोना संकट के बीच चीन की मदद के बिना भारत तीन से चार महीने तक दवाओं का उत्पादन करने में सक्षम है। लिहाजा, दवाओं के दाम बढ़ने की आशंका नहीं है। इसकी दो प्रमुख वजह है। अब चीन से दवा बनाने के कच्चे माल का कन्साइनमेंट समुद्र और वायु दोनों रास्तों से आना शुरू हो गया है। इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईडीएमए) के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अशोक कुमार मदान ने भास्कर को बताया कि चीन से दवा बनाने का कच्चा माल अब आ रहा है। समुद्र के रास्ते से आने वाला सामान 18 दिनों में पहुंचता है। बंदरगाह पर जहाज के आने पर उसे क्वारेंटाइन कर दिया जाता है।

इसमें भी कई दिन लगते हैं।

दवाओं के दाम बढ़ने की आशंका नहीं

इसके अलावा हवाई जहाज से भी सामान आना शुरू हो गया है। हवाई जहाज से अधिक वैल्यू वाला सामान आता है। कंपनियों के पास इस वक्त दवा बनाने के लिए कम से कम तीन से चार महीने का कच्चा माल है। इसमें एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) और फॉर्मूलेशन दोनों हैं। वहीं, इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा- ‘कोरोना की वजह से देश में दवाओं के दाम बढ़ने की बिल्कुल भी आशंका नहीं है। सरकार खुद इसे कंट्रोल करती है। दवा बनाने के कच्चे माल की कीमत चाहे जितनी भी बढ़ जाए, पर साल में न्यूनतम प्रतिशत ही दाम बढ़ाने की अनुमति मिलती है।

इस दवा काे स्टॉक किया जा रहा

आईडीएमए के अनुसार, लोगों ने हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्विन दवा खरीद कर रखनी शुरू कर दी थी। इससे दवा की कमी महसूस हुई। लेकिन, अब कंपनियां इसे बना रही हैं। दवाओं का कच्चा माल जरूर महंगा हो गया है। जैसे हमारे एंटीबायोटिक। ये 90% चीन से ही आते हैं। इसके बाद पैरासिटामॉल का नंबर आता है।



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प्रतीकात्मक फोटो।


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मिलान से मारिया मेजेटी.इटली अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। लॉकडाउन के तीन हफ्ते गुजरने के बाद भी स्थिति सामान्य होती नहीं दिख रही है। हर तरफ सन्नाटा पसरा है। सिर्फ सायरन की आवाजें गूंज रही हैं। अब तक 86,498 पॉजिटिव केस मिले हैं। 9134 मौतें हो चुकी हैं। करीब एक करोड़ की आबादी वाला उत्तरी इटली का लोम्बार्डी क्षेत्र तबाही के मुहाने पर है। देश की जीडीपी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 20% है। यहां सबसे ज्यादा 23,895 संक्रमित मिले हैं। इनमें 5402 लोगों की मौत हो चुकी है। इटली के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रमुख सिलवियो ब्रुसाफेरो कहते हैं कि ‘देश में लॉकडाउन के नियम सख्त करने का असर दिखने लगा है। आंकड़े बता रहे हैं कि पहली बार मामले बढ़ने की दर सिंगल डिजिट (8%) में आ गई है।’ लेकिन एक बात साफ है कि इटली ने इस महामारी की भयावहता समझने और इससे निपटने के लिए पर्याप्त कदम उठाने में देर कर दी। यहां तक कि जब उत्तरी इलाके में यह महामारी रफ्तार पकड़ रही थी, तब भी नेता लोगों को भरोसा देते रहे कि डरने की जरूरत नहीं है।

बेवजह घूमने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया गया

बीमारी के बढ़ने के बाद भी लोगों के एक जगह इकट्टा होने पर ही रोक लगी। दूसरे स्टेप में लोगों को घरों में रहने के निर्देश दिए गए, लेकिन लोग बेपरवाह घूमते रहे। एक हफ्ते में 1 लाख लोगों ने यह नियम तोड़ा। जब अधिकारिक मामले 70 हजार से पार पहुंच गए, तब जाकर सख्ती शुरू की गई। सेना को तैनात किया गया। बेवजह घूमने वाले लोगों पर 3 हजार यूरो का जुर्माना लगाया गया है। केस दर्ज किए जा रहे हैं। इन्हें 5 साल की सजा हो सकती हैं। अब जाकर गलियां सूनी हुई हैं और लोग घरों में हैं। यूरोप में कोरोना के केंद्र बने लोम्बार्डी के अस्पतालों में जगह नहीं बची हैं। सुरक्षा उपकरणों की किल्लत है। खुद डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ इस वायरस से जूझ रहे हैं। यहां 5 हजार से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हैं। 33 डॉक्टर दम तोड़ चुके हैं। इनमें 19 तो लोम्बार्डी से हैं।

यहां 2008-2009 की मंदी से भी बुरे हालात

बर्गेम क्लीनिक की डायरेक्टर डॉ. सिल्विया बिगनािमनी ने अपने यहां नर्स पर पहला कोरोनावायरस का टेस्ट 22 फरवरी को किया था। इसका पॉजिटिव रिजल्ट आने तक स्टॉफ के 7 लोग संक्रमित हो चुके थे और चारों तरफ वायरस फैल चुका था। यहां डॉक्टरों की मदद के लिए रूस और क्यूबा से मेडिकल टीम आई है। विशेषज्ञों के मुताबिक आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है। 2008-2009 की मंदी से भी बुरे हालात हैं। सरकार ने कंपनियों को 25 बिलियन यूरो का पैकेज देने का वादा किया है। यह बहुत छोटी मदद है। कंपनियां लोगों को छुट्टी पर भेज रही हैं। लोग डरे हुए हैं। सिर्फ 4F यानी-फैशन, फूड, फर्नीचर और फेरारी को छोड़कर इकोनॉमी के सभी पहलू में स्लोडाउन रहेगा। यहां कई कंपनियों ने अपनी भूमिका बदल ली है।

फैशन कंपनी डॉक्टरों के लिए डिस्पोजल शर्ट बना रही

इटली में फैशन की बड़ी कंपनी कलजेडोनिया, अरमानी मास्क और डॉक्टरों के लिए डिस्पोजेबल शर्ट बना रही हैं। लोगों की मदद और धन जुटाने के लिए 600 से ज्यादा कैंपेन चल रहे हैं। अब तक लाखों यूरो जुटाए जा चुके हैं। यहां के अरबपति 350 करोड़ रु. दान कर चुके हैं। इसके अलावा पूरे इटली में मेडिकल सेटअप स्थापित किए जा रहे हैं। इस हफ्ते मिलान में एक्जीिबशन सेंटर में 250 बेड वाला हॉस्पिटल शुरू हो जाएगा।

99% मौतें 60 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों की हुई है

इटली में संक्रमित व्यक्तियों की औसत आयु 80.4 साल है। यहां की आबादी में 65 साल से ऊपर की आबादी 23.3 फीसदी है, जो यूरोप के औसत 19 फीसदी से अधिक है। यहां सिर्फ 1 फीसदी मौतें 60 साल से कम उम्र के लोगों की हुई है। 80 साल से ऊपर के लोगों की मृत्युदर 22 फीसदी है। इनमें ज्यादातर डायबिटीज, हृदय रोग और बुढ़ापा संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे।

यहां सिर्फ 1 फीसदी मौतें 60 साल से कम उम्र के लोगों की हुई है।

बरगामो: फुटबॉल मैच की वजह से शहर महामारी का केंद्र बना

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 19 फरवरी को हुआ एक फुटबॉल मैच बरगामो को कोरोना का केंद्र बनाने का प्रमुख कारण बना। इसमें हिस्सा लेने 2500 वेलेंसिया फुटबॉल फैंस पहुंचे थे। जहां पहले से 40 हजार दर्शक थे। यहीं स्पेन में कोरोना का पहला मामला भी मिला। वेलेंसिया टीम के 35% खिलाड़ी, फैन्स और खेल पत्रकार कोरोना के पहले शिकार बने।

कपड़ों से संक्रमण का डर, इसलिए शव तुरंत सील किए जा रहे

इटली ने शवयात्रा निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया है। कोरोनावायरस पीड़ित लोगों को उनके परिवार या मित्रों से नहीं मिलने दिया जा रहा है। परिजनों को अस्पताल आने की भी अनुमति नहीं है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि शव में वायरस का संक्रमण नहीं होता, लेकिन फिर भी ये वायरस कपड़ों पर लंबे वक्त तक रह सकता है। इसलिए हम शव को तुरंत सील कर रहे हैं। यहां मृतक व्यक्ति को पूरे सम्मान और उनके पसंदीदा कपड़ों के साथ दफनाने की संस्कृति है। शव को परिजन उस व्यक्ति के पसंदीदा कपड़े पहनाते हैं, उसे सजाते हैं और फिर उसका अंतिम संस्कार करते हैं। लेकिन उन्हें अस्पताल के ही गाउन में चुपचाप दफनाया जा रहा है। मृतकों को दफनाने के काम में सेना को लगाया गया है।



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इटली में हालात इतने भयावह हो गए हैं कि चर्चों में कॉफिन की कतार लग गई है।


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लंदन से भास्कर के लिए डॉ. सुनील गर्ग. कोविड-19 ने दुनिया को घुटनों पर ला दिया है। इनमें ब्रिटेन भी है। 28 मार्च तक ब्रिटेन में कुल 759 मौतें हुई थीं, जबकि इससे एक दिन पहले यह आंकड़ा 578 था। यानी एक दिन में 181 की मौतें। 23 मार्च से देश में तीन हफ्तों का लॉकडाउन है। कहा जा रहा है कि इसे बढ़ाकर 12 हफ्तों का किया जाएगा, क्योंकि लोग बाहर निकल रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का सही ढंग से पालन नहीं कर रहे है।

प्रिंस चार्ल्स के अलावा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और हेल्थ सेक्रेटरी मैट हैन्कॉक, दोनों ही कोरोनावायरस पॉजिटिव पाए गए हैंं। हेल्थ केयर, सोशल केयर, फार्मेसी, पुलिस और दमकल के अलावा सभी सार्वजनिक और निजी इमारतों और दफ्तरों को बंद कर दिया गया है। सोशल डिस्टेंसिंग से जुड़े प्रतिबंध 12 हफ्तों तक बने रह सकते हैं।

सभी अस्पतालों की ओपीडी लगभग बंद

सभी गैर-जरूरी यात्राओं को रोक दिया गया है। यूके आने-जाने वाली 90% फ्लाइट्स कैंसल हैं। ब्रिटेन के सभी स्कूल 20 मार्च से बंद कर दिए गए हैं। ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) जांच करने, अस्पताल तैयार करने और समुदाय में वायरस फैलने से रोकने के लिए गंभीर तनाव में है। सभी अस्पतालों की ओपीडी लगभग बंद हैं। मरीजों को टेलीफोन या वीडियो क्रॉन्फ्रेंसिंग से सलाह लेने के लिए कहा गया है। सभी कम जरूरी ऑपरेशन भी रद्द कर दिए गए हैं।

लोगों से ‘समझदार खरीदारी’ का आग्रह

हर अस्पताल में कोविड-एरिया और आइसोलेशन एक्शन प्लान के साथ बिस्तरों की व्यवस्था की गई है। आईसीयू को इंटेंसिव ट्रॉमा यूनिट में तब्दील करने के लिए सभी जरूरी उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि, कई अस्पताल अभी भी पर्याप्त पर्सनल सेफ्टी इक्विप्मेंट्स स्वास्थ्य कर्मियों को नहीं दे पा रहे हैं। इसके चलते चिंता बढ़ रही है। पुलिस कानून-व्यवस्था संभालने के लिए सड़कों पर है। बेवजह बाहर निकलने पर 1000 पौंड (93 हजार रु.) तक की पेनल्टी लगाई जा रही है। सुपरमार्केट्स ने शुरुआती पैनिक खरीदारी को देखा है। हालांकि किसानों और सप्लाई करने वालों ने खाद्य और किराने के सामान की कमी न होने देने का वादा किया है। लोगों से ‘समझदार खरीदारी’ का आग्रह किया जा रहा है।

निजी कर्मचारियों को भी 80% वेतन सरकार देगी

ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में सेवाएं देने की सरकार की अपील के 24 घंटे के भीतर ही लाखों लोगों ने अपनी स्वीकृति दी है। वित्त मंत्री (चांसलर) ऋषि सुनक ने निजी और स्व-रोजगार, दोनों क्षेत्रों के लोगों को उनके वेतन का 80% तक देने की पेशकश कर बड़ी वित्तीय मदद की है। इस बीच चिंता बनी हुई है कि आने वाले महीनों में महामारी कैसे सामने आएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक वायरस पूरी दुनिया से खत्म नहीं होता, तब तक खतरा रहेगा।



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यहां बाहर निकलने पर जुर्माना लगाया जा रहा है।


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न्यूयॉर्क.लॉकडाउन के इस दाैर में अगर आपको बीमारी का डर सता रहा है तो दुनियाभर के उन डॉक्टर्स और हेल्थकेयर वर्कर्स के बारे में कल्पना कीजिए जो लगातार 20-20 घंटे अस्पतालों में काम कर रहे हैं। चीन में कोरोना का इलाज कर रहे 39 अस्पतालाें के 1257 डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों के एक सर्वे में पता चला है कि 50% में डिप्रेशन, 45% में चिड़चिड़ापन, 34% में अनिद्रा और 71% मनोवैज्ञानिक दुख का शिकार हो गए हैं। महिलाओं और नर्सों पर इसका ज्यादा बुरा असर हुआ है। 2003 में सार्स के दौरान भी डॉक्टर्स को इस बात का डर था कि कहीं उनकी वजह से उनके परिवार भी इस महामारी की चपेट में न आ जाएं।

तनाव से बचने के लिए डॉग्स मददगार

इन दिनों भी डॉक्टर्स इसी तरह के तनाव से गुजर रहे हैं। ऐसे में डॉक्टर्स का तनाव दूर करने में डॉग्स मददगार साबित हो रहे हैं। कोलोराडो के डेनवर शहर के मेडिकल सेेंटर का ऐसा ही एक थैरेपी डॉग व्यान इन दिनों खबरों में है। एक साल के इस लेब्राडोर की मेडिकल स्टाफ के साथ तस्वीरेें सामने आई हैं। इमरजेंसी फिजिशियन डॉ. रेयान व्यान के ट्रेनर हैं, वे कहते हैं कि जो आप देखते हैैं और रोज दिखने वाली जो चीजें आप नहीं देख पाते, वो आपके दिमाग में घूमती रहती हैं। ऐसे तनाव के बीच एक डॉग पास आकर खड़ा हो जाता है तो आप उसे थपथपाते हैं। इस तरह परेशानियों से बाहर निकलकर आप वर्तमान पल में आ जाते हैं और तनाव भूल जाते हैं। अमेरिका में 50 हजार से ज्यादा थैरेपी डॉग्स हैं। नॉर्वे और ब्राजील जैसे देशों में भी अब थैरेपी डाॅग्स का इस्तेमाल मरीजों का तनाव दूर करने में हो रहा है। कई संस्थान डॉग्स को इस काम के लिए ट्रेंड करते हैं और इन्हें सर्टिफिकेट भी दिया जाता है। अप्लाइड एनिमल बिहेवियर साइंस की एक स्टडी में कहा गया है कि डॉग्स को भी अपना यह काम पसंद आ रहा है।

अमेरिका में 50 हजार से ज्यादा थैरेपी डॉग्स हैं

डॉग व्यान इन दिनों असिस्टेंस डॉग बनने की ट्रेनिंग पर है। ट्रेनिंग पूरी होने पर वह विकलांग बच्चों, बुजुर्गों या युवाओं का मददगार बन जाएगा। वह दिनभर डॉक्टर रेयान के केबिन में रहता है। कमरे में लाइट कम होती है और हल्का संगीत चलता है। वैसे व्यान मरीजों का तनाव दूर करता है, लेकिन इन दिनों वाे डॉक्टर्स और नर्सों की भी मदद कर रहा है।



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थैरेपी डॉग व्यान के साथ डॉ रेयान।


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बिलासपुर ( नयना देवी से नीना शर्मा).साल भर श्रद्धालुओं की आमद से गुलजार रहने वाले हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ एवं धार्मिक स्थल नयना देवी में चैत्र नवरात्र में सन्नाटा है। लाॅकडाउन के चलते श्रद्धालु चाहते हुए भी मां के दरबार नहीं पहुंच पा रहे हैं। कोरोना के खतरे के चलते मंदिर के कपाट 17 मार्च से अनिश्चितकाल के लिए बंद हैं। उससे पहले तक इस साल करीब ढाई माह की अवधि में लगभग 3 लाख श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचे थे।

हर रोज आते हैं हजारोंश्रद्धालु

चैत्र नवरात्र में हर रोज औसतन 25-30 हजार श्रद्धालु यहां आते हैं। इनमें देश के साथ-साथ विदेशों के भी श्रद्धालु होते हैं। लेकिन इस बार हालात पूरी तरह से बदले हुए हैं। मुंडन संस्कार से लेकर कन्या पूजन जैसी सभी रस्में घरों में ही निभाई जा रही हैं। मंदिर न्यास के अध्यक्ष एवं एसडीएम सुभाष गौतम ने कहा कि कोरोना से बचाव के मद्देनजर कपाट बंद किए गए हैं।

पहली बार आरती का शेड्यूल बदलने की जरूरत नहीं पड़ी
नयना देवी के इतिहास में पहली बार आरतियों का शेड्यूल बदलने की जरूरत नहीं पड़ी है। मंदिर में 5 समय आरती की जाती हैं। नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ के चलते दोपहर को एक, रात को चार आरती एक साथ की जाती थीं। लेकिन इस बार चैत्र नवरात्र में हर आरती अपने निर्धारित समय पर हो रही है।



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हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध शक्तिपीठ नयना देवी मंदिर।


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नई दिल्ली.कोरोना की वजह से पूरा देश थमा हुआ है। स्वास्थ्य का यह खतरा समाज की सबसे नीचे की कड़ी के लिए आर्थिक खतरा भी बन गया है। इसी स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपए का प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज जारी किया है। उधर, देशभर से मजदूरों के पलायन की दर्दनाक तस्वीरें आ रही हैं। पांच-पांच सौ किमी से भी ज्यादा पैदल चलकर ये लोग अपने घरों को लौट रहे हैं। इनकी तस्वीरों के साथ पुलिस द्वारा इन्हें पीटने के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। पहले कोरोना, फिर भूख और अब पुलिस की पिटाई का डर। सेहत के बाद कोरोना का असर देश के असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। ये वो लोग हैं, जो या तो ठेके पर काम करते हैं। या फिर मजदूर हैं, जो रोज की दिहाड़ी से अपने परिवार का पेट भरते हैं। यह असंगठित क्षेत्र कितना बड़ा है इसका सही अंदाजा सरकार को भी नहीं है।

2019 में जारी हुए इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल वर्कफोर्स में से 93 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। वहीं 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में यह आंकड़ा 85 फीसदी है। देश की इकोनॉमी को चलाने में इस असंगठित क्षेत्र का बड़ा हाथ है। इसके बावजूद इसकी रक्षा के लिए ठोस प्रावधान नहीं हैं। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 की रिपोर्ट जो कि पिछले साल जारी हुई थी, उसमें कहा गया है कि इन्फॉर्मल सेक्टर (नॉन एग्रीकल्चर) में रेगुलर/सैलरीड कर्मचारियों में भी 71% ऐसे हैं, जिनके पास लिखित में जॉब कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। 54.2 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें पेड लीव नहीं मिलती। इतना ही नहीं, इसमें से 49.6 फीसदी किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना कीयोग्यता नहीं रखते। स्पष्ट है असंगठित क्षेत्र का दायरा न केवल व्यापक हैबल्कि पूरी तरह असुरक्षित भी है। कृषि क्षेत्र जहां देश का सबसे बड़ा असंगठित वर्ग काम करता है उसके भी इस लॉक डाउन से प्रभावित होने की आशंका है। विशेषज्ञों से जानते हैं कि कोराेनाकी मार किस तरह इस वर्ग पर पड़नेजा रही है।

8 बिंदुओं के आधार पर जानिए इस पलायन से जुड़ा सबकुछ :

सवाल-1: कोरोना के बाद अब ताजा संकट क्या है?
जवाब भूख और पलायन:ताजा संकट मजदूरों के पलायन का है। ये सिर्फ कोराेना का ही नहीं, बल्कि भूख का भी सामना कर रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स विभाग के प्रोफेसर डॉ. अमिताभ कुंदू के अनुसार- राेजगार के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करने वाले लोगों की संख्या लगभग 1.4 करोड़ है। वहीं एक राज्य में ही एक शहर से दूसरे शहर में रोजगार के लिए जाने वाले लोगों की बात करें तो यह संख्या कई करोड़ में पहुंचती है। ये 1.4 करोड़ लोग ऐसे हैं जो कंस्ट्रक्शन जैसे क्षेत्रों में केवल मजदूरी या ऐसे ही कार्यों के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं।

सवाल- 2: देश में असंगठित वर्कफोर्स कितनी बड़ी है?

जवाब-तीन अलग-अलग आंकड़े:

1. इकोनॉमिक सर्वे (2018-19) के अनुसार भारत में कुल वर्क फोर्स का 93% हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है।
एक अनुमान के अनुसार देश में कुल वर्क फोर्स यानी काम करने वाले लोगों की संख्या 45 करोड़ है। इसमें से 93 प्रतिशत यानी देश के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या लगभग 41.85 करोड़ है।

2. नीति आयोग द्वारा नवंबर 2018 में जारी किए आंकड़ों के अनुसार कुल वर्क फोर्स का 85 प्रतिशत मानव श्रम असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है।

3. नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन 2012 की रिपोर्ट में इंफाॅर्मल वर्क फोर्स को कुल वर्क फोर्स का 90% बताया गया है।

वहीं, आईआईएम अहमदाबाद से जुड़ी अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा कहती हैं- 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार देश के एक तिहाई मजदूर दिहाड़ी मजदूर हैं।

सवाल-3इस असंगठित क्षेत्र में कौन-कौन से लोग हैं? सेक्टर वाइज क्या स्थिति है?

जवाब-सीआईआई द्वारा वर्ष 2011-12 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार देश के गैर कृषि क्षेत्र के 7 प्रमुख सेक्टर्स में ही लगभग 16.35 करोड़ लोग असंगठित रूप से कार्यरत हैं। इनमें पहले स्थान पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और दूसरे स्थान पर ट्रेड, होटल और रेस्टोरेंट इंडस्ट्री व तीसरे स्थान पर कंस्ट्रक्शन का क्षेत्र है। इन्हीं सेक्टर्स के मजदूरों का पलायन सबसे ज्यादा हो रहा है।

सवाल- 4 : देश में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग कितने हैं?
जवाब-
2011 की जनगणना के दौरान देश में कुल आबादी में से 21.9% गरीबी रेखा के नीचे मानी गई थी। सरकार द्वारा घोषित पैकेज का लाभ देश के 80 करोड़ गरीबों को मिलेगा। जनगणना में देश भर में गरीबों की संख्या लगभग 26.8 करोड़ बताई गई थी। जिनकी प्रतिदिन की आय 1.90 डॉलर (लगभग 142.80 रु) या उससे कम थी। इन लोगों के सामने सबसे बड़ा खतरा खड़ा हो गया है।

सवाल- 5 : इनमें से कितने लोगों के पास जन-धन खाते, कितनों को मिलेगा लाभ?
जवाब- केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने जुलाई 2019 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 26 जून, 2019 तक देश भर में प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत 35.99 करोड़ खाते खोले गए। इनमें से वर्तमान में 29.54 करोड़ एक्टिव हैं। वहीं सरकार की प्रधानमंत्री जनधन योजना की वेबसाइट के अनुसार 18 मार्च 2020 तक इस योजना के कुल लाभान्वित लोगों की संख्या 38.28 करोड़ है। केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए 1.70 लाख करोड़ के गरीब कल्याणपैकेज के तहत इन खातों में राशि स्थानांतरित की जाएगी।

सवाल- 6 : अभी भूख की क्या स्थिति है, कितने लोगों को खाना नहीं मिल पाता?
जवाब- 2019 में जारी हुए ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की रैंकिंग में भारत का 102वां स्थान था। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत काम करने वाली फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा 2019 में जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक 2016-18 के बीच भारत में ऐसे लोगों की संख्या कुल आबादी का 14% थी, जिन्हें पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाता है। 135 करोड़ की आबादी के लिहाज से देखें तो यह संख्या 18.90 करोड़ है।

सवाल- 7 : पलायन करने वाले कितना कमा पाते होंगे?
जवाब-
पलायन करने वाले लगभग 1.4 करोड़ लोगों की पारिवारिक आय औसतन 3500 से 4000 रुपए मासिक के बीच है। 5 लोगों के परिवार को एक यूनिट माना जाए तो प्रति व्यक्ति मासिक आमदनी 700 से 800 रुपए बैठती है। यह आमदनी देश में शहरी क्षेत्र की गरीबी रेखा के बराबर है।

सवाल-8 : राज्यवार देखिए, काम के लिए पलायन करने वाले मजदूरों की स्थिति

जवाब -

राज्य माइग्रेंट्स
उत्तर प्रदेश 40.20 लाख
बिहार

36.16 लाख

राजस्थान

18.44 लाख

मध्य प्रदेश 18.26 लाख
उड़ीसा 05.03 लाख

नोट: 7 प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र, यूपी, बंगाल, गुजरात, केरल, पंजाब व असममें जाने वाले माइग्रेंट्स के आधार पर। ( स्रोत, सेंसेक्स-2011 )

भास्कर एक्सपर्ट : रितिका खेड़ा (अर्थशास्त्री, एसोसिएट प्रोफेसर, आईआईएम, अहमदाबाद)

असंगठित क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होगा लॉकडाउन से
देश की करीब 80 फीसदी वर्कफोर्स इन्फॉर्मल इकोनॉमी में है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार चार फीसदी कॉन्ट्रैक्ट वाले वर्कर हैं। केवल पांच में से एक के पास मासिक वेतन वाली नौकरी है। वर्कफोर्स का आधा हिस्सा स्वरोजगार वाले हैं। दुकानदार, रेहड़ी लगाने वाले, सैलून चलाने वाले, साइकल रिपेयर करने वाले मोची आदि हैं। लॉकडाउन से जो आर्थिक संकट पैदा होगा, उससे कोई नहीं बच पाएगा। दरअसल, आर्थिक व्यवस्था में हर सेक्टर दूसरे से जुड़ा होता है। गांवों से शहरों को खाने की सप्लाई मिलती है तो गांवों को शहरों से जरूरत का सामान। जब प्रोडक्शन ही नहीं होगा तो कीमतें बढ़ेंगी। ऐसे में वायरस की तरह भूख भी खतरनाक साबित होगी।

भास्कर एक्सपर्ट :प्रोफेसर अरुण कुमार (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली )

युद्ध से भी भयानक स्थिति, अगर लॉकडाउन लंबा खिंचा तो बदतर होंगे हालात
असंगठित क्षेत्र के पास सोशल सिक्योरिटी नहीं होती है। नियोक्ता का काम बंद होते ही सबसे पहले यहां काम करने वाले व्यक्ति का रोजगार छिनता है। देश में सर्वाधिक लोग कृषि क्षेत्र में असंगठित रूप से काम करते हैं। इसमें देश का लगभग 45 प्रतिशत वर्कफोर्स काम कर रहा है। इस लॉकडाउन का सबसे बुरा असर सप्लाई चेन के टूटने के रूप में होगा। एम्प्लायर को नुकसान होगा, वह कामगार काे निकाल बाहर करेगा। रोजगार छिनते ही कामगार की आमदनी बंद हो जाएगी। जैसे-जैसे इनकी जमापूंजी खत्म होगी लोग भोजन-पानी को तरस जाएंगे। यही सबसे खतरनाक स्थिति होगी। इसी से बचने के लिए दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोेग अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह युद्ध से भी भयानक स्थिति है।



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ये दो तस्वीरें हैं। एक विभाजन के वक्त की है, दूसरी कोराेना के बीच पलायन की। तब घर छोड़ने को मजबूर थे, अब घर लौटने को।


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पटना.कोरोना, संक्रमण और मौत के बीच अपने परिवार से सैकड़ों किमी दूर बिहार के 8 लाख से अधिक लोग फंसे हुए हैं। पूर्ण लॉकडाउन में जब बस-ट्रेन-फ्लाइट सब बंद है, तो हजारों लोग पैदल ही बिहार के अपने गांव-शहरों की तरफ निकल पड़े हैं। इनमें अधिकतर दिल्ली और यूपी के हैं तो कुछ राजस्थान-गुजरात के भी।

किसी को 300 किमी चलना है, तो किसी को 1500, रोजी रोटी का संकट सिर पर है। नंगे पैर, भूखे प्यासे लोग इस आस में चले आ रहे हैं कि वे किसी भी तरह घर पहुंच जाएं। गाजियाबाद में ऐसे ही कुछ मजदूर कहते हैं- ‘अगर हम यहीं रुके रहे तो कोरोना से पहले भूख से मर जाएंगे। मरना ही है तो घर पर परिवार के बीच मरना अच्छा है। वहां हमारी लाश को कंधा देने वाला तो कोई होगा।

21 ट्रकों में ठूंस कर लौटे, ट्रकों पर था सप्लाई पोस्टर

विभिन्न राज्यों से 21 ट्रकों में भरकर सिर्फ शनिवार को लोग बिहार पहुंचे। जिन ट्रकों में ये आए थे उनमें फूड सप्लाई का पोस्टर लगा हुआ था। इनकी थर्मल स्कैनिंग की गई।

लौटे तो 14 दिन परिवार से मिलना खतरनाक

सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि घर लौटने वालों को 14 दिन क्वारेंटाइन में रहना होगा। कोई संक्रमित निकला तो परिवार से मिलना खतरनाक होगा।

बिहार के 40 लाख लोग राज्य से बाहर हैं

दूसरे राज्यों में 40 लाख से अधिक बिहारी काम करते हैं। इनमें काफी संख्या में वहीं बस गए हैं। जिन्हें लौटने की जरूरत नहीं पड़ती। विभिन्न राज्यों के श्रम संगठनों की माने तो अभी 10 लाख से अधिक लोग बिहार लौटना चाहते हैं।

6.31 लाख महाराष्ट्र

14.01 लाख

दिल्ली एनसीआर
11.49 लाख पंजाब, हरियाणा
4.03 लाख गुजरात
6.40 लाख कर्नाटक, आंध्र

2011 की जनगणना के अनुसार किस राज्य में बिहार से कितना माइग्रेशन

सलाह - गांव के आसपास स्कूल या कॉलेज में ठहराएं
बिहार के लोगों के लौटने पर राज्य में स्थिति बेकाबू हो सकती है। चिकित्सा विशेषज्ञ इस खतरे को भांपते हुए कई चेतावनी के साथ सरकारी तंत्र को युद्ध स्तर पर काम करने के लिए सुझाव भी दे रहे हैं। पीएमसीएच के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. बीके चौधरी ने साफ कहा कि जो लोग आरहे हैं, उनमें एक भी पॉजिटिव हुआ तो वह 110 को संक्रमित करेगा। इन्हें गांव के अासपास स्कूल या काॅलेज में ठहरा देना चाहिए। सबसे बेहतर है 14 दिन इन्हें क्वारेंटाइन में रखा जाए और वहीं भोजन की व्यवस्था कराई जाए। स्टेट नोडल ऑफिसरडॉ. मदनपाल सिंह भी दोहरा रहे कि बिहार लौटने वाले लोगों को 14 दिन क्वारेंटाइन रखना जरूरी है। पुलिस की निगरानी में इनकी व्यवस्था होनी चाहिए।



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गाजियाबाद में बस नहीं मिलने पर रोते हुए महिला बोली- मेरी सास का निधन हो गया है। मेरे जाने की कोई तो व्यवस्था करो।


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पेरिस.फ्रांस ने अपनी एक हाईस्पीड टीजीवी ट्रेन को देशभर में कोरोना मरीजों को लाने-लेजाने के लिए अस्पताल के रूप में तब्दील कर दिया। देशभर में कहीं भी अगर कोरोना का मरीज है, उसे 5 घंटे में ही यह ट्रेन राजधानी पेरिस तक ले आएगी। ट्रेन के हरेक कैबिन में 4 मरीजों को लाया जा सकता है। इसमें ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और मेडिकल स्टाफ जैसी आपातकालीन सुविधाएं मौजूद हैं। शुक्रवार को गंभीर हालत में करीब 20 कोरोना मरीजों को ट्रेन से अस्पताल तक पहुंचाया गया। यह ट्रेन एक घंटे में 300 किमी का सफर तय करती है।

ट्रेन में मरीजों की देखभाल करने वाले डॉक्टर लियोनेल लामहुत ने बताया कि फ्रांस के पूर्वी और पश्चिम क्षेत्र में कोरोना के ज्यादातर मरीज सामने आ रहे हैं। ट्रेन के हर कैबिन में ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और अन्य सभी जरूरी उपकरण के कारण हेलिकॉप्टर की तुलना में ज्यादा सुविधाजनक है।



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मेडिकल स्टाफ की मौजूदगी में ट्रेन में मरीजों को इस तरह लाया जा रहा है।
ट्रेन में मौजूद मेडिकल स्टाफ।


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करगिल.करगिल का गांव लत्तू, जो समुद्र तल से 8700 फीट ऊंचाई पर बसा है। पहले ठंड की स्थिति और अब बीमारी का डर लोगों को सता रहा है। इन स्थितियों के बीच इस गांव में कोरोना को लेकर जागरुकता देखने को मिल रही है। ग्रामीणों ने स्वच्छता की मुहिम शुरू करते हुए गांव के बाहर एक पानी की टंकी लगा दी है। इस पर लिखा है- ‘पहले हाथ धोएं, फिर गांव में प्रवेश करें।’ ग्रामीणों के मुताबिक बिना हाथ धोए किसी भी शख्स को गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा है। चाहे वह गांव का हो या फिर बाहर का।

अन्य गांव भी सीख ले रहे

करगिल में कोरोना संक्रमित के शक में 145 से ज्यादा लोग क्वारेंटाइन में हैं। दो मरीजों के पॉजिटिव होने का पता चला है। इसे देखते हुए लत्तू के ग्रामीणों ने एक कमेटी बनाई है। जिसने गांव के बाहर पानी की टंकी रखवाई है। वहां साबुन और सैनिटाइजर भी रखा गया है। इस मुहिम की चर्चा करगिल के उपायुक्त बशीर उल हक चौधरी ने ट्विटर पर की है। फायदा यह हुआ कि आसपास के लोग भी यह तरीका अपनाने लगे हैं।



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लोगों ने गांव के बाहर पानी की टंकी और सैनिटाइजर रखा है।


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पेरिस.फ्रांस ने अपनी एक हाईस्पीड टीजीवी ट्रेन को देशभर में कोरोना मरीजों को लाने-लेजाने के लिए अस्पताल के रूप में तब्दील कर दिया। देशभर में कहीं भी अगर कोरोना का मरीज है, उसे 5 घंटे में ही यह ट्रेन राजधानी पेरिस तक ले आएगी। ट्रेन के हरेक कैबिन में 4 मरीजों को लाया जा सकता है। इसमें ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और मेडिकल स्टाफ जैसी आपातकालीन सुविधाएं मौजूद हैं। शुक्रवार को गंभीर हालत में करीब 20 कोरोना मरीजों को ट्रेन से अस्पताल तक पहुंचाया गया। यह ट्रेन एक घंटे में 300 किमी का सफर तय करती है।

ट्रेन में मरीजों की देखभाल करने वाले डॉक्टर लियोनेल लामहुत ने बताया कि फ्रांस के पूर्वी और पश्चिम क्षेत्र में कोरोना के ज्यादातर मरीज सामने आ रहे हैं। ट्रेन के हर कैबिन में ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और अन्य सभी जरूरी उपकरण के कारण हेलिकॉप्टर की तुलना में ज्यादा सुविधाजनक है।



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करगिल.करगिल का गांव लत्तू, जो समुद्र तल से 8700 फीट ऊंचाई पर बसा है। पहले ठंड की स्थिति और अब बीमारी का डर लोगों को सता रहा है। इन स्थितियों के बीच इस गांव में कोरोना को लेकर जागरुकता देखने को मिल रही है। ग्रामीणों ने स्वच्छता की मुहिम शुरू करते हुए गांव के बाहर एक पानी की टंकी लगा दी है। इस पर लिखा है- ‘पहले हाथ धोएं, फिर गांव में प्रवेश करें।’ ग्रामीणों के मुताबिक बिना हाथ धोए किसी भी शख्स को गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा है। चाहे वह गांव का हो या फिर बाहर का।

अन्य गांव भी सीख ले रहे

करगिल में कोरोना संक्रमित के शक में 145 से ज्यादा लोग क्वारेंटाइन में हैं। दो मरीजों के पॉजिटिव होने का पता चला है। इसे देखते हुए लत्तू के ग्रामीणों ने एक कमेटी बनाई है। जिसने गांव के बाहर पानी की टंकी रखवाई है। वहां साबुन और सैनिटाइजर भी रखा गया है। इस मुहिम की चर्चा करगिल के उपायुक्त बशीर उल हक चौधरी ने ट्विटर पर की है। फायदा यह हुआ कि आसपास के लोग भी यह तरीका अपनाने लगे हैं।



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लोगों ने गांव के बाहर पानी की टंकी और सैनिटाइजर रखा है।


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नई दिल्ली.कोरोना की वजह से पूरा देश थमा हुआ है। स्वास्थ्य का यह खतरा समाज की सबसे नीचे की कड़ी के लिए आर्थिक खतरा भी बन गया है। इसी स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपए का प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज जारी किया है। उधर, देशभर से मजदूरों के पलायन की दर्दनाक तस्वीरें आ रही हैं। पांच-पांच सौ किमी से भी ज्यादा पैदल चलकर ये लोग अपने घरों को लौट रहे हैं। इनकी तस्वीरों के साथ पुलिस द्वारा इन्हें पीटने के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। पहले कोरोना, फिर भूख और अब पुलिस की पिटाई का डर। सेहत के बाद कोरोना का असर देश के असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। ये वो लोग हैं, जो या तो ठेके पर काम करते हैं। या फिर मजदूर हैं, जो रोज की दिहाड़ी से अपने परिवार का पेट भरते हैं। यह असंगठित क्षेत्र कितना बड़ा है इसका सही अंदाजा सरकार को भी नहीं है।

2019 में जारी हुए इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल वर्कफोर्स में से 93 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। वहीं 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में यह आंकड़ा 85 फीसदी है। देश की इकोनॉमी को चलाने में इस असंगठित क्षेत्र का बड़ा हाथ है। इसके बावजूद इसकी रक्षा के लिए ठोस प्रावधान नहीं हैं। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 की रिपोर्ट जो कि पिछले साल जारी हुई थी, उसमें कहा गया है कि इन्फॉर्मल सेक्टर (नॉन एग्रीकल्चर) में रेगुलर/सैलरीड कर्मचारियों में भी 71% ऐसे हैं, जिनके पास लिखित में जॉब कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। 54.2 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें पेड लीव नहीं मिलती। इतना ही नहीं, इसमें से 49.6 फीसदी किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना कीयोग्यता नहीं रखते। स्पष्ट है असंगठित क्षेत्र का दायरा न केवल व्यापक हैबल्कि पूरी तरह असुरक्षित भी है। कृषि क्षेत्र जहां देश का सबसे बड़ा असंगठित वर्ग काम करता है उसके भी इस लॉक डाउन से प्रभावित होने की आशंका है। विशेषज्ञों से जानते हैं कि कोराेनाकी मार किस तरह इस वर्ग पर पड़नेजा रही है।

8 बिंदुओं के आधार पर जानिए इस पलायन से जुड़ा सबकुछ :

सवाल-1: कोरोना के बाद अब ताजा संकट क्या है?
जवाब भूख और पलायन:ताजा संकट मजदूरों के पलायन का है। ये सिर्फ कोराेना का ही नहीं, बल्कि भूख का भी सामना कर रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स विभाग के प्रोफेसर डॉ. अमिताभ कुंदू के अनुसार- राेजगार के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करने वाले लोगों की संख्या लगभग 1.4 करोड़ है। वहीं एक राज्य में ही एक शहर से दूसरे शहर में रोजगार के लिए जाने वाले लोगों की बात करें तो यह संख्या कई करोड़ में पहुंचती है। ये 1.4 करोड़ लोग ऐसे हैं जो कंस्ट्रक्शन जैसे क्षेत्रों में केवल मजदूरी या ऐसे ही कार्यों के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं।

सवाल- 2: देश में असंगठित वर्कफोर्स कितनी बड़ी है?

जवाब-तीन अलग-अलग आंकड़े:

1. इकोनॉमिक सर्वे (2018-19) के अनुसार भारत में कुल वर्क फोर्स का 93% हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है।
एक अनुमान के अनुसार देश में कुल वर्क फोर्स यानी काम करने वाले लोगों की संख्या 45 करोड़ है। इसमें से 93 प्रतिशत यानी देश के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या लगभग 41.85 करोड़ है।

2. नीति आयोग द्वारा नवंबर 2018 में जारी किए आंकड़ों के अनुसार कुल वर्क फोर्स का 85 प्रतिशत मानव श्रम असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है।

3. नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन 2012 की रिपोर्ट में इंफाॅर्मल वर्क फोर्स को कुल वर्क फोर्स का 90% बताया गया है।

वहीं, आईआईएम अहमदाबाद से जुड़ी अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा कहती हैं- 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार देश के एक तिहाई मजदूर दिहाड़ी मजदूर हैं।

सवाल-3इस असंगठित क्षेत्र में कौन-कौन से लोग हैं? सेक्टर वाइज क्या स्थिति है?

जवाब-सीआईआई द्वारा वर्ष 2011-12 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार देश के गैर कृषि क्षेत्र के 7 प्रमुख सेक्टर्स में ही लगभग 16.35 करोड़ लोग असंगठित रूप से कार्यरत हैं। इनमें पहले स्थान पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और दूसरे स्थान पर ट्रेड, होटल और रेस्टोरेंट इंडस्ट्री व तीसरे स्थान पर कंस्ट्रक्शन का क्षेत्र है। इन्हीं सेक्टर्स के मजदूरों का पलायन सबसे ज्यादा हो रहा है।

सवाल- 4 : देश में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग कितने हैं?
जवाब-
2011 की जनगणना के दौरान देश में कुल आबादी में से 21.9% गरीबी रेखा के नीचे मानी गई थी। सरकार द्वारा घोषित पैकेज का लाभ देश के 80 करोड़ गरीबों को मिलेगा। जनगणना में देश भर में गरीबों की संख्या लगभग 26.8 करोड़ बताई गई थी। जिनकी प्रतिदिन की आय 1.90 डॉलर (लगभग 142.80 रु) या उससे कम थी। इन लोगों के सामने सबसे बड़ा खतरा खड़ा हो गया है।

सवाल- 5 : इनमें से कितने लोगों के पास जन-धन खाते, कितनों को मिलेगा लाभ?
जवाब- केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने जुलाई 2019 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 26 जून, 2019 तक देश भर में प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत 35.99 करोड़ खाते खोले गए। इनमें से वर्तमान में 29.54 करोड़ एक्टिव हैं। वहीं सरकार की प्रधानमंत्री जनधन योजना की वेबसाइट के अनुसार 18 मार्च 2020 तक इस योजना के कुल लाभान्वित लोगों की संख्या 38.28 करोड़ है। केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए 1.70 लाख करोड़ के गरीब कल्याणपैकेज के तहत इन खातों में राशि स्थानांतरित की जाएगी।

सवाल- 6 : अभी भूख की क्या स्थिति है, कितने लोगों को खाना नहीं मिल पाता?
जवाब- 2019 में जारी हुए ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की रैंकिंग में भारत का 102वां स्थान था। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत काम करने वाली फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा 2019 में जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक 2016-18 के बीच भारत में ऐसे लोगों की संख्या कुल आबादी का 14% थी, जिन्हें पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाता है। 135 करोड़ की आबादी के लिहाज से देखें तो यह संख्या 18.90 करोड़ है।

सवाल- 7 : पलायन करने वाले कितना कमा पाते होंगे?
जवाब-
पलायन करने वाले लगभग 1.4 करोड़ लोगों की पारिवारिक आय औसतन 3500 से 4000 रुपए मासिक के बीच है। 5 लोगों के परिवार को एक यूनिट माना जाए तो प्रति व्यक्ति मासिक आमदनी 700 से 800 रुपए बैठती है। यह आमदनी देश में शहरी क्षेत्र की गरीबी रेखा के बराबर है।

सवाल-8 : राज्यवार देखिए, काम के लिए पलायन करने वाले मजदूरों की स्थिति

जवाब -

राज्य माइग्रेंट्स
उत्तर प्रदेश 40.20 लाख
बिहार

36.16 लाख

राजस्थान

18.44 लाख

मध्य प्रदेश 18.26 लाख
उड़ीसा 05.03 लाख

नोट: 7 प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र, यूपी, बंगाल, गुजरात, केरल, पंजाब व असममें जाने वाले माइग्रेंट्स के आधार पर। ( स्रोत, सेंसेक्स-2011 )

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असंगठित क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होगा लॉकडाउन से
देश की करीब 80 फीसदी वर्कफोर्स इन्फॉर्मल इकोनॉमी में है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार चार फीसदी कॉन्ट्रैक्ट वाले वर्कर हैं। केवल पांच में से एक के पास मासिक वेतन वाली नौकरी है। वर्कफोर्स का आधा हिस्सा स्वरोजगार वाले हैं। दुकानदार, रेहड़ी लगाने वाले, सैलून चलाने वाले, साइकल रिपेयर करने वाले मोची आदि हैं। लॉकडाउन से जो आर्थिक संकट पैदा होगा, उससे कोई नहीं बच पाएगा। दरअसल, आर्थिक व्यवस्था में हर सेक्टर दूसरे से जुड़ा होता है। गांवों से शहरों को खाने की सप्लाई मिलती है तो गांवों को शहरों से जरूरत का सामान। जब प्रोडक्शन ही नहीं होगा तो कीमतें बढ़ेंगी। ऐसे में वायरस की तरह भूख भी खतरनाक साबित होगी।

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युद्ध से भी भयानक स्थिति, अगर लॉकडाउन लंबा खिंचा तो बदतर होंगे हालात
असंगठित क्षेत्र के पास सोशल सिक्योरिटी नहीं होती है। नियोक्ता का काम बंद होते ही सबसे पहले यहां काम करने वाले व्यक्ति का रोजगार छिनता है। देश में सर्वाधिक लोग कृषि क्षेत्र में असंगठित रूप से काम करते हैं। इसमें देश का लगभग 45 प्रतिशत वर्कफोर्स काम कर रहा है। इस लॉकडाउन का सबसे बुरा असर सप्लाई चेन के टूटने के रूप में होगा। एम्प्लायर को नुकसान होगा, वह कामगार काे निकाल बाहर करेगा। रोजगार छिनते ही कामगार की आमदनी बंद हो जाएगी। जैसे-जैसे इनकी जमापूंजी खत्म होगी लोग भोजन-पानी को तरस जाएंगे। यही सबसे खतरनाक स्थिति होगी। इसी से बचने के लिए दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोेग अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह युद्ध से भी भयानक स्थिति है।



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