Saturday, March 7, 2020

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खेल डेस्क. टीम इंडिया आज महिला टी-20 विश्वकप के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से मुकाबला करेगी। दोनों ही टीमें मजबूत हैं। ऑस्ट्रेलियाई टीम चार बार यह वर्ल्डकप अपने नाम कर चुकी है। भारतीय टीम पहली बार फाइनल में पहुंची है। आंकड़े भले ही मेजबान टीम के पक्ष में हों, लेकिनटीम इंडिया फाइनल के तक अपराजेय रही। यहां हम इस टीम की पांच खिलाड़ियों की जिंदगी से जुड़ीपांच कहानियां बता रहे हैं। इनसे पता लगता है कि टीम इंडिया का सफर तय करने के लिए ये प्लेयर्स और उनके परिवार मुश्किलों के बावजूद कितने समर्पित रहे।

स्मृति मंधाना
24 साल की स्मृति का जन्म मुंबई में हुआ। कुछ साल बाद फैमिली सांगली शिफ्ट हो गई। उनके भाई श्रवण के मुताबिक, “स्मृति ने 6 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया और मैंउनके साथ ही मैदान पर जाताथा। वेइतनी प्रतिभाशाली हैकि 9 साल की उम्र में महाराष्ट्र अंडर 15 में सिलेक्ट हो गईं। जब 11 साल की हुईं तो अंडर 19 खेल रहीं थी। इसके बाद पलटकर नहीं देखा।” मंधाना मराठी हैं, लेकिन उन्हेंपंजाबी संगीत पसंद है। पुरानी हिंदी फिल्में की वेदीवानी हैं। जींस और टी-शर्ट फेवरेट ड्रेस कॉम्बिनेशन है,लेकिनआईने के सामने खड़ा होना नापसंद है। स्मृति कॉमर्स ग्रेजुएट हैं।

राधा यादव
राधा प्रकाश यादव। प्रकाश पिता का नाम है। जैसा नाम, वैसा काम। पिता ने तमाम मुश्किलों के बावजूद बेटी का सपना साकार किया। खुद घर-घर जाकर दूध बेचते और बाकी वक्त झुग्गीमें एक छोटी से किराना दुकान चलाते। बेटी गली में लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती तो कुछ लोग पिता पर तंज कसते। भाई राहुल बताते हैं, “पड़ोस में एक क्रिकेट कोच रहते थे। एक दिन राधा को खेलते देखा तो पिता से कहा- इसे खेलने दीजिए, बहुत नाम कमाएगी। कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे। वहां की फीस माफ हो गई। किट खरीदने के लिए कई लोगों से उधार लिया। पिता के साथ साइकिल पर 3 किलोमीटर दूर प्रैक्टिस के लिए जाती। कई बार पैदल ही लौटना पड़ता,क्योंकि टैम्पो के लिए किराया नहीं होता था।”

हरलीन देओल
21 साल की हरलीन चंडीगढ़ के उच्चमध्यमवर्गीय परिवार से हैं। पिता बिजनेसमैन हैं और भाई डॉक्टर। मां चरनजीत कौर बताती हैं, “स्पोर्ट्स तो जैसे उसके खून में था। वहहॉकी, फुटबॉल और बास्केटबॉल भी खेलती थी। क्रिकेट तो 8 साल की उम्र में गली से शुरू किया। अगले ही साल नेशनल स्कूल टीम में सिलेक्ट हो गई। जिद ठान ली कि प्रोफेशनल क्रिकेटर ही बनना है। जो लोग पहले लड़कों के साथ खेलने पर तंज कसते थे,आज वेही उसे बेटी बताते नहीं थकते। दरअसल, हमने लोगों की तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया। अलसुबह प्रैक्टिस पर जाना होता था। टेबल पर चढ़कर कुंडी खोल लेती थी,ताकि किसी की नींद में खलल न पड़े। चोट लगती तो खुद दवाई कर लेती। हरलीन मानसिक तौर पर बहुत मजबूत है, अच्छी एक्टर भी है।”

तान्या भाटिया
विकेटकीपर बल्लेबाज तान्या भाटिया। पिता संजय प्रोफेशनल क्रिकेटर के बाद बैंकर बन गए। भाई सहज चंडीगढ़ से खेलता है। पिता बताते हैं, “मैं सख्त मिजाज हूं। क्रिकेटर रहा हूं, इसलिए सोच भी वैसी ही है। तान्या को हमेशा कमियां बताते हुए, उन्हें दूर करने को कहता हूं। वहमुझसे डरती भी बहुत है। 7 साल की उम्र में उसने खेलना शुरू किया। पहले योगराज (युवराज सिंह के पिता) और फिर आरपीसिंह ने कोचिंग दी। तान्या बहुत रिजर्व नेचर की है। उसके दोस्त भी नहीं हैं। 11 साल की उम्र में वो अंडर 19 के बॉलर्स का सामना करती थी। मैंने कई बार उसे छुपकर खेलते हुए देखा। कोचिंग के लिए कभी लेट हो जाती तो घर पर हंगामा खड़ा कर देती थी।”

जेमिमा रोड्रिग्ज
मुंबई के भांडुप की जेमिमा रोड्रिग्ज। भाई ईवान क्रिकेट कोच हैं। 19 साल की जेमिमा ने दो साल पहले साऊथ अफ्रीका के खिलाफ डेब्यू किया। भाई को देखकर 4 साल की उम्र में खेलना शुरू किया। जेमिमा हॉकी की भी बेहतरीन प्लेयर हैं। 2017 में जब उनका चयन दक्षिण अफ्रीकी दौरे के लिए हुआ तो सचिन तेंदुलकर ने जेमिमा को अपने घर बुलाया। एक घंटे की इस मुलाकात को जेमिमा जिंदगी का सबसे अनमोल तोहफा बताती हैं। हालांकि, वहफैन रोहित शर्मा की हैं। जेमिमा को संगीत का बहुत शौक है। खुद भी बेहतरीन गिटार प्लेयर और डांसर हैं। हाल ही में उनका एक डांस वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था।



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Women's T20 World Cup final IND vs AUS | life stories of indian women cricketers smriti mandhana jemima rodirgus radha yadav taniya bhatiya and harleen kaur.


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रोहतक.रोहतक का सुनारोंवाला मोहल्ला इन दिनों चर्चा में है। वजह हैं क्रिकेटर शेफाली वर्मा, जिसके चौके-छक्के के चर्चे पूरे शहर में हैं। जब हम धनीपुरा इलाके में पहुंचे और संजीव वर्मा के घर का पता पूछा तो लोग बता नहीं पाए, लेकिन उनकी बेटी शेफाली का नाम लेते ही घर तक छोड़कर गए। 3 मार्च से संजीव वर्मा घर पर नहीं हैं, वे सेमीफाइनल और फाइनल देखने ऑस्ट्रेलिया गए हैं। शेफाली की मां प्रवीन बाला भी वहां जाना चाहती थीं, परउनके पास पासपोर्ट नहीं था। इस वजह से वे नहीं जा सकीं।

शेफाली की मां प्रवीन बाला।

हम जब शेफाली के घर पहुंचे तो उनकी मां प्रवीन बाला जेठानियों से घिरी थीं। लगातार फोन पर बातचीतकर रही हैं। एक कटता था तो दूसरा आ जाता है। नजदीक वाले तो हैं ही, दूर-दूर तक की रिश्तेदारों से बधाइयों के फोन आ रहे हैं। इस बीच बेटी शेफाली से भी दिन में एक बार बात जरूर होती है। शेफाली पास हो या दूर, उन्हें उसके खाने की बहुत चिंता रहती है। फोन पर बात होते ही सबसे पहले वे यही पूछती हैं कि खाना खाया किनहीं। इसके बाद खेल से जुड़ी बातें होती हैं। प्रवीन बताती है कि घर आते ही शेफाली की पहली फरमाइश पनीर भुर्जी और पनीर पराठे होते हैं।


शेफाली पढ़ती कम थी, खेलती ज्यादा थी
प्रवीन कहती हैं कि हर एक मां अपनीबेटी को पढ़ने के लिए कहती है। मैं भी शेफाली को पढ़ने और खेलने के लिए बोलती थी, लेकिन वह पढ़ती कम और खेलती ज्यादा थी। कम पढ़ने के बाद भी वहपढ़ाई मैं भी अच्छी थी और खेल मैं तो चौके-छक्के मारती ही थी।

गली में खेलती तो पड़ोसी कहते थे, तो बड़ा बुरा लगता था
प्रवीन बताती हैं कि शेफाली जब गली में खेलती थी तो आस-पड़ोस के लोग बड़ी टोका-टाकी करते थे। कुछ तो कहते थे कि ये बच्चे तो गली मैंखेलेंगे, कुछ नहींकरने वाले। किसी को लगता नहींथा कि वह इतनाआगे जाएगी। अब उसके मैच देखकर आस-पड़ोस और रिश्तेदार सब चुप हैं, हर कोई बस तारीफ करता है।


फोन मुझे करती है, बातें पापा की करती है
अपनी जेठानी सुदेश को बताते हुए प्रवीन बोली कि शेफाली पापा की लाड़ली ज्यादा है। फोन तो मेरे पास करेगी, लेकिन बातें पापा की करती है। घर पर आकरभी अपने पापा के साथ ही मस्ती करती है। अपने पापा की नकल भी करती है, उनकी तरह आवाज निकालेगी। तभी पापा-बेटी की ज्यादा बनती है।


उम्र कम है इसलिए उसे समझाती रहती हूं
प्रवीन के मुताबिक,जब भी शेफाली से बात होती हैतो हमेशा उसे समझाती हूं। उसकी उम्र कम है, इसलिए प्यार से समझाना पड़ता है कि बेटा किसी की बात किसी के आगे नहीं करनी। सिर्फ गेम खेलना है और गेम पर ही ध्यान देना है। फिफ्टी या हंड्रेडपर नहीं जाना, टीम के बारे में सोचनाऔर वर्ल्ड कप लेकर आना। वर्ल्ड कप जीतकर आओगीतो खुशी ही कुछ और होगी।

खुद बोली- मेरे बाल कटवा दो

घर में सजीं शेफाली की फोटोज।

प्रवीन बाला कहती हैं कि हमने कभी अपने बेटे और बेटी में फर्क नहींसमझा। शेफाली के पापा ने उसे भी एकेडमी भेजना शुरू किया तो मैंने बराबर सपोर्टकिया। लड़की होने की वजह से एकेडमी में उसे खिलाते नहीं थे। उसने तंग होकर घर आकै कहा कि पापा मेरे बाल कटवा दो। हमने मना नहींकिया, तुरंत उसके पापा ने बाल कटवा दिए। फिर कोई पहचान नहीं पाता था कि लड़का है या लड़की। आराम से क्रिकेट खेलती रही।

परिवार में आर्थिक संकट आया तो सबएकजुट हो गए

शेफाली की मां प्रवीन बाला (एकदम बाएं), उनके बगल में दोनों ताई और किनारे बैठा भाई।

शेफाली की मां प्रवीन कहती है कि एक वक्त बहुत बुरा आया था। एक व्यक्तिशेफाली के पापा संजीव की नौकरी लगवाने के नाम पर घर के सारे पैसे लेकर चला गया। पूरा परिवार परेशान रहता था। जैसे-तैसे संभले। उसके पापा ने ब्याज पर पैसा उठाकै घर का खर्च चलाया। शेफाली फटे ग्लव्ज पहनकरग्राउंड जाती थी। कोई देख नहींसके, इसलिए सीधे किट बैग में हाथ डालकर ग्लव्जपहन लेती थी। ऐसा में बच्चों को एक ही बात कहती थी कि बेटा आज ऐसा टाइम है तो अच्छे दिन भी आएंगे।


ताई बोली- पड़ोसियों के घर गेंद जाती तो शिकायतकरने आते थे

शेफाली की ताई सुदेश।

शेफाली के नटखटपन की कहानी सुनाते हुए उसकी ताई सुदेश कहती हैं- वो तो सारा दिन क्रिकेट खेलती थी। कभीघर की छत परतो कभी गली में। इतनी जोर से गेंद को मारती थी कि पड़ोसियों के घर गिरती थी। आए दिन पड़ोसी उलाहना लेकर घर आते। उन्हें भी समझाकरवापिस भेजना पड़ता था।



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Shafali Verma: Shafali Verma Women Day Mahila Diwas 2020 Special | India Women Captain (IND W) Shafali Verma Success Story and Life-History


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नई दिल्ली. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि मई के आखिरी हफ्ते में चार राफेल फाइटर जेट भारत पहुंच जाएंगे। इसके बाद हर डेढ़ महीने में एक जेट मिलेगा। भारत ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं। शनिवार को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री ने कश्मीर और चीन को लेकर हालात सामान्य होने का दावा किया। वहीं, संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर उन्होंने कहा कि यह कानून किसी भारतीय को प्रभावित नहीं करता है।

राजनाथ ने कहा- कश्मीर में हालात सामान्य हैं और मौजूदा परिस्थितियों में भारत को अपने उत्तरी पड़ोसी (चीन) से कोई खतरा नहीं है। हालांकि, भारत और चीन के बीचसीमा को लेकर वैचारिक मतभेद हैं, लेकिन हमारे संबंधों में सुधार हुआ है। लोगों ने डोकलाम में भी देखा कि हम कहीं से कमजोर नहीं हैं। रक्षा मंत्री ने पिछले साल दशहरे (8 अक्टूबर, 2019) पर फ्रांस के मेरिनेक एयरबेस पर पहले राफेल की डिलीवरी ली थी। उन्होंने राफेल में35 मिनट तक उड़ान भी भरी थी।

रक्षा निर्यात बढ़ाने का लक्ष्य
रक्षा मंत्री ने कहा कि 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लिए रक्षा उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्होंने कहा किअगले पांच साल में रक्षा उत्पादों और सेवाओं के निर्यात को पांच अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्यहै। इसके लिए निजी क्षेत्र को भी सरकार सहूलियतें देगी, ताकि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

एयरोस्पेस डेवलपमेंट पर फोकस
अभी भारत की अर्थव्यवस्था 2.8 ट्रिलियन डॉलर कीहै।मैन्युफैक्चरिंगक्षेत्र में 2025 तक एक ट्रिलियन डालर तक पहुंचने की क्षमता है। इसके लिए सरकार अर्थव्यवस्था और मानव-पूंजी को बढ़ावा देने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रम चला रही है। 2025 तक एयरोस्पेस और रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में 26 अरब डॉलर के कारोबार का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एयरोस्पेस में 90 सीटर सिविल एयरक्राफ्ट, पीपीपी मॉडल के तहत पांच अरब डॉलर का सिविल हेलिकॉप्टर उद्योग और डिफेंस कॉरीडोर में न्यू एयरो इंजन कांप्लेक्स बनाने जैसेकई प्लेटफार्मशामिल हैं। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के इस्तेमाल केलिए रोडमैप तैयार किया है। इसके तहत 2024 तक एआई से लैस कम से कम 25 रक्षा उत्पाद तैयार करने का लक्ष्य है।



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फ्रांस में राफेल की पूजा करते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (फाइल)


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नई दिल्ली. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर एयर इंडिया रविवार को अपने सभी महिला चालक दल के साथ 52 उड़ानें संचालित करेगी। शनिवार को एयर इंडिया ने बयान जारी कर इसकी जानकारी दी थी। इसमें कहा गया था कि एयर इंडिया दिल्ली से सैन फ्रांसिस्को समेत अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मार्गों पर महिला चालक दल के साथ उड़ानों का संचालन करेगी।


एयर इंडिया ने ट्वीट किया, ‘‘एयर इंडिया महिला दिवस के अवसर पर आठ अंतरराष्ट्रीय और 44 घरेलूउड़ानों का संचालन कर रही है।’’

महिला क्रू हर तरह के विमानों का संचालन कर रहीं: एयर इंडिया

कंपनी के मुताबिक, एयर इंडिया की महिला चालक दल की सदस्य हर तरह के विमानों का संचालन कर रही हैं। हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक लोकचार के साथ समन्वय में नारी शक्ति को सलाम। एयर इंडिया संभवत:पहली एयरलाइन कंपनी है जो सबसे ज्यादा महिला कर्मचारियों के साथ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानें संचालित करती है।



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Women's Day: Air India operate 52 flights with all-woman crew


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अयोध्या. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने कहा है कि राम मंदिर विहिप के न्यास मॉडल पर बनेगा। इसके लिए विहिप कार्यशाला में तराशे गए पत्थरों को मंदिर निर्माण में इस्तेमाल किया जाएगा। उनका दावा है कि मंदिर में रामलला पूजन वैष्णव समाज का ही कोई व्यक्ति करेगा। दासअयोध्या को विश्व की सबसे खूबसूरत नगरी के तौर पर विकसित करने की मांग भी करते हैं। उनका कहना है कि मंदिर का मॉडल बनाने वाले चंद्रकांत भाई सोमपुरा की देखरेख में ही मंदिर बनेगा। ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद दास पहली बार अयोध्या पहुंचे हैं। यहां पहुंचने बाद उन्होंने ट्रस्ट और मंदिर निर्माण से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। पढ़े बातचीत के प्रमुख अंश....

सवाल: विहिप के मंदिर मॉडल में कोई फेरबदल की गुंजाइश है या उसी मॉडल पर मंदिर बनेगा। क्या तराशे गए पत्थरों का भी उपयोग किया जाएगा?
जवाब: मंदिर में पत्थर वही लगेगा, जो पूर्व में श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने तराशकर रखवाए हैं। मंदिर मॉडल में भी कोई परिवर्तन के आसार अब नहीं हैं। हां, मंदिर के शिखर और बाहरी परिवेश को
बढ़ाया जा सकता है। मंदिर के 70 एकड़ के सम्पूर्ण परिसर को भव्य रूप दिया जाएगा।


सवाल: मॉडल बनाने वाले चंद्रकांत भाई सोमपुरा ही मंदिर बनाएंगे या किसी अन्य आर्किटेक्ट को हायर किया है?
जवाब:
मंदिर तो सोनपुरा की ही देखरेख में बनेगा, बाकी परिसर का निर्माण कार्य किसी ना किसी सक्षम संस्था को देना ही होगा, ताकि निर्माण कार्य को जल्दी और तेजी से किया जा सके।


सवाल: मंदिर मॉडल पूरा करने की क्या कोई समय सीमा भी निर्धारित करेंगे, आपके हिसाब से कितने समय में बनकर तैयार हो जाना चाहिए?
जवाब:
मंदिर निर्माण में जो अवरोध थे,वह समाप्त हो चुके हैं। संघर्ष का दौर समाप्त हुआ। अब निर्माण होना है। मंदिर शीघ्र तैयार होगा। मंदिर निर्माण को समयसीमा में तो नहीं बांधा जा सकता
है। लेकिन उम्मीद है कि दो-तीन साल में भक्त अपने आराध्य का दर्शन गर्भगृह में कर सकते हैं।


सवाल: क्या राममंदिर निर्माण के लिए केंद्र और यूपी सरकार से भी फंड की मांग की जाएगी?
जवाब:
यह सरकारी मंदिर नहीं है। मंदिर का निर्माण सरकारी पैसे से नहीं होगा। इसमें तो जन-जन का सहयोग अपेक्षित है। मंदिर निर्माण के लिए समाज दान देगा। इसके लिए बैंक में खाता खोला जाचुका है। मंदिर आंदोलन के दौरान कार्यशाला के लिए हमने सवा रुपए दान में मांगा था, अब दस रुपया मांगेंगे। इसके अतिरिक्त भी कोई अधिक दान देगा तो भी वह सीधे बैंक अकाउंट में भेज
सकता है।

सवाल: ट्रस्ट की अगली बैठक कब प्रस्तावित है? क्या मंदिर के शिलान्यास की कोई तारीख तय हुईहै?

जवाब: बैठक इस महीने के अंत में हो सकती है। शिलान्यास हो चुका है। हां, मंदिर निर्माण से पहले वैदिक विद्वानों से विचार-विमर्श कर पूजन की तिथि निर्धारित की जा सकती है। वह भी सभी
ट्रस्टियों की सहमति से।


सवाल: मंदिर निर्माण शुरू होगा तो क्या उन कारसेवकों को भी बुलाया जाएगा जो मंदिर आंदोलन में शामिल हुए थे? क्या शहीद कारसेवकों का कोई म्यूजियम भी बनाया जाएगा?
जवाब:हां, पूजन के दौरान कारसेवकों की उपस्थित उनका अधिकार है। शहीद कारसेवकों की स्मृति में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया जाएगा।


सवाल: मंदिर में पूजा का अधिकार ब्राह्मण के अलावा किसी अन्य जाति के व्यक्ति को देने भीपर क्या विचार कर सकते हैं?
जवाब:
भगवान राम सामाजिक समरसता के केंद्र बिंदु हैं। उन्होंने सभी को गले लगाया। संतों ने मंदिर निर्माण से पूर्व 1989 में शिलान्यास एक दलित बंधु से कराया था। वे आज भी मंदिर ट्रस्ट के सदस्य हैं। रही बात पूजन की तो वैष्णव पूजन पद्धति और कर्मकांड के साथ वैदिक जीवन का निर्वहन करने वाला ही पुजारी होगा।

सवाल: उमा भारती और कल्याण सिंह ने ट्रस्ट में ओबीसी को प्रतिनिधित्व नहीं देने पर सवाल उठाया है? किस तरह से देखते हैं?
जवाब:
मैंने नहीं सुना कि उन्होंने क्या कहा? मंदिर जन-जन का है। यहां सभी के लिए द्वार खुले हैं।ट्रस्ट केवल व्यवस्था का एक अंग है।

सवाल: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी ट्रस्ट के कुछ सदस्यों के नाम पर आपत्ति कर रहे हैं। इस पर क्या कहेंगे?
जवाब:
ट्रस्ट में सभी संत अपने-अपने क्षेत्र के सम्मानीय हैं। समाज स्वामी वासुदेवानंद जी के योगदान को विस्मृत नहीं कर सकता है।


सवाल: आप पर विवादित ढांचा गिरानेका केसचल रहा है। ऐसी चर्चा है कि इसी साल फैसला आ जाएगा। क्या लगता है?
जवाब: स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए देश के अनगिनत लोग शहीद हुए। विवादित रहा ढांचा भी एक विदेशी आक्रमण का प्रतीक था। इसे स्वयं हनुमानजी ने कारसेवकों के माध्यम से हटवाया। हम सभी तो निमित्त थे। कांग्रेस ने साधु-संतों और राष्ट्रवादी संगठनों को बदनाम करने के लिए ढांचा गिराने का केस चलवाया। अब मंदिर निर्माण होने जा रहा है। वह भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पर। सीबीआई क्या फैसला देती है, यह कहना जल्दबाजी होगी? राम जी के लिए घर परिवार छोड़ा। आगे भी यह क्रम जारी रहेगा। हम तो राम जी के चाकर हैं,जो होगा उसे भी देखेंगे।



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Ayodhya Ram Mandir: interview with mahant nritya gopaldas maharaj


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अयोध्या. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने कहा है कि राम मंदिर विहिप के न्यास मॉडल पर बनेगा। इसके लिए विहिप कार्यशाला में तराशे गए पत्थरों को मंदिर निर्माण में इस्तेमाल किया जाएगा। उनका दावा है कि मंदिर में रामलला पूजन वैष्णव समाज का ही कोई व्यक्ति करेगा। दासअयोध्या को विश्व की सबसे खूबसूरत नगरी के तौर पर विकसित करने की मांग भी करते हैं। उनका कहना है कि मंदिर का मॉडल बनाने वाले चंद्रकांत भाई सोमपुरा की देखरेख में ही मंदिर बनेगा। ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद दास पहली बार अयोध्या पहुंचे हैं। यहां पहुंचने बाद उन्होंने ट्रस्ट और मंदिर निर्माण से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। पढ़े बातचीत के प्रमुख अंश....

सवाल: विहिप के मंदिर मॉडल में कोई फेरबदल की गुंजाइश है या उसी मॉडल पर मंदिर बनेगा। क्या तराशे गए पत्थरों का भी उपयोग किया जाएगा?
जवाब: मंदिर में पत्थर वही लगेगा, जो पूर्व में श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने तराशकर रखवाए हैं। मंदिर मॉडल में भी कोई परिवर्तन के आसार अब नहीं हैं। हां, मंदिर के शिखर और बाहरी परिवेश को
बढ़ाया जा सकता है। मंदिर के 70 एकड़ के सम्पूर्ण परिसर को भव्य रूप दिया जाएगा।


सवाल: मॉडल बनाने वाले चंद्रकांत भाई सोमपुरा ही मंदिर बनाएंगे या किसी अन्य आर्किटेक्ट को हायर किया है?
जवाब:
मंदिर तो सोनपुरा की ही देखरेख में बनेगा, बाकी परिसर का निर्माण कार्य किसी ना किसी सक्षम संस्था को देना ही होगा, ताकि निर्माण कार्य को जल्दी और तेजी से किया जा सके।


सवाल: मंदिर मॉडल पूरा करने की क्या कोई समय सीमा भी निर्धारित करेंगे, आपके हिसाब से कितने समय में बनकर तैयार हो जाना चाहिए?
जवाब:
मंदिर निर्माण में जो अवरोध थे,वह समाप्त हो चुके हैं। संघर्ष का दौर समाप्त हुआ। अब निर्माण होना है। मंदिर शीघ्र तैयार होगा। मंदिर निर्माण को समयसीमा में तो नहीं बांधा जा सकता
है। लेकिन उम्मीद है कि दो-तीन साल में भक्त अपने आराध्य का दर्शन गर्भगृह में कर सकते हैं।


सवाल: क्या राममंदिर निर्माण के लिए केंद्र और यूपी सरकार से भी फंड की मांग की जाएगी?
जवाब:
यह सरकारी मंदिर नहीं है। मंदिर का निर्माण सरकारी पैसे से नहीं होगा। इसमें तो जन-जन का सहयोग अपेक्षित है। मंदिर निर्माण के लिए समाज दान देगा। इसके लिए बैंक में खाता खोला जाचुका है। मंदिर आंदोलन के दौरान कार्यशाला के लिए हमने सवा रुपए दान में मांगा था, अब दस रुपया मांगेंगे। इसके अतिरिक्त भी कोई अधिक दान देगा तो भी वह सीधे बैंक अकाउंट में भेज
सकता है।

सवाल: ट्रस्ट की अगली बैठक कब प्रस्तावित है? क्या मंदिर के शिलान्यास की कोई तारीख तय हुईहै?

जवाब: बैठक इस महीने के अंत में हो सकती है। शिलान्यास हो चुका है। हां, मंदिर निर्माण से पहले वैदिक विद्वानों से विचार-विमर्श कर पूजन की तिथि निर्धारित की जा सकती है। वह भी सभी
ट्रस्टियों की सहमति से।


सवाल: मंदिर निर्माण शुरू होगा तो क्या उन कारसेवकों को भी बुलाया जाएगा जो मंदिर आंदोलन में शामिल हुए थे? क्या शहीद कारसेवकों का कोई म्यूजियम भी बनाया जाएगा?
जवाब:हां, पूजन के दौरान कारसेवकों की उपस्थित उनका अधिकार है। शहीद कारसेवकों की स्मृति में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया जाएगा।


सवाल: मंदिर में पूजा का अधिकार ब्राह्मण के अलावा किसी अन्य जाति के व्यक्ति को देने भीपर क्या विचार कर सकते हैं?
जवाब:
भगवान राम सामाजिक समरसता के केंद्र बिंदु हैं। उन्होंने सभी को गले लगाया। संतों ने मंदिर निर्माण से पूर्व 1989 में शिलान्यास एक दलित बंधु से कराया था। वे आज भी मंदिर ट्रस्ट के सदस्य हैं। रही बात पूजन की तो वैष्णव पूजन पद्धति और कर्मकांड के साथ वैदिक जीवन का निर्वहन करने वाला ही पुजारी होगा।

सवाल: उमा भारती और कल्याण सिंह ने ट्रस्ट में ओबीसी को प्रतिनिधित्व नहीं देने पर सवाल उठाया है? किस तरह से देखते हैं?
जवाब:
मैंने नहीं सुना कि उन्होंने क्या कहा? मंदिर जन-जन का है। यहां सभी के लिए द्वार खुले हैं।ट्रस्ट केवल व्यवस्था का एक अंग है।

सवाल: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी ट्रस्ट के कुछ सदस्यों के नाम पर आपत्ति कर रहे हैं। इस पर क्या कहेंगे?
जवाब:
ट्रस्ट में सभी संत अपने-अपने क्षेत्र के सम्मानीय हैं। समाज स्वामी वासुदेवानंद जी के योगदान को विस्मृत नहीं कर सकता है।


सवाल: आप पर विवादित ढांचा गिरानेका केसचल रहा है। ऐसी चर्चा है कि इसी साल फैसला आ जाएगा। क्या लगता है?
जवाब: स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए देश के अनगिनत लोग शहीद हुए। विवादित रहा ढांचा भी एक विदेशी आक्रमण का प्रतीक था। इसे स्वयं हनुमानजी ने कारसेवकों के माध्यम से हटवाया। हम सभी तो निमित्त थे। कांग्रेस ने साधु-संतों और राष्ट्रवादी संगठनों को बदनाम करने के लिए ढांचा गिराने का केस चलवाया। अब मंदिर निर्माण होने जा रहा है। वह भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पर। सीबीआई क्या फैसला देती है, यह कहना जल्दबाजी होगी? राम जी के लिए घर परिवार छोड़ा। आगे भी यह क्रम जारी रहेगा। हम तो राम जी के चाकर हैं,जो होगा उसे भी देखेंगे।



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Ayodhya Ram Mandir: interview with mahant nritya gopaldas maharaj


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आज वुमंस डे है। औरतों का दिन। पर उनके लिए जगह किसे छोड़नी है, स्पेस किसे देना है, बोलना किसे है- मर्दों को ही ना? तो उन्हें ही सुनें, उन बातों के जरिये जो हर घर की है, दीवार के अंदर की है, बाहर की है, चौक-चौराहे की है, हर जगह की है। भास्कर के न्यूज रूम में इसी पर बात हुई, उनमें से सिर्फ पांच बातें... आपको अपनी सी लगेंगी
देखें, सुनें और हो सके तो गुनें भी...

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Watch: women's day special video on 8 march 2020


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शिलॉन्ग. इस साल जनवरी में नॉर्थ-ईस्ट के एक न्यूज चैनल पर खबर चल रही थी कि असम भारत में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि असम में महिलाओं के ट्रैप होने के सबसे ज्यादा 66 मामले दर्ज हुए। 265 महिलाएं साइबर अपराध की शिकार हुईं। 2018 में असम में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 27,728 मामले दर्ज हुए, जो भारत के कुल अपराध का 7.3 % है।


इससे भी ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े मां की पूजा करने वाले मेघालय के हैं। मेघालय पुलिस के हालिया आंकड़े बताते हैं कि यहां महिलाओं के खिलाफ अपराध के 481 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि बच्चों के खिलाफ 292 केस दर्ज हुए। महिलाओं के खिलाफ दर्ज हुए 481 मामलों में से 58 दुष्कर्म के इरादे से की गई मारपीट के थे, 67 दुष्कर्म के थे। इसके अलावा 17 केस दुष्कर्म के प्रयास, 36 अपहरण, 14 केस सम्मान को ठेस पहुंचाने को लेकर थे।


मेघालय में करीब 30% परिवार की जिम्मेदारी सिंगल वुमन (अकेली रहने वाली महिला) के जिम्मे है। ये वे महिलाएं हैं, जिन्हें उनके पति ने छोड़ दिया या तलाक दे दिया है। बच्चे इन्हीं के साथ रहते हैं। 29% आबादी इन्हीं घरों में रहती है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि महिलाएं घर चलाती हैं, वे बाजार के बड़े हिस्से पर प्रभाव रखती हैं, लेकिन वे सब्जियों और फल जैसे जल्दी खराब हो जाने वाले सामान ही बेचती हैं।

शिलॉन्ग की ज्यादातर महिलाएं सब्जी और फल बेचती हैं।

नगालैंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध दो साल में तीन अंकों से दो अंकों में पहुंचा
बात नगालैंड की करें तो यहां 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा 105 केस दर्ज हुए थे। पर यह दो साल के अंदर ही दो अंकों में पहुंच गए। एनसीआरबी के मुताबिक, 2018 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 75 केस दर्ज हुए, 2017 में 79 केस थे। आंकड़े 90 के पार जा सकते थे, पर कई ऐसे मामले भी थे, जो दर्ज ही नहीं किए गए। वास्तव में मणिपुर की पहाड़ियों पर जहां नगा रहते हैं, वहां भारतीय कानून के तहत किसी के खिलाफ केस दर्ज नहीं किए जा सकते। नागा समुदाय अभी भी अपनी संप्रभुता को बचाए रखने के लिए भारतीय सरकार से बातचीत जारी रखे हुए हैं।


छेड़छाड़ की रिपोर्ट इसलिए भी दर्ज नहीं हो पाती, क्योंकि इसे अभी भी शर्म माना जाता है
एनसीआरबी के 2017 के आंकड़े बताते हैं कि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा में महिलाओं के खिलाफ अपराध के केस केवल तीन अंकों में हैं। यह पूरे भारत के आंकड़ों का 1% भी नहीं है। हर कोई जानता है कि मिजोरम में अपराध दर सबसे कम है, पर यह इसलिए है, क्योंकि यहां केस दर्ज नहीं किए गए। अपराध, दुष्कर्म और छेड़छाड़ की रिपोर्ट इसलिए भी दर्ज नहीं हो पाती, क्योंकि समाज में इसे शर्म की बात माना जाता है। इसके अलावा चर्च का प्रभुत्व भी महिलाओं द्वारा केस दर्ज कराने के रास्ते में मुश्किल बनता है।


महिलाएं वोट करने में पुरुष से आगे हैं, पर विधानसभा पहुंचने में पीछे
नॉर्थ-ईस्ट में मेघालय लैंगिक समानता के लिहाज से सबसे ज्यादा बेहतर है। यह बात आंकड़े साबित करते हैं। फिलहाल मेघालय की 60 सदस्यीय विधानसभा में 4 महिलाएं हैं, यह सदस्यों का 6.6 % है। असम के 126 विधायकों में 8 महिला हैं। यह कुल सदस्यों का 6.34% है। नगालैंड ओर मिजोरम में एक भी महिला विधायक नहीं हैं। मणिपुर में 60 विधायकों में 2 महिला हैं। त्रिपुरा के 30 विधायकों में से 3 महिला हैं। सिक्किम की 30 सदस्यीय विधानमंडल में 4 महिला विधायक हैं। ताजुब की बात यह है कि नॉर्थ-ईस्ट में हर चुनाव में महिला मतदाता पुरुषों से वोट करने में आगे रहती हैं। लेकिन सिर्फ राजनीति ही ऐसी जगह नहीं है, जहां महिलाएं हासिए पर हैं।


असम के सिवाय इस क्षेत्र में एक दशक में साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ है
साक्षरता के मामले में जेंडर गैप बाकी देश की तुलना में इस क्षेत्र में कम है। 2001 और 2011 में राष्ट्रीय साक्षरता दर में जेंडर गैप क्रमशः 21.6% और 16.68% है। यह मिजोरम, मेघालय और नगालैंड के लिहाज से कम था। यहां अरुणाचल प्रदेश में साक्षरता दर में जेंडर गैप सबसे ज्यादा था। हालांकि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में साक्षरता दर बहुत सुधार हुआ है। असम को छोड़कर इस क्षेत्र के सभी राज्यों में साक्षरता में जेंडर गैप कम हो गया है। हैरानी की बात कि यह गैप असम में बढ़ गया है।


नॉर्थ-ईस्ट स्वास्थ्य और देखभाल के मामले में लगातार पिछड़ रहा है
नॉर्थ-ईस्ट स्वास्थ्य और देखभाल के मामले में लगातार पिछड़ रहा है। असम में मातृत्व मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। यहां एक लाख बच्चों के जन्म में औसतन 300 मांओं की जान जाती है। जबकि देश में औसत दर 178 है। शिशु मृत्यु दर भी असम में सबसे ज्यादा है। यहां 1000 बच्चों में से 48 की मौत होती है। एनएसएसओ के 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश में यह दर 37 है।


बदलाव के लिए आवाज उठानी होगी, क्योंकि हमें एक स्वस्थ लोकतंत्र और राजनीति चाहिए
दुर्भाग्य है कि नॉर्थ-ईस्ट की सरकारों की खामियों को दूर करने में कई अड़चनें आ जाती हैं। यह उस समाज की ओर से आती हैं, जहां आवाजों को पहले परंपराओं द्वारा दबाया जाता है फिर धर्मों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। लोगों को लगता है कि उनकी आवाज कोई नहीं सुनता। कई इसलिए भी आवाज उठाने में संकोची हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं समाज के लोगों, उनके साथियों और परिवार द्वारा उनकी आलोचना न हो जाए।


आवाज एजेंसी जैसी है और यह आवाज इसलिए जरूरी है, क्योंकि हमें एक स्वस्थ लोकतंत्र और राजनीति चाहिए।



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शिलॉन्ग स्थित सब्जी मार्केट, जिसे महिलाएं ही चलाती हैं।


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बीजिंग/रोम. चीन में कोरोनावायरस का प्रभाव घटता जा रहा है। यहां शनिवार को केवल 27 लोगों की जान गई है, जबकि संक्रमण के 41 मामले सामने आए हैं। सभी मामले देश के सबसे ज्यादा प्रभावितहुबेई प्रांत के हैं। वहीं, चीन के बाद सबसे ज्यादा इटली में 233 लोग मारे जा चुके हैं। यहां 5883 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, चीन के बाहर 21,114 लोग संक्रमित हुए हैं और 413 लोगों की मौत हुई है। चीन के हेल्थ कमीशन ने रविवार को कहा कि शनिवार को अस्पताल से 1660 लोगों को छुट्टी मिली। यहां अब तक 57,065 नागरिक ठीक हो चुके हैं। चीन में सबसे ज्यादा हुबेई प्रांत में 67707 लोग संक्रमित हुए हैं। यहां का वुहान शहर कोरोनावायरस का केंद्र रहा है।

कैलिफोर्निया के बाद न्यूयॉर्क में इमरजेंसी लगी

अमेरिका के न्यूयॉर्क में शनिवार को कोरोनोवायरस के मामले बढ़कर 76 हो गए। इसके बाद वहां के गवर्नर एंड्रयू क्यूमो ने राज्य में आपातकाल घोषित कर दिया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर में 11, न्यूयॉर्क के वेस्टचेस्टर काउंटी में 57, लॉन्ग आइलैंड के नासाओ काउंटी में चार, रॉकलैंड काउंटी और साराटोगा काउंटी में 2-2नए मामलों की पुष्टि हुई है। इससे पहले कैलिफोर्निया में भी इमरजेंसी लगाई गई थी।

दुनियाभर में कोरोना की स्थिति

एशिया: दक्षिण कोरिया में 7134, ईरान में 5823 चपेट में हैं

एशिया में दक्षिण कोरिया, ईरान सबसे ज्यादा इससे प्रभावित है। ईरान में संक्रमितों की संख्या 5823 और मौतों का आंकड़ा 145 हो गया है। दक्षिण कोरिया में 7134 केस सामने आए हैं, वहीं 44 लोग मारे गए हैं। द.कोरिया केदाएगू शहर सबसे ज्यादा प्रभावित है। यहां5 हजार से ज्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है।जापान में संक्रमण के 1116 मामले सामने आए हैं, जबकि 12 लोगों की मौत हो चुकी है। उधर, भूटान में कोरोनावायरस का पहला मामला सामने आया है। एक अमेरिकी पर्यटक में संक्रमण की पुष्टि हुई है। 76 साल का अमेरिकी नागरिक दो मार्चको भारत से भूटान आया था। 5 मार्च को बुखार के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया

भारत:34मामले सामने आए

भारत में कोरोनावायरस के 34मामले सामने आए हैं।शनिवार को अमृतसर में इटली से लौटेदो मरीजों में संक्रमण की पुष्टि हुई। दोनों मरीज और उनके परिजन को आइसोलेशन में रखा गया है। वहीं, ईरान से लद्दाख लौटे दो लोगों और ओमान से तमिलनाडु लौटे एक व्यक्ति भी संक्रमितमिला वायरस के संक्रमण की जांच के लिए देशभर 52लैब बनाई गई हैं, इनमें से 2 दिल्ली में हैं। दूसरी ओर, सरकार के निर्देश पर टेलीकॉम कंपनियांरिंगटोन मेंअवेयरनेस मैसेज चला रही हैं। सरकार ने साफ किया है कि विदेश से आने वाले यात्रियों की 9 और एयरपोर्ट्स पर स्क्रीनिंग की जा सकेगी। लिहाजा ऐसे एयरपोर्ट्स की संख्या 21 से बढ़कर 30 हो गई है। उधर, केंद्र सरकार के दफ्तरों में 31 मार्च तक बायोमीट्रिक अटेंडेंस पर रोक लगा दी गई है।

चीन के निर्यात में गिरावट
कोरोनावायरस के चलते बीते दो महीनों में चीन के कारोबार पर बुरा असर पड़ा है। निर्यात में 17.2% की गिरावट आई है। यह फरवरी 2019 के दौरान अमेरिका से ट्रेड वॉर के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है। चीन के आयात में भी 4% की कमी आई है।

यूरोप

अमेरिका में मृतकों की संख्या 19हुई

अमेरिका में कोरोनावायरस से 19लोगों की जान गई है।417 लोग संक्रमित हैं। इसके बाद ट्रम्प सरकार अब इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए सेना को बुलाने पर विचार कर रही है।मरने वालों में ज्यादतर जापान के डायमंड प्रिंसेज शिप से लौटे यात्री हैं।अमेरिका लाए गए लोगों को फिलहाल क्वारैंटाइन (अलग-थलग) किया गया है। कैलिफोर्निया के तट से दूर प्रिंसेज शिप पर हेलीकॉप्टर से मेडिकल किट पहुंचाईजा रही है।

इटली में 233 लोगों की मौत हुई

इटली में कोरोनावायरस से 233 लोगों की मौत के बाद पर्यटकों ने यहां जाना बंद कर दिया है। इसका असर भी दिख रहा है। वेनिस शहर की ग्रैंड कैनाल पूरी तरह खाली हो गई है, यह हमेशा सैलानियों से भरी होती थी।

दुनिया के प्रमुख देशों में कोरोनावायरस से हुई मौतें और पीड़ितों की संख्या

देश संक्रमण मौत
चीन 80,695 3097
द. कोरिया 7134 44
इटली 5883 233
ईरान 5823 197
जापान 1116 12
जर्मनी 799 0
फ्रांस 949 11
स्पेन 500 10
अमेरिका 417 19
स्विट्जरलैंड 268 1
नीदरलैंड्स 188 1
सिंगापुर 130 0
ब्रिटेन 206 2
हॉन्गकॉन्ग 108 2
स्वीडन 137 0
ऑस्ट्रेलिया 63 2
थाईलैंड 50 1
ताइवान 45 1
इराक 54 4
अर्जेंटिना 9 1


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इटली में कोरोनावायरस के 5883 मामलों की पुष्टि हो चुकी है।


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शिलॉन्ग. इस साल जनवरी में नॉर्थ-ईस्ट के एक न्यूज चैनल पर खबर चल रही थी कि असम भारत में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि असम में महिलाओं के ट्रैप होने के सबसे ज्यादा 66 मामले दर्ज हुए। 265 महिलाएं साइबर अपराध की शिकार हुईं। 2018 में असम में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 27,728 मामले दर्ज हुए, जो भारत के कुल अपराध का 7.3 % है।


इससे भी ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े मां की पूजा करने वाले मेघालय के हैं। मेघालय पुलिस के हालिया आंकड़े बताते हैं कि यहां महिलाओं के खिलाफ अपराध के 481 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि बच्चों के खिलाफ 292 केस दर्ज हुए। महिलाओं के खिलाफ दर्ज हुए 481 मामलों में से 58 दुष्कर्म के इरादे से की गई मारपीट के थे, 67 दुष्कर्म के थे। इसके अलावा 17 केस दुष्कर्म के प्रयास, 36 अपहरण, 14 केस सम्मान को ठेस पहुंचाने को लेकर थे।


मेघालय में करीब 30% परिवार की जिम्मेदारी सिंगल वुमन (अकेली रहने वाली महिला) के जिम्मे है। ये वे महिलाएं हैं, जिन्हें उनके पति ने छोड़ दिया या तलाक दे दिया है। बच्चे इन्हीं के साथ रहते हैं। 29% आबादी इन्हीं घरों में रहती है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि महिलाएं घर चलाती हैं, वे बाजार के बड़े हिस्से पर प्रभाव रखती हैं, लेकिन वे सब्जियों और फल जैसे जल्दी खराब हो जाने वाले सामान ही बेचती हैं।

शिलॉन्ग की ज्यादातर महिलाएं सब्जी और फल बेचती हैं।

नगालैंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध दो साल में तीन अंकों से दो अंकों में पहुंचा
बात नगालैंड की करें तो यहां 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा 105 केस दर्ज हुए थे। पर यह दो साल के अंदर ही दो अंकों में पहुंच गए। एनसीआरबी के मुताबिक, 2018 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 75 केस दर्ज हुए, 2017 में 79 केस थे। आंकड़े 90 के पार जा सकते थे, पर कई ऐसे मामले भी थे, जो दर्ज ही नहीं किए गए। वास्तव में मणिपुर की पहाड़ियों पर जहां नगा रहते हैं, वहां भारतीय कानून के तहत किसी के खिलाफ केस दर्ज नहीं किए जा सकते। नागा समुदाय अभी भी अपनी संप्रभुता को बचाए रखने के लिए भारतीय सरकार से बातचीत जारी रखे हुए हैं।


छेड़छाड़ की रिपोर्ट इसलिए भी दर्ज नहीं हो पाती, क्योंकि इसे अभी भी शर्म माना जाता है
एनसीआरबी के 2017 के आंकड़े बताते हैं कि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा में महिलाओं के खिलाफ अपराध के केस केवल तीन अंकों में हैं। यह पूरे भारत के आंकड़ों का 1% भी नहीं है। हर कोई जानता है कि मिजोरम में अपराध दर सबसे कम है, पर यह इसलिए है, क्योंकि यहां केस दर्ज नहीं किए गए। अपराध, दुष्कर्म और छेड़छाड़ की रिपोर्ट इसलिए भी दर्ज नहीं हो पाती, क्योंकि समाज में इसे शर्म की बात माना जाता है। इसके अलावा चर्च का प्रभुत्व भी महिलाओं द्वारा केस दर्ज कराने के रास्ते में मुश्किल बनता है।


महिलाएं वोट करने में पुरुष से आगे हैं, पर विधानसभा पहुंचने में पीछे
नॉर्थ-ईस्ट में मेघालय लैंगिक समानता के लिहाज से सबसे ज्यादा बेहतर है। यह बात आंकड़े साबित करते हैं। फिलहाल मेघालय की 60 सदस्यीय विधानसभा में 4 महिलाएं हैं, यह सदस्यों का 6.6 % है। असम के 126 विधायकों में 8 महिला हैं। यह कुल सदस्यों का 6.34% है। नगालैंड ओर मिजोरम में एक भी महिला विधायक नहीं हैं। मणिपुर में 60 विधायकों में 2 महिला हैं। त्रिपुरा के 30 विधायकों में से 3 महिला हैं। सिक्किम की 30 सदस्यीय विधानमंडल में 4 महिला विधायक हैं। ताजुब की बात यह है कि नॉर्थ-ईस्ट में हर चुनाव में महिला मतदाता पुरुषों से वोट करने में आगे रहती हैं। लेकिन सिर्फ राजनीति ही ऐसी जगह नहीं है, जहां महिलाएं हासिए पर हैं।


असम के सिवाय इस क्षेत्र में एक दशक में साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ है
साक्षरता के मामले में जेंडर गैप बाकी देश की तुलना में इस क्षेत्र में कम है। 2001 और 2011 में राष्ट्रीय साक्षरता दर में जेंडर गैप क्रमशः 21.6% और 16.68% है। यह मिजोरम, मेघालय और नगालैंड के लिहाज से कम था। यहां अरुणाचल प्रदेश में साक्षरता दर में जेंडर गैप सबसे ज्यादा था। हालांकि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में साक्षरता दर बहुत सुधार हुआ है। असम को छोड़कर इस क्षेत्र के सभी राज्यों में साक्षरता में जेंडर गैप कम हो गया है। हैरानी की बात कि यह गैप असम में बढ़ गया है।


नॉर्थ-ईस्ट स्वास्थ्य और देखभाल के मामले में लगातार पिछड़ रहा है
नॉर्थ-ईस्ट स्वास्थ्य और देखभाल के मामले में लगातार पिछड़ रहा है। असम में मातृत्व मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। यहां एक लाख बच्चों के जन्म में औसतन 300 मांओं की जान जाती है। जबकि देश में औसत दर 178 है। शिशु मृत्यु दर भी असम में सबसे ज्यादा है। यहां 1000 बच्चों में से 48 की मौत होती है। एनएसएसओ के 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश में यह दर 37 है।


बदलाव के लिए आवाज उठानी होगी, क्योंकि हमें एक स्वस्थ लोकतंत्र और राजनीति चाहिए
दुर्भाग्य है कि नॉर्थ-ईस्ट की सरकारों की खामियों को दूर करने में कई अड़चनें आ जाती हैं। यह उस समाज की ओर से आती हैं, जहां आवाजों को पहले परंपराओं द्वारा दबाया जाता है फिर धर्मों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। लोगों को लगता है कि उनकी आवाज कोई नहीं सुनता। कई इसलिए भी आवाज उठाने में संकोची हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं समाज के लोगों, उनके साथियों और परिवार द्वारा उनकी आलोचना न हो जाए।


आवाज एजेंसी जैसी है और यह आवाज इसलिए जरूरी है, क्योंकि हमें एक स्वस्थ लोकतंत्र और राजनीति चाहिए।



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शिलॉन्ग स्थित सब्जी मार्केट, जिसे महिलाएं ही चलाती हैं।


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कोच्चि. 2011 की जनगणना के मुताबिक, केरल में 1000 पुरुषों पर सेक्स रेशो1084 का था, जबकि देशभर में यह आंकड़ा 940 महिलाओं का था। इसी तरह से साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा और शादी के समय औसत आयु के मामले में भी केरल की महिलाएं आगे हैं। 2010 के इकोनॉमिक रिव्यू के अनुसार, केरल की महिलाओं की साक्षरता दर 92% थी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 65%था। रिपोर्ट के मुताबिक, केरल की महिलाओं की औसत आयु 76 साल 3 महीने है, जबकि नेशनल लेवल पर यह 64 साल 2 महीने है। इसके बावजूद केरल की भी महिलाओं को बुनियादी अधिकारों के लिए जूझना पड़ा। पेनकुटू नाम की संस्था ने महिलाओं के लिए वर्कप्लेस पर अधिकार की लड़ाई लड़ी, पिंक पुलिस पेट्रोल की शुरुआत की गई और कुडुम्बाश्री के जरिए महिलाओं की आर्थिक सशक्तीकरण के लिए जोरदार काम किया। पेश है ऐसी ही महिलाओं के कुछ किस्से जिन्होंने समाज को बदला...

वर्कप्लेस पर ब्रेक नहीं मिला तो शुरू की महिलाओं के अधिकार की लड़ाई
वर्कप्लेस पर महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए केरल के कोझिकोड की विजी ने 'पेनकुटू' नाम के एक एनजीओ की शुरुआत की। कहानी विजी के अपने वर्कप्लेस से शुरू होती है। पेशे से टेलर विजी को एक दिन काम के दौरान आराम करने से मना कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने एनजीओ बनाकर वर्कप्लेस पर महिलाओं को बुनियादी अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई शुरू की। विजी ने एनजीओ सरकार पर वर्कप्लेस पर महिलाओं के लिए कानून बनाने, उन्हें सुरक्षित माहौल देने और काम के दौरान आराम करने का अधिकार देने के लिए लेबर लॉ में बदलाव लाने का दबाव बनाया। मई 2018 में पेनकुटू की वजह से सरकार ने कानून बनाया और अफसरों को जिम्मेदारी दी गई कि वे सुनिश्चित करें कि वर्कप्लेस पर कानून का पालन हो रहा है।

'पेनकुटू' एनजीओ की संस्थापक विजी
'पेनकुटू' एनजीओ की संस्थापक विजी।

विजी कहती हैं, ‘‘केरल एक ऐसा राज्य है, जिसने ऐसा डेवलपमेंट मॉडल तैयार किया है जो महिलाओं के लिए ज्यादा खुला और जुड़ा हुआ है। लेकिन अभी भी कई ऐसे सेक्टर हैं, जहां कानून का पालन नहीं होता हैं।राज्य में कई वर्कप्लेस पर महिला मजदूरों को ब्रेक नहीं दिया जाता था। सबसे बड़ी दिक्कत टॉयलेट की थी। काम के दौरान उन्हें बार-बार टॉयलेट जाने पर डांट भी पड़ती थी। डर सेचलते ज्यादातर महिलाएं पानी ही नहीं पीती थीं। इस कारण ज्यादातर महिलाओं को संक्रमण भी हो जाता था,लेकिन अब हम खुश हैं कि राइट टू सिटके हमारे आंदोलन से वर्कप्लेस सिस्टम में बड़ा बदलाव आया। अब केरल में महिलाओं से न सिर्फ यह सुविधाएं मिलने लगीं, बल्कि हर टेक्सटाइल फैक्ट्री में बैठने के लिए कुर्सियां भी मिलने लगी हैं।

पिंक पुलिस पेट्रोल से क्राइम रेट में कमी आई
2016 में महिला सुरक्षा के लिए केरल की तत्कालीन सरकार ने पिंक पुलिस पेट्रोलसेवा शुरू की थी। कोझीकोड के महिला पुलिस स्टेशन की सर्कल इंस्पेक्टर लक्ष्मी एमवी बताती हैं,‘‘पिंक पुलिस सेवा महिलाओं के लिए 24X7 काम करती है और इसने अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद की है।’’जब रात के दौरान हुए अपराधों के क्राइम रेट का डाटा देखा गया तो पता चला कि पिंक पुलिस की वजह से महिलाओं के खिलाफ क्राइम रेट में 30% की कमी आई है।

पुलिस से सीखी टेक्नीक काम आई
पुलिस डिपार्टमेंट ने सभी जिलों में महिलाओं और युवा लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया और इसे लागू भी किया। इस प्रोजेक्ट के तहत दो साल में 3.8 लाख से ज्यादा महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी गई। कोझीकोड के कारापराम्बा के एक सरकारी स्कूल की छात्रा आर्या विजयन (बदला हुआ नाम) ने सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग का अनुभव साझा करते हुए बताया, ‘‘मैं एक दिन स्कूल से घर जा रही थी, तभी एक आदमी ने मुझसे छेड़छाड़ की। मैंने महिला पुलिस टीम से जो भी टेक्नीक सीखी थी, उसकी मदद से मैंने उस आदमी पर हमला बोल दिया।’’


महिलाएं ही महिलाओं के खिलाफ थीं
केरल में इस समय महिलाएं आर्थिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह से सशक्त हो रही हैं। इसका श्रेय गरीबी उन्मूलन मिशन कुडुम्बाश्री को जाता है। इसे केरल सरकार द्वारा 1998 में नाबार्ड की मदद से शुरू किया गया था। केरल में महिलाओं की मानसिकता को समझने के लिए किए गए कुडुम्बाश्री ने एक सर्वे किया और पाया कि परिवार में महिलाएं ही सबसे पहले अन्य महिला सदस्यों के रात में अकेले सफर पर आपत्ति उठाती थीं। कई महिलाओं का मानना था अगर उनके पति उन्हें पीटते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं और उनकी सोच थी कि लड़कियों पर लड़कों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

कुडुम्बाश्री महिलाओं द्वारा बने उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिकते हैं
अपनी स्थापना के बाद से कुडुम्बाश्री ने 45,000 से ज्यादा महिलाओं की मदद की। कुडुम्बाश्री ने छोटे और मध्यम श्रेणी के उद्यमों को ऋण देना शुरू कर दिया और अपने उत्पादों को सीधे बेचने के लिए रास्ते खोजे। अब कुडुम्बाश्री महिलाओं द्वारा बनाए उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बेचा जाता है। कुडुम्बाश्री कोझिकोड के जिला समन्वयक कहते हैं, ‘‘महिलाओं को सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है और महिला समुदाय के बारे में उनके दृष्टिकोण को सशक्त बनाना और भी अहम है।’’कुडुंबाश्री ने सबसे पहले28 पंचायतों और 14 जिलों में जेंडर एजूकेशन देने की पहल शुरू की। साथ ही पिंक टास्क फोर्सलॉन्च की गई। पिंक टास्क फोर्स के सदस्यों को आत्मरक्षा में प्रशिक्षित किया।

विशेष जरूरतों वाले बच्चों को प्रतिष्ठित कंपनियों और होटलों मेंकाम दिलाया
केरल निवासी अश्वथी दिनिल की कहानी भी दिलचस्प है। उनके कारण विशेष जरूरतों वाले कई बच्चे आज प्रतिष्ठित कंपनियों और होटलों में काम करते हैं। उनकी अपनी बच्ची ऑटिज्म से पीड़ित थी और उसकी स्थिति को समझते हुए उन्होंने अपने आस-पास के लोगों से इस बारे में बात करना शुरू करने का फैसला किया। अश्वथी के प्रयासों के बाद ही राज्य की ऑटिस्टिक लड़कियों को होटल, पार्किंग हब, अस्पताल और थिएटर जैसे वर्कप्लेस पर रखा जाने लगा। आज राज्य भर में 500 से अधिक ऐसी लड़कियां विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं।


सबरीमाला जाना हर एक महिला का अधिकार है
अश्वथी कहती हैं, “महिला सशक्तीकरण और रोजगार सिर्फ हमारे जैसे लोगों के लिए नहीं हैं, यह उन विशेष बच्चों के लिए भी उतना ही जरूरी है जो किसी न किसी कमी के साथ पैदा होते हैं।” कितनी हैरानी की बात है कि लोग सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इतना बवाल हुआ। इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातों पर चर्चा करने की बजाय हमें बाकी अन्य जरूरी मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए।सबरीमाला जाना हर एक महिला का अधिकार है।’’



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टेक्सटाइल सेक्टर में वर्कप्लेस पर महिलाओं को बुनियादी सुविधाएं दी गईं।


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नई दिल्ली. आज यानी 8 मार्च को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन 8 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है, इसकी कहानी दिलचस्प है। 1908 में 15 हजार महिलाओं ने न्यूयॉर्क में मार्च निकालकर नौकरी के घंटे कम करने की मांग की थी। यह भी कहा कि बेहतर वेतन और वोटिंग का हक भी दिया जाए। एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया।

1910 में जर्मन कार्यकर्ता क्लारा जेटकिन ने कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सुझाव दिया। उस वक्त कॉन्फ्रेंस में 17 देशों की 100 महिलाएं मौजूद थीं। उन सभी ने सुझाव का समर्थन किया। क्लारा ने महिला दिवस के लिए कोई तारीख पक्की नहीं की थी। सबसे पहले 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था।

8 मार्च ही क्यों चुना?
1917 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने जार (रूस के शासक) से ब्रेड एंड पीस (खाना और शांति) की मांग की। इसको लेकर हजारों महिलाओं की सेंट पीटर्सबर्ग (तब पेत्रोग्राद) में मार्च निकाला। इस आंदोलन ने सम्राट निकोलस को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया।

उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का इस्तेमाल होता था। जिस दिन महिलाओं ने यह हड़ताल शुरू की थी, वह तारीख 23 फरवरी थी। ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च था। इसी के बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाने का ठप्पा लग गया।

1975 में यूएन ने मान्यता दी

1975 में संयुक्त राष्ट्र ने महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता दे दी और दिन को एक थीम के साथ मनाना शुरू किया। पहली थीम थी- ‘सेलिब्रेटिंग द पास्ट, प्लानिंग फॉर द फ्यूचर।’ इस बार की थीम है- ‘आई एम जेनरेशन इक्वालिटी: रियलाइजिंग विमेंस राइट्स।’

पुरुषों का भी एक दिन, लेकिन मान्यता नहीं
हां। 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस होता है। 1990 से इसे मनाया जा रहा है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की ओर से इसे मान्यता नहीं मिली। 60 से ज्यादा देशों में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद पुरुषों की सेहत, लैंगिक रिश्ते और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और सकारात्मकता बढ़ाना है। 2019 में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस का थीम थी- मेकिंग ए डिफरेंस फॉर मेन एंड बॉयज।



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In 1917 Russian women marched for the title, the emperor had to step down; Since then March 8 has been dedicated to women


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हैदराबाद. तेलंगाना विधानसभा में शनिवार को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) लागू करने की प्रक्रिया पर हंगामा देखने को मिला। राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने कहा कि उनके पास अपना जन्म प्रमाण पत्र (बर्थ सर्टिफिकेट) तक नहीं है। ऐसे में अगर उनके पिता का प्रमाण पत्र मांगा जाए, तो उसे कैसे बनवाया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा- देश के गरीब लोग इस तरह के दस्तावेज कहां से लाएंगे। उन्होंने केंद्र सरकार से नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय पहचान पत्र पेश करने की मांग की।

विधानसभा में 1 अप्रैल से एनपीआर की प्रक्रिया शुरू होने पर दस्तावेजों की जरूरत पर जारी बहस के दौरान उन्होंने कहा, "मेरे पास सरकारी जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। मैं एक ऐसे गाँव में पैदा हुआ था, जहां कोई अस्पताल नहीं था। तब हम उस गांव के पुजारी से अपना नाम लिखवाते थे। मेरे पास पुजारी के हाथ का लिखा हुआ पत्र मौजूद है। जब मेरे पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है, तो देश के लाखों दलित, पिछड़े और गरीबों के पास ऐसा दस्तावेज कैसे होगा?" केसीआर ने कहा- मेरे पिता के पास भी कोई जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को मेरी सलाह है कि वो एक राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करे।

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्यमंत्री राव का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि 1 अप्रैल से शुरू होने वाली एनपीआर की प्रक्रिया को देखें, तो लगता है कि हमें सरकारी अफसरों की दया पर छोड़ दिया गया है। इससे गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। राज्य में एनपीआर को स्थगित किया जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री केसीआर ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के मुद्दे पर विधानसभा का एक अलग सत्र बुलाने की बात भी कही। इसमें सभी विधायक सीएए को लेकर अपनी राय रख सकते हैं।



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केसीआर ने कहा- केंद्र नागरिकों के लिए राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करे।


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मुंबई.बॉलीवुड अभिनेत्रीदीपिका पादुकोणका मानना है किमेरे माता-पिता ने मुझे लड़की होने के नाते कभी कुछ करने से नहीं रोका। नही मैंने कोई फैसला इस आधार पर किया कि मैं लड़की हूं। परिवार ने मुझे सिखाया है किकॅरिअर को सबसे ऊपर रखना मतलबी होना नहीं है, यह सबसे बड़ी जरूरत है। बस अपने पैर हमेशा जमीन पर रखो।महिला दिवस परदैनिक भास्कर ने उनसे बातचीत की।

दीपिका ने बताया, 'मुझे और मेरी बहन को अपनी आशाओं और अभिलाषाओं का आकाश कभी छोटा नहीं करना पड़ा। मेरे परिवार में मेरे पिता ही एकमात्र पुरुष हैं, लेकिन हम सभी की इच्छाओंका परिवार में पूरा सम्मान है। जब आप पर बंदिशें नहीं होतीं, जब आप पर परिवार की अपेक्षाओं का बोझ नहीं होता तब आप सशक्त बनते हैं और अपनी पसंद का जीवन जीते हैं। आपकी पसंद आपके फिंगर प्रिंट की तरह होती है, जो आपको दुनिया में अलग पहचान देती है।

'महिलाएं खुद के लिए सोच रही हैं'

  • दीपिका ने कहा, 'भारत संस्कारवान देश है और हमारी उत्कृष्ट परंपराओं का पालन न सिर्फ भारत की महिलाओं को बल्कि भारत के हर नागरिक को सहर्ष करना चाहिए। हालांकि,कहीं-कहीं जब महिलाएं स्वयं के लिए कुछ करती हैं तो उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है, जैसे उनसे कोई अपराध हो गया है। लेकिन अच्छी बात यह है कि महिलाएं खुद के लिए सोच रही हैं। बदलाव आ रहा है। जीवन में कई बार बोल्ड डिसीजन करने होते हैं, जिसके लिए हर महिला को तैयार रहना चाहिए।'
  • 'हम जानते हैं कि कई साल पहले फिल्म इंडस्ट्री में आना महिलाओं के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। माता-पिता बेटियों को इंडस्ट्री में जाने से रोकते थे। पर ये मान्यताएं बहुत तेजी से बदली हैं। यही कारण है कि नए-नए डायरेक्टर्स, प्रोड्यूसर, राइटर्स, तकनीशियन और एक्टर के रूप में महिलाएं बड़ी संख्या में आ रही हैं और सफल भी हो रही हैं।'

शादी काम में बाधा नहीं होनी चाहिए

दीपिका ने कहा,कहते हैं कि शादी के बाद प्रोफेशनल और फैमिली लाइफ में संतुलन बनाने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन इस विचार से मैं इत्तेफाक नहीं रखती। मेरे हिसाब से इसका शादी से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। मैंने 17 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। शादी से पहले मैं जिस तरह काम करती थी, वैसा ही शादी के बाद भी कर रही हूं। मेरे हिसाब से समानता हर हाल में समानता होनी चाहिए। फिर चाहे परिवार हो या काम। समानता को गुणों के नजरिए से देखने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए गुण और काबिलियत के आधार पर वेतन तय होना चाहिए, लिंग के आधार पर नहीं। औरतें मल्टीटास्किंग में बहुत अच्छी होती हैं। हर दिन महिलाएं बहुत सारे ऐसे काम कर रही हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक ताकत की जरूरत होती है। नहीं तो मल्टीटास्किंग संभव ही नहीं हो पाएगा। ये तो फैक्ट है कि महिलाएं पलभर में गियर बदल पाती हैं और एक काम से दूसरे काम में लग जाती हैं। दूसरी एक बड़ी अच्छी बात लगती है कि महिलाओं के व्यक्तित्व में भावनाओं का स्तर हमेशा ऊंचा होता है। वे अधिक संवेदनशील होती हैं। इसीलिए वे अपनी भावनाओं को रोकती नहीं हैं। उनकी अभिव्यक्ति काबिले-तारीफ होती है। मैंने भी हमेशा अपने दिल की बात सुनी है और मुझे हमेशा इसके अच्छे नतीजे ही मिले हैं।



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दीपिका ने कहा- जीवन में कई बार बोल्ड डिसीजन करने होते हैं, जिसके लिए हर महिला को तैयार रहना चाहिए।


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नई दिल्ली
समाज में बराबरी के लिए महिलाओं के संघर्षों का पहला बड़ा नतीजा 100 साल पहले 1920 में निकला था। तब अमेरिका में महिलाओं को वोटिंग का हक मिला था। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2020 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, जेंडर गैप भरने में 99.5 साल लगेंगे। 2018 में कहा गया था कि 108 साल लगेंगे। यानी दो साल में महिलाओं की स्थिति इतनी सुधरी है कि जेंडर गैप खत्म होने की अवधि एक साल में 8.5 साल कम हो गई है। यही रफ्तार बरकरार रही, तो अगले 12 साल में जेंडर गैप खत्म हो जाएगा। इकोनॉमिक फोरम 2007 से यह गणना कर रहा है। तब उसका आकलन 257 साल का था। यानी महिलाओं ने 13 साल में 157.5 साल कम कर दिए हैं।
दुनियाभर में समान काम के बदले महिलाओं को औसतन 21% कम वेतन मिल रहा है। इन सब बाधाओं के बीच महिलाओं ने कई क्षेत्रों में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है या बराबरी के करीब बढ़ रही हैं। आज महिलाओं की इन्हीं उपलब्धियों पर पढ़िए भास्कर रिपोर्ट...

मैराथन: महिलाओं ने तोड़ा पुरुषों का वर्चस्व

  • 2019 में 191 देशों में 79 लाख रनर ने हिस्सा लिया। इसमें 50.24% महिलाएं रहीं। स्पीड के मामले में महिलाएं पुरुषों से औसतन 38 मिनट पीछे हैं।
  • 1986 से अब तक महिलाओं की हिस्सेदारी 20% बढ़ी है। रेस में हिस्सा लेने वाली महिलाओं की औसत उम्र 36 और पुरुषों की 40 साल है।

ओलिंपिकः कमेटी में पहली बार महिलाओं की हिस्सेदारी 33%, 5 साल में 100% बढ़ीं
24 जुलाई से होने जा रहे टोक्यो ओलिंपिक से अच्छी खबर है। पहली बार ओलिंपिक कमेटी में 33% महिलाएं हैं। 5 साल में यह 100% बढ़ोतरी है। यह गैप भरने में 120 साल लग गए। 1900 में पहली बार महिलाओं को ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने का मौका मिला था। तब महज 2.2% महिलाओं ने हिस्सा लिया था। 2016 के रियो ओलंपिक में कुल खिलाड़ियों में 45% महिलाएं थीं। टोक्यो में 2020 में 48.8% महिला खिलाड़ी हिस्सा ले रही हैं।

शिक्षाः देश में पहली बार लड़कियां हायर एजुकेशन में लड़कों की बराबरी पर पहुंची
उच्च शिक्षा में लड़कियां, लड़कों के बराबर आ गई हैं। 2018-19 में करीब 3.74 करोड़ स्टूडेंट उच्च शिक्षा में थे। इसमें 1.92 करोड़ पुरुष और 1.82 करोड़ महिलाएं हैं। यानी उच्च शिक्षा में 48.6% लड़कियां।

दुनिया मेंः स्कूलों में लड़कियां, लड़कों जितना वक्त बिता रही हैं। 1970 में लड़के, लड़कियों से औसतन 2 साल अधिक समय स्कूलों में बिताते थे। अब यह अंतर महज ढाई घंटे या 144 मिनट का रह गया है।

वोटिंगः भारत में महिलाओं ने बराबरी की और अमेरिका में महिलाएं 20 साल से आगे
अमेरिका में 1998 से अबतक हुए चुनावों में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले हैं। भारत में भी महिला वोटिंग पुरुषों जितनी पहुंच गई है।
दुनिया में 35,127 संसदीय सीटें हैं। इनमें 25% सीटें महिलाओं के पास हैं। वहीं 21% महिलाएं मंत्रिमंडल में हैं। 68 देशों में महिलाएं सर्वोच्च पद पर पहुंची हैं।

कॉरपोरेटः पहली बार सीनियर पदों पर 29% महिलाएं, देश में यह संख्या 20% है
एनएसई में लिस्टेड 69 कंपनियों के बोर्ड में महिला एक्जीक्यूटिव हैं। 5 साल में महिला डायरेक्टर्स 50% बढ़ी हैं। सीनियर पदों पर 29% महिलाएं हैं। 2 साल पहले 7% थी। वर्कफोर्स में 22% हैं।
दुनियाभर के 87% बिजनेस में कम से कम एक महिला सीनियर मैनेजमेंट में है।

क्या आप जानते हैं?

सिर्फ 8 देशों में समान मौके, वेतन भी 23% कम, 312 मिनट अनपेड

  • सिर्फ 8 देश ही ऐसे हैं, जहां महिला-पुरुषों को समान मौके उपलब्ध हैं। ये देश हैं-बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, लातविया, लक्जमबर्ग, स्वीडन और कनाडा।
  • अफ्रीकी महिलाएं सबसे कामकाजी: सब सहारा अफ्रीका में 64% महिलाएं कामकाजी हैं। मिडिल ईस्ट, नॉर्थ अफ्रीका में 75% पुरुषों के मुकाबले केवल 22% महिलाएं कामकाजी हैं।
  • समान काम, वेतन 23% कम: वैश्विक स्तर पर महिलाओं की औसत आमदनी पुरुषों से 23% कम है। दक्षिण एशिया में यह अंतर 33% है तो मिडिल ईस्ट में 14% है। इस गति से महिला-पुरुष की आय बराबर होने में 70 साल लग जाएंगे।
  • देश में महिलाएं जीडीपी का 3.1% अनपेड काम करती हैं। शहरों में एक महिला 312 और गांव में 291 मिनट अनपेड वर्क करती हैं। जबकि पुरुष क्रमशः 29 और 32 मिनट अनपेड वर्क करते हैं।

और सबसे शर्मनाक: आम चुनाव में महिला नेताओं ने रोज गालियां सुनीं
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में एक शोध में पाया कि आम चुनाव के दौरान महिला नेताओं को हर रोज सोशल मीडिया पर हत्या और बलात्कार जैसी धमकियां मिलीं। मार्च से मई के बीच 10 लाख से ज्यादा नफरत भरे ट्वीट किए गए।

स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी पहली महिला क्रांति को समर्पित, फ्रांस ने अमेरिका को गिफ्ट दिया था

1789 की फ्रांस की क्रांति में महिलाओं ने समानता के लिए पहला आंदोलन किया। महिलाओं ने 60 क्लब बनाए, जिसमें द सोसाइटी ऑफ रिवॉल्यूशनरी एंड रिपब्लिकन वुमन क्लब काफी चर्चित था। महिलाओं ने शिक्षा, पति चुनने, वोटिंग और असेंबली में चुनाव का हक मांगा था। नई सरकार ने उनकी मांगें मानी और विवाह को सिविल कानून के तहत मान्यता दी। स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी इसी महिला क्रांति को समर्पित है, जिसे 1886 में फ्रांस ने अमेरिका को उपहार में दिया था।

1848 में न्यूयॉर्क में वोटिंग के हक के लिए आंदोलन किया, 72 साल संघर्ष के बाद मिला

1848 में न्यूयॉर्क में महिलाओं ने वोटिंग के हक के लिए आंदोलन शुरू किया। 1908 में न्यूयॉर्क में ही 15 हजार महिलाओं ने मार्च निकाला। 1909 में पहली बार महिला दिवस मनाया गया। 1920 में अमेरिका ने महिलाओं को वोटिंग अधिकार दे दिया। 1975 में यूएन ने महिला दिवस को मान्यता दी और 1977 में यूएन जनरल असेंबली ने तय किया कि 8 मार्च महिला अधिकारों के लिए समर्पित होगा। आज 15 देशों में 8 मार्च को अवकाश होता है।

कभी हिंसक आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया, परमाणु हमले के खिलाफ पहली हड़ताल की

महिलाओं ने कभी हिंसक आंदोलन नहीं किया। परमाणु बम के खिलाफ भी पहली आवाज इन्होंने ही उठाई। 1961 में न्यूक्लियर टेस्ट के खिलाफ अमेरिका के 60 शहरों में 50 हजार महिलाओं ने हड़ताल की थी। इसके अलावा सामाजिक मुद्दों के प्रति भी महिलाएं ज्यादा संवेदनशील रही हैं। क्लाइमेंट चेंज दुनिया के सामने आज सबसे बड़ा मुद्दा है। पर्यावरण की बेहतरी के लिए काम करने वाली ग्रेटा थनबर्ग और रीटा हार्ट, दोनों ही महिलाएं हैं।



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1967 के बोस्टन मैराथन में हिस्सा लेने पहुंची कैथरीन स्विट्जर को पुरुषों ने धक्के मारकर ट्रैक से हटा दिया था। कैथरीन किसी भी मैराथन में दौड़ने वाली पहली महिला भी थीं।


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नई दिल्ली. बात शरीर की हो या मन की, उन्हें हर बार टूटने के लिए मजबूर किया जाता है। सदियों से यही सोच है कि लड़कियां वो सब नहीं कर सकती जो लड़के कर सकते हैं।इस पर अगर उसका रंग काला हो, शरीर भारी हो या फिर कोई और शारीरिक समस्या हो तो फिर मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं।कहते हैं ना कि हिम्मत से हिमालय भी झुकता है, तो इसी सोच के साथ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भास्कर सुना रहा है 5 महिलाओं कीकहानियां जिन्होंने अपनी बेड़ियों को तोड़ा और जिद करके अपनी पहचान बनाई है। 2020 के महिला दिवस की थीम बराबरी की सोच वाली ‘आई एम जनरेशन इक्वेलिटी:रिअलाइजिंग वुमन्स राइट’ है।

दुनिया की सबसे डार्क (काली) मॉडल न्याकिम गेटवेक, दृष्टिबाधित होने के बावजूद ओडिशा सिविल सर्विसेज में रैंक हासिल करने वाली तपस्विनी दास, भारत कीअल्ट्रा रनर सूफिया खान,अकेले 193 देश घूमने वाली मेलिसा रॉयऔर 138 किलो की प्लस साइज मॉडल-एक्टिविस्ट टेस हॉलिडे ने हमारे साथसाझा की अपनी कहानी …

पहली कहानी:‘क्वीन ऑफ डार्क’ हैं न्याकिम गेटवेक, कहती हैं - खूबसूरती के लिए गोरा रंग जरूरी नहीं

सूडानी मूल की अमेरिकी फैशन मॉडल न्याकिमगेटवेक को गोरा दिखना पसंद नहीं। गहरे काले रंग के कारण लोग उन्हें 'क्वीन ऑफ डार्कनेस' कहते हैं। उसे अपनी डार्क स्किन टोन पर गर्व है। खुद को काला कहने में शर्म नहीं आती।। ब्लीच करना जरूरी नहीं समझती। नस्लीय तानें भी खूब झेलें लेकिन न तो अपनी सोच बदली और न इरादे। मॉडलिंग की दुनिया में यही काला रंग उनकी खूबसूरती को बयां कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की अहम किरदार हैंन्याकिम। जो कहती हैं- हमें खूबसूरत लगने के लिए गोरा दिखने की जरूरत नहीं। Click >न्याकिमकी कहानी उन्हीं की जुबानी...


दूसरी कहानी/ हादसे में आंखें गंवाईं, लेकिन बिना आरक्षण ओडिशा सिविल सर्विसेज में रैंक बनाई तपस्विनी ने

एक ऑपरेशन हुई लापरवाही के कारणमें तपस्विनी की आंखों कीरोशनी हमेशा के लिए चली गई।छह माह बाद आंखों की रोशनी वापस आने की उम्मीद जगाई गई, लेकिन ऐसा होता नहीं है। उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। उसने खुद को बदला और इतनी हिम्मत जुटाई कि हर क्लास में सामान्य बच्चों से ऊपर तपस्विनी का नाम आने लगा।लोगों ने उससे कहायूपीएससी की तैयार करो उसमें दृष्टिबाधित बच्चों को आरक्षण मिलता है लेकिन उसने बिना आरक्षण के सफलता पाई। ओडिशालोक सेवा आयोग की परीक्षा में रैंक हासिल करके उसने कामयाबी की मिसाल कायम की। Click >तपस्विनीकी कहानी उन्हीं की जुबानी...


तीसरी कहानी:शांति-भाईचारे का संदेश देने 87 दिनों में 4 हजार किमी दौड़ीं सूफिया, कहा- हम कमजोर नहीं

देश में अमन का पैगाम देने का जुनून और फिटनेस के लिए दौड़ने के जज्बे ने सूफिया खान कोउस जगह लाकर खड़ा कर दिया है जहां बराबरी की मिसाल दी जाती हैं। जहां पुरुष-महिला का भेद नहीं है और समाज की बेड़ियों को तोड़कर कुछ हासिल करने की खूबसूरत तस्वीर नजर आती है। राजस्थान के अजमेर की सूफिया ने 87 दिनों में 4 हजार किलोमीटर की दौड़ पूरी करके गिनीज रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन वह न तो थकीं हैं और न रुकी हैं। फिर रिकॉर्ड बनाने के लिए उन्होंने एक नया लक्ष्य तय किया है। Click >सूफिया की कहानी उन्हीं की जुबानी...


चौथीकहानी:सिर्फ 34 साल उम्र में सारे 193 देश घूम लिए मेलिसा ने, परिवार ने कभी नहीं चाहा था

अनजाने देश पहुंचना, अंजान लोगों के घरों में रहना, सफर के लिए खर्च भी खुद ही जुटाना और महज 34 साल की उम्र वो कर जाना जो ज्यादातर औरतों को नामुमकिन लगता है, लेकिन है नहीं। ऐसी हैं मेलिसा रॉय। उनकी सोच और विजन एकदम साफ रहा है। कॉलेज के समय में एक लक्ष्य तय किया और उसे पूरा करके दुनिया को चौंकाया। 193 देशों की यात्रा का अंतिम पड़ाव था बांग्लादेश, जिसे मेलिसा ने 31 दिसम्बर 2019 को पूरा किया।

मेलिसाकहती हैं अपने अंदर का डर निकालना है तो बाहर निकलिए। Click >मेलिसा की कहानी उन्हीं की जुबानी...


पांचवी कहानी:138 किलोकीप्लस साइज मॉडल टेस कोपिता से गालियां मिलीं और लोगों से मौत की धमकी

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'बंदिशों की बेड़ियां, बराबरी की कहानियां' थीम की अहम किरदार हैं 138 किलो वजन वाली मॉडल-एक्टिविस्टटेस हॉलिडे। टेस का जन्म मिसीसिपीहुआ। बचपन में ही माता-पिता अलग हो गए। एक दिन गुस्से में आकर पिता ने मां को गोली मारी और वह हमेशा के लिए पैरालाइज्ड हो गईं। टेस कहती हैं, जो मॉडल प्लस साइज हैं, उन्हें शर्माने या घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें गर्व होना चाहिए। मैं मोटी हूं, लोग मुझे प्लस साइज कहते हैं। मुझे इस पर गर्व है। Click >टेस की कहानी, उन्हीं की जुबानी



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women's day 2020 special story based on I am Generation Equality, Realizing Women's Rights theme about nyakim gatwech, tapaswani das, ultra runner sufiya khan, actress-traveller melissa roy and plus size model activist tess holiday


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फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन मात्र 34 साल की हैं। इतनी कम उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाली वे दुनिया की एक मात्र शख्स हैं। 19 सदस्यों वाली उनकी कैबिनेट में 12 महत्वपूर्ण मंत्रालय महिलाओं के पास हैं। जब उनसे बतौर ‘महिला प्रधानमंत्री’ बात की जाती है तो वे असहज हो जाती हैं। उनका मानना है कि लैंगिक और धार्मिक भेदभाव इंसानियत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं।अमेरिका में भास्कर के प्रतिनिधि सिद्धार्थ राजहंस ने फिनलैंड जाकर उनसे विशेष बातचीत की, पढ़िए सना मरीन की जुबानी...

मेरा मानना है कि लीडरशिप का महिला या पुरुष हाेने से कोई लेना-देना नहीं है। आश्चर्य होता है और अफसोस भी कि दुनिया इस बात से चकित है कि फिनलैंड की बागडोर एक महिला के हाथों में है। लोगों को महिलाओं के आगे बढ़ने या उनके नेतृत्व करने पर हैरान होने की कोई जरूरत नहीं है। शायद लिंग-भेद की मानसिकता ही ऐसे प्रश्न खड़े करती है। मेरी उम्र और मेरा महिला होना कोई मुद्दा ही नहीं है। मैं यहां मतदाताओं के विश्वास की वजह से हूं। मैं यहां मुद्दों को सुलझाने के लिए हूं। जब आप तय मापदंडों को तोड़ते हैं और कुछ अलग करते हैं तो स्वाभाविक है कि लोग आप पर ध्यान देने लगते हैं। वास्तव मेंमैं तो ये मानती हूं कि दुनियाभर में उम्रदराज नेता, नई पीढ़ी की समस्याओं जैसे-जलवायु संकट और नए उद्योगों के बारे में उदासीन हैं। ये जेनरेशन गैप है और यह राजनीतिक स्तर पर आज और बड़ा नजर आता है। इसलिए यह जरूरी है कि नई पीढ़ी आगे आए और जिम्मेदारी ले। यही वह विचार है, जिसने मुझे राजनीति में आने और नेतृत्व लेने के लिए प्रेरित किया है।

मेरा यह भी मानना है कि महिलाओं में उन मुद्दों को लेकर स्वाभाविक रूप से अधिक संवेदनशीलता है, जिसका सामना दुनिया कर रही है। इसलिए हम बेहतर काम करने के लिए हर तरह से तैयार हैं। यही वजह है कि मेरी कैबिनेट में भी महिला मंत्रियों की संख्या ज्यादा है। मेरी कैबिनेट के लिए, लैंगिक समानता और अधिकार काफी अहम हैं। सुनियोजित ढंग से सामाजिक सोच में बदलाव लाकर और नीतियां बदलकर लैंगिक समानता लाई जा सकती है। मसलन, आज भी लोग मुझसे बतौर ‘महिला प्रधानमंत्री’ बात करते हैं, न कि प्रधानमंत्री के तौर पर। इससे समाज की सोच पता चलती है। हम यह क्यों नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं कि महिला भी बराबर है, बल्कि मुद्दों को डील करने में ज्यादा सक्षम है। इस मामले में फिनलैंड और भारत उदाहरण स्थापित कर सकते हैं।


भारत में 40 साल से कम उम्र की आबादी ज्यादा है। निश्चित रूप से इतनी ही हिस्सेदारी महिलाओं की भी है। भारत को अपनी इस युवा आबादी के अनुसार नीतियों में बदलाव लाना होगा। तभी लिंग, यौन या धार्मिक भेदभाव रुकेगा। इसके अलावा नए युग में काम और उत्पादकता के मापदंड भी बदल रहे हैं। उदाहरण के तौर पर देर तक ऑफिस में रुकना और कड़ी मेहनत करना एक विशेष गुण माना जाता रहा है। लेकिन देखने वाली बात यह है कि आपकी कड़ी मेहनत का परिणाम क्या निकला है, उससे हासिल क्या हुआ है। मौजूदा समय में तो कम से कम इनपुट में ज्यादा से ज्यादा आउटपुट की आवश्यकता है। इसीलिए हमने हफ्ते में 24 घंटे काम करने की नीति पर काम शुरू किया है। इससे लोग परिवार को समय दे पाएंगे। काम और जीवन में यह संतुलन हमारा अगला कदम है। मैं भी परिवार को ज्यादा वक्त देना चाहूंगी। काम के घंटों को मानक नहीं बनाऊंगी।

मैं कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाकर राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लचीली कार्य संस्कृति की पैरवी करती हूं। क्योंकिखुशी और उत्पादकता में गहरा संबंध है। अर्थव्यवस्था के अनगिनत मापदंडों में हैप्पीनेस इंडेक्स, नेशनल इंडेक्स जितना ही महत्वपूर्ण है। मैं इस फैक्ट को मानती हूं और नई सोच रखती हूं। क्योंकि मेरी परवरिश अलग रही है। मेरे माता-पिता दोनों महिलाएं रही हैं और दोनों ने मुझे हमेशा अपनी पसंद का काम करने के लिए प्रेरित किया है। मुझे याद नहीं कि मेरे परिवार ने लड़की होने के नाते मुझसे कभी भेदभाव किया हो। जब मैं बेकरी में हफ्ते के 20 यूरो के लिए काम करती थी, तब भी मां मुझे प्रोत्साहित करती थीं। मैं हमेशा अपनी अपरंपरागत पहचान और अपने जेंडर पर गर्व करती हूं। मैं हमेशा इसके साथ खड़ी रहूंगी। मुझे लगता है कि इसी तरह हम आलोचनाओं का सामना कर सकते हैं और पॉजिटिव चेंज भी ला सकते हैं। आप जो सोचते हैं, वही सही है- इसके साथ हमेशा खड़े रहिए। मैं ऐसी ही हूं। मैं कभी डरी नहीं। बेहद जिद्दी भी हूं। मैं जवाब में ‘न’ नहीं सुनती। मुझे लगता है कि अच्छे बदलाव ऐसे ही आते हैं।

भारत में अपार संभावनाएं

भारत में बहुत संभावनाएं हैं। भारतीय संस्कृति में पूरी दुनिया को एक परिवार माना गया है। मैं वसुधैव कुटुम्बकम के विचार को बहुत अच्छी तरह से तो नहीं जानती, लेकिन भारत के मूल्य और संस्कृति सम्मान योग्य है। मुझे लगता है कि भारत न सिर्फ ग्लोबल सुपर पावर है, बल्कि वह असमानता और क्लाइमेट चेंज जैसे नए मुद्दों पर विश्व का नेतृत्व कर सकता है।

हमें स्कूलों में जीवन का मानवीय पक्ष पढ़ाने की जरूरत है

अगर मुझे स्कूली पाठ्यक्रम बनाने का मौका मिले तो मैं इसमें उन बातों को शामिल करूंगी जो युवाओं के लिए जरूरी हैं। पाठ्यक्रम में समान अधिकार और उसकी विस्तृत परिभाषा होनी चाहिए। वैश्विक मुद्दे, हमारे समाज-संस्कृति में आया परिवर्तन और बदलते आर्थिक मुद्दों को शामिल करूंगी। हमारे आसपास हो रहे तेज सामाजिक-आर्थिक बदलाव के साथ ही जीवन का मानवीय पक्ष पढ़ाने-समझाने की सबसे ज्यादा जरूरत है, क्योंकि यही आधुनिक समाज के मजबूत स्तंभ हैं।

मेरी बेटी मुझे सजग और परिपक्व इंसान बनाती है

मेरी बेटी का जन्म मेरे लिए जिंदगी का सबसे अहम और खुशनुमा वाकया है। मैं कामकाजी मां हूं और एमा बचपन से ही इसका सामना कर रही है। लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि जैसे इस नन्ही बच्ची ने मेरे कामकाजी जीवन के हिसाब से खुद को ढाल लिया हैै। यह बात मुझे उस खास ‘अहा’ पल का अहसास कराती है। मैं बेहद साधारण व अपरंपरागत माहौल में पली-बढ़ी हूं। गंभीर विषयों पर मैं बचपन से ही मुखर रही हूं। और एक मां के तौर पर भी मैं इन मूल्यों को साथ लेकर चलती हूं। मैंने अपने इंस्टाग्राम पर बेबी बंप और स्तनपान की तस्वीरें भी पोस्ट की हैं। ये सब चीजें मातृत्व के सबसे अहम और प्राकृतिक पहलू हैं। मैं मां बनकर बेहद खुश हूं और उन चीजों को भी आगे बढ़कर गले लगा रही हूं, जिन पर लोग चर्चा करने में सामान्य तौर पर संकोच करते रहे हैं। इस तरह मेरी बेटी मुझे सजग और परिपक्व इंसान बना रही है। ये नई सोच ही है कि मैं और मेरे पति मार्कस बेटी की परवरिश में समान भागीदारी निभाते हैं। वे बेहद समझदार हैं। उन्होंने एमा के जन्म के समय पितृत्व अवकाश लेकर एक बेंचमार्क सेट किया है। आखिरकार एक बच्चे के प्रति माता-पिता, दोनों की समान जिम्मेदारी है। मैं हमेशा उनसे सलाह लेती हूं, न सिर्फ रोजमर्रा के मुद्दों पर बल्कि अपनी नीतियों पर भी। मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी भी उन मूल्यों को आगे ले जाए, जिनके साथ मैं पली और बड़ी हुई हूं।



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Worlds youngest PM Sana Marine Spl interview with dainik Bhaskar first in Indian media


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खेल डेस्क. महिला टी-20 वर्ल्ड कप में भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच मेलबर्न में रविवार को फाइनल खेला जाएगा। भारत गेंदबाजों के दम पर 11 साल में पहली बार टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचा है। मौजूदा टूर्नामेंट में भारत के टॉप-3 गेंदबाजों ने 4 मैच में 21 विकेट लिए हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया के शीर्ष 3 गेंदबाजों ने भारत से एक मैच ज्यादा खेलने के बाद भी 2 विकेट कम लिए हैं। भारतीय गेंदबाजों ने टूर्नामेंट के 4 मैच में कुल 35 विकेट लिए। इसमें से60 फीसदी विकेट पूनम यादव, शिखा पांडे और राधा यादव ने लिए हैं।

पूनम यादव टूर्नामेंट कीसबसे सफल गेंदबाज रही हैं। वे अब तक 4 मैच में 9.88 की औसत से 9 विकेट ले चुकी हैं।उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वर्ल्ड कप के ओपनिंग मैच में 19 रन देकर 4 विकेट लिए थे। वे हर 11वीं गेंद पर विकेट ले रही हैं। भारत के लिए दूसरी सफल गेंदबाज शिखा पांडे हैं। उन्होंने 4 मैच में 12 की औसत से 7 विकेट लिए हैं। उनका स्ट्राइक रेट 13 का है। राधा यादव भी इस टूर्नामेंट में असरदार रही हैं। उन्होंने सिर्फ 2 दो मैच ही खेले हैं,लेकिन 5 विकेट लेने में कामयाब रहीं। वो भी सबसे कम 9.6 की औसत से।

औसत के मामले में राधा यादव सबसे बेहतर

गेंदबाज

मैच विकेट औसत बेस्ट
पूनम यादव 4 9 9.88 4/19
शिखा पांडे 4 7 12.00 3/14
राधा यादव 2 5 9.60 4/23

मेगन ने पूनम के बराबर 9 विकेट लिए, लेकिन 1 मैच ज्यादा खेला

ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों ने टूर्नामेंट के 5 मैचों में कुल 31 विकेट लिए। इसमें से 19 विकेट मेगन शूट, जेस जोनासेन और जॉर्जिया वेरहैम ने लिए। शूट सबसे सफल ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज रहीं। उन्होंने टूर्नामेंट में भारतीय गेंदबाज पूनम के बराबर 9 विकेट लिए हैं। हालांकि, इसके लिए उन्होंने एक मैच ज्यादा खेला।उनका स्ट्राइक रेट भारतीय गेंदबाज से कम है। वे हर 12वीं गेंद पर विकेट ले रही हैं। जेस जोनासेन ने 5 मैच में 17 की औसत से 7, जबकि जॉर्जिया वेरहैम ने 3 मैच में 11 की औसत से 3 विकेट लिए हैं। ऑस्ट्रेलिया का कोई भी गेंदबाज टूर्नामेंट के एक मैच में 4 विकेट नहीं ले पाया, जबकि भारत की पूनम और राधा यादव ऐसा करने में सफल रहीं।

ऑस्ट्रेलिया की तरफ सेजॉर्जिया वेरहैम का औसत सबसे कम

गेंदबाज मैच विकेट औसत बेस्ट
मेगन शूट 5 9 12.88 3/21
जेस जोनासेन 5 7 17.14 2/17
जॉर्जिया वेरहैम 3 3 10.66 3/17

ऑस्ट्रेलिया ने टूर्नामेंट में36 और भारत ने सिर्फ 26 की औसतसे रन बनाए

बल्लेबाजी के मामले में ऑस्ट्रेलिया का टीम इंडिया पर पलड़ा भारी है। ऑस्ट्रेलिया ने टूर्नामेंट के 5 मैच में करीब 36 की औसत से 716 रन बनाए, जबकि भारतीय टीम ने 4 मैच में करीब 26 की औसत से 523 रन बनाए हैं। टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया से एक मैच कम खेला है। क्योंकि भारत-इंग्लैंड सेमीफाइनल बारिश के कारण रद्द हो गया था। टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले पांच बल्लेबाजों में से 2 ऑस्ट्रेलिया के हैं। इसमें बेथ मूनी तीसरे स्थान पर हैं। वे 5 मैच में 2 अर्धशतक की बदौलत 181 रन बना चुकी हैं। एलिसा हिली पांचवें स्थान पर हैं। उन्होंने 5 मैच में 161 रन बनाए हैं। इस लिस्ट में 16 साल की शेफाली वर्मा इकलौती भारतीय हैं। वे 4 मैच में 161 रन बना चुकी हैं। वे भारत की तरफ से सबसे ज्यादा रन बनाने वाली बल्लेबाज भी हैं। इसके अलावा जेमिमा रॉड्रिग्स ने 4 मैच में 85 और दीप्ति शर्मा ने 83 रन बनाए हैं। कोई भी भारतीय बल्लेबाज टूर्नामेंट में अर्धशतक नहीं लगा पाया है।

भारत अब तक चैम्पियन नहीं बना
अब तक 6 बार टी-20 वर्ल्ड कप हो चुके हैं। यह 7वां टूर्नामेंट है। भारत एक बार भी फाइनल में नहीं पहुंचा है, जबकि ऑस्ट्रेलिया सबसे ज्यादा 4 बार खिताब जीत चुका है। भारत 3 बार (2009, 2010, 2018) में सेमीफाइनल में पहुंचा। पिछली बार उसे सेमीफाइनल में इंग्लैंड के हाथों हार मिली थी।



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IND W Vs Aus W Final: India Vs Australia Women Bowling Performance Comparison In ICC T20 World Cup 2020; Poonam Yadav, Shikha Pandey, Radha Yadav


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श्रीनगर. कश्मीर कोइंसान जन्नत मानता है। पर इसी जन्नत में महिलाओं के लिए पीरियड्स पर बात करना और जिम जाने का नाम लेना हमेशा मुश्किलों भरा रहा है। खेल के मैदान में उतरना भी महिला के लिए आसान नहीं रहा। लेकिन धीरे-धीरे ही सही अब यहां की तस्वीर बदल रही है। आगे बढ़ाने के मामले में महिलाएं नजीर पेश कर रही हैं। अब वे पीरियड्स पर खुलकर चर्चा कर रही हैं, जिम जा रही हैं और खेल भी रही हैं। महिलाओं के लिए धरती के इस स्वर्ग में फूल खिलने लगे हैं और बदलाव की खुशबू से कश्मीर की फिजा महकने भी लगी है। पेश है ऐसी ही कुछ महिलाओं की किस्से, जो खुद ही बता रही है बदलाव की कहानी…


डॉ. ऑकाफीन निसार, श्रीनगर के साइदा कदल में हेल्थ सेंटर चलाती हैं
पीरियड्स, एक ऐसा मुद्दा जिसपर कश्मीर के कई इलाकों में आज भी खुलकर बात नहीं की जाती। ऐसे में श्रीनगर के एक छोटे से इलाके साइदा कदल में हेल्थ सेंटर चलाने वाली डॉ. ऑकाफीन निसार ने महिलाओं को जागरूक करने की पहल की है। 29 साल की डॉ. निसार ने ‘पनिन फिक्र' नाम के एक अभियान की शुरुआत की। पनिन फिक्र का मतलब है खुद की फिक्र करना।

डॉ. निसार बताती हैं कि ‘एक महिला सभी की चिंता करती है, लेकिन खुद का ध्यान कभी नहीं रख पाती। मैं चाहती हूं कि इस इलाके की महिलाएं मासिक धर्म को लेकर फैली भ्रांतियों से ऊपर उठें और अपनी चिंता करें। अभियान की शुरुआत जनवरी 2019 में दो नर्सेज और चार आशा कार्यकर्ताओं के साथ एक सब-सेंटर में हुई थी। इस सेंटर के जरिए 4000 की आबादी को सेवाएं दी जाती हैं।’

डॉ. निसार महिलाओं को जागरूक करने के लिए हेल्थ सेंटर चलाती हैं।

2017 में गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज श्रीनगर के डॉक्टर्स ने स्टडी की, जिसमें पाया कि कश्मीरी महिलाओं में माहवारी (पीरियड्स) की समस्याएं आम हैं। 10% महिलाओं को अनियमित माहवारी होती है। पीएमएस (48%) और मेनोरेजिया (24%) के बाद 51% महिलाओं में डिस्मेनोरिया सबसे आम मासिक धर्म डिसऑर्डर था। डॉ. निसार हर वीकेंड अपनेक्लीनिक में एक सेशन भीकरती हैं, जिसके जरिए महिलाओं को उनके मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किया जाता है।

डॉ. निसार ने टीम के साथ मिलकर रिसर्च की तो पाया कि जागरूकता की कमी और पैड का महंगा होना महिलाओं की परेशानियों का मुख्य कारण है। मुहिम के जरिए टीम ने दो सस्ते पैड बनाने वाली कंपनियों का चुनाव किया। यहां से मिलने वाले दो नैपकिन्स की कीमत 5 रुपए होती है। शुरू में लोगों की प्रतिक्रियाएं जानने के लिए पैकेट्स को फ्री में बांटा गया, लेकिन बाद में इन्हें रियायती दरों पर दिया जाने लगा।डॉ. निसार बताती हैं कि माहवारी को लेकर सामाजिक परेशानियों और अंधविश्वास की कीमत महिलाएं अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के जरिए चुकाती हैं। किसी को तो बदलाव के लिए आगे आना होगा।


महरीन अमीन, जिम संचालक
25 साल की महरीन अमीन, हवाल में इस्लामिया कॉलेज के नजदीक एक जिम चलाती हैं। अमीन बताती हैं कि फिटनेस को आज भी समाज में गंभीरता से नहीं लिया जाता और इसलिए मेरे काम को हर बार अनदेखा कर दिया जाता है। मेरे काम के चलते कई बार मुझे भद्दे कमेंट्स और गालियां मिलती हैं, लेकिन जब तक मेरे क्लाइंट्स और परिवार खुश हैं, मुझे फर्क नहीं पड़ता।

आमीन के क्लब में एक हजार से ज्यादा महिलाएं रजिस्टर हैं और तमाम रोक-टोक के बाद भी यह आंकड़ा रोज बढ़ रहा है। ट्रेनर बताती हैं कि फिटनेस और हेल्थ को लेकर घाटी में लोगों की सोच में बड़ा बदलाव आया है, सभी जान गए हैं कि जिम का मतलब केवल सिक्स पैक एब्स नहीं होता।

महरीन अमीन जिम चलाती हैं।

अंजुमन फारुख, प्रोफेशनल मार्शल आर्ट खिलाड़ी
15 नेशनल मैचों में 14 गोल्ड मेडल और 2 सिल्वर मेडल जीत चुकीं थांग ता(मार्शल आर्ट) प्लेयर और कोच अंजुमन फारुख लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देती हैं। अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाली अंजुमन ने अपने शौक और खेल प्रेम के लिए सामाजिक परेशानियां उठाईं। बीमार पिता की असमय मौत के बाद घर में आर्थिक मुश्किलें बढ़ गईं थीं, लेकिन अंजुमन ने इसे भी अपनी ताकत बनाया।


27 साल की चैंपियन बताती हैं,‘लड़की होने के कारण मुझे कई दिक्कतें हुईं पर मैंने कभी हार नहीं मानी। थांग ता मेरा जुनून था, जो बाद में मेरा पेशा भी बना।’अंजुमन फिलहाल एक सरकारी स्कूल में फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर हैं और लड़कियों को ट्रेनिंग देती हैं। उन्होंने साल 2011 में पहली बार वर्ल्ड कप खेला था और गोल्ड जीतने वाली पहली सीनियर लड़की थीं।

महक जुबैर, रेडियो जॉकी
रेडियो-शो खुश-खबर की होस्ट महक जुबैर को लोग आरजे महक और महक मिर्ची के नाम से भी जानते हैं। महक रेडियो मिर्ची एफएम में मॉर्निंग शो को होस्ट करती हैं। अपनी जॉब के बारे में बताते हुए महक ने कहा, यह दुनिया का सबसे अच्छा काम है, लेकिन उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। आप लगभग हर दिन ऑन एयर होते हैं, फिर चाहे इलाके में मौसम खराब हो या हड़ताल हो। शो खुश-खबर में महक कश्मीर और उसके नागरिकों के बारे में अच्छी बातें पेश करती हैं।

रेडियो-शो खुश-खबर की होस्ट महक जुबैर

महक कहती हैं कि उथल-पुथल से भरी घाटी में हर रोज अच्छी खबरें निकालने में बहुत परेशानी होती थी। एक न्यूज चैनल के साथ बतौर सिटीजन जर्नलिस्ट करियर की शुरुआत करने वाली महक रेडियो जॉब से बेहद खुश हैं। वो बताती हैं कि मुझे बात करना बहुत पसंद है और रेडियो इसका सबसे अच्छा जरिया है।



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मार्शल आर्ट प्लेयर और कोच अंजुमन फारुख लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देती हैं।


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