Wednesday, March 4, 2020

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जीवन मंत्र डेस्क. सोमवार, 9 मार्च को फाल्गुन मास की पूर्णिमा है। इसी रात होलिका दहन होगा। मथुरा और वृंदावन का होली उत्सव दुनियाभर में प्रसिद्ध है, होली की हुड़दंग और बरसाना की लठमार होली के साथ ही फालैन गांव की होली भी बहुत खास होती है। मथुरा के पास ही स्थित फालैन को भक्त प्रहलाद का गांव माना जाता है। यहां आज भी एक पंडा (पुजारी) होलिका दहन पर जलती हुई होली के बीच से निकलता है, लेकिन उसे आग जलाती नहीं है। फालैन के पंडा परिवार द्वारा यहां सदियों से ये परंपरा निभाई जा रही है। इसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं। गांव में मेला लगता है। दर्शनार्थियों के स्वागत के लिए लोग अपने-अपने घरों की रंगाई-पुताई करा रहे हैं।

होलिका दहन के दौरान निभाई जाने वाली इस परंपरा के लिए पंडा परिवार का वो सदस्य जिसे जलती होली से निकलना होता है, वो एक महीने पहले से घर छोड़कर मंदिर में रहने लगता है। वहीं रहकर पूजा-पाठ, मंत्र जाप और उपवास करता है। इसके बाद ही होलिका दहन होता है। इस बार मोनू नामक पंडा जलती हुई होली के बीच में निकलेगा। हर साल होली पर जोखिम भरा ये काम मोनू पंडा के परिवार से कोई एक सदस्य करता है। ग्राम पंचायत फालैन के समाज सेवक प्रेमसुख कौशिक के अनुसार होली पर ये चमत्कार देखने के लिए देश-दुनिया से हजारों लोग फालैन गांव पहुंचते हैं। गांव में पंडा परिवार के 20-30 घर हैं। हर बार होली से पहले पंचायत में ये तय होता है कि इस साल जलती होली में से कौन निकलेगा।

8-10 फीट ऊंची और करीब 25 फीट चौड़ी होली जलाई जाती है

फालैन गांव के भागवत प्रवक्ता संत योगीराज महाराज ने बताया कि यहां होलिका दहन कार्यक्रम भव्य पैमाने पर आयोजित होता है। होलिका सजाने के लिए आसपास के 5-7 गांवों से लोग कंडे लेकर आते हैं। ऐसे में यहां हजारों कंडे एकट्ठा हो जाते हैं। सभी कंडों से करीब 25 फीट चौड़ी और 8-10 फीट ऊंची होलिका तैयार की जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा पर गांव और आसपास के लोग होलिका पूजन करते हैं। रात में होलिका जलाई जाती है। इसके बाद शुभ मुहूर्त में पंडाजी जलती होली में से निकलते हैं। ये कारनामा कुछ ही देर का होता है। इस साल से पहले मोनू के पिताजी 10 बार जलती होली में से निकल चुके हैं। जलती होली से निकलने वाले पंडा का बाल भी नहीं जलता है। गांव के लोग सभी अतिथियों के खान-पान और रहने की व्यवस्था करते हैं।

ये प्रहलाद का गांव है

यहां मान्यता प्रचलित है कि ये गांव दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद का है। पुराने समय में एक संत ने यहां तपस्या की थी। उस समय इस गांव के एक पंडा परिवार को स्वप्न आया कि एक पेड़ के नीचे मूर्ति दबी हुई है। इस सपने के बाद गांव के पंडा परिवार के सदस्यों ने संत के मार्गदर्शन में खुदाई की थी। इस खुदाई में भगवान नरसिंह और भक्त प्रहलाद की मूर्ति निकली। तब संत ने पंडा परिवार को ये आशीर्वाद दिया कि हर साल होली पर इस परिवार का जो भी सदस्य पूरी ईमानदारी और आस्था से भक्ति करेगा, उसे भक्त प्रहलाद की विशेष कृपा मिलेगी और वह जलती हुई होली से निकल सकेगा। ऐसा करने के बाद भी उसके शरीर पर आग की गर्मी का कोई असर नहीं होगा। यहां भक्त प्रहलाद का मंदिर है और यहीं एक कुंड भी है।

ऐसे होता है होली से निकलने का कारनामा

जलती होली से निकलने वाला पंडा एक महीने पहले लोगों के साथ पूरे गांव के परिक्रमा करता है, होली के स्थान की पूजा करता है और प्रहलाद मंदिर में तपस्या करना शुरू कर देता है। फलाहार करता है। इस आयोजन के दौरान जलती होली में से निकलने वाला पंडा करीब 3 दिन तक सोता भी नहीं है। होली से एक दिन पहले गांव के लोग कंडों की मदद से विशाल होलिका तैयार करते हैं। फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका पूजन किया जाता है और होली जला दी जाती है।

मुहूर्त के मुताबिक पंडा की बुआ प्रहलाद कुंड से एक लोटा पानी लेकर आती है और जलती होली में डाल देती है। इससे होलिका शांत हो जाती है। इसके बाद पंडा प्रहलाद कुंड में स्नान करता है और एक गमछा, माला लेकर भक्त प्रहलाद का ध्यान करते हुए जलती हुई होली से निकल जाता है। आग से निकलने के बाद भी पंडा के शरीर पर आग की गर्मी का कोई बुरा असर नहीं होता है।



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