Saturday, March 7, 2020

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शिलॉन्ग. इस साल जनवरी में नॉर्थ-ईस्ट के एक न्यूज चैनल पर खबर चल रही थी कि असम भारत में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि असम में महिलाओं के ट्रैप होने के सबसे ज्यादा 66 मामले दर्ज हुए। 265 महिलाएं साइबर अपराध की शिकार हुईं। 2018 में असम में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 27,728 मामले दर्ज हुए, जो भारत के कुल अपराध का 7.3 % है।


इससे भी ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े मां की पूजा करने वाले मेघालय के हैं। मेघालय पुलिस के हालिया आंकड़े बताते हैं कि यहां महिलाओं के खिलाफ अपराध के 481 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि बच्चों के खिलाफ 292 केस दर्ज हुए। महिलाओं के खिलाफ दर्ज हुए 481 मामलों में से 58 दुष्कर्म के इरादे से की गई मारपीट के थे, 67 दुष्कर्म के थे। इसके अलावा 17 केस दुष्कर्म के प्रयास, 36 अपहरण, 14 केस सम्मान को ठेस पहुंचाने को लेकर थे।


मेघालय में करीब 30% परिवार की जिम्मेदारी सिंगल वुमन (अकेली रहने वाली महिला) के जिम्मे है। ये वे महिलाएं हैं, जिन्हें उनके पति ने छोड़ दिया या तलाक दे दिया है। बच्चे इन्हीं के साथ रहते हैं। 29% आबादी इन्हीं घरों में रहती है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि महिलाएं घर चलाती हैं, वे बाजार के बड़े हिस्से पर प्रभाव रखती हैं, लेकिन वे सब्जियों और फल जैसे जल्दी खराब हो जाने वाले सामान ही बेचती हैं।

शिलॉन्ग की ज्यादातर महिलाएं सब्जी और फल बेचती हैं।

नगालैंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध दो साल में तीन अंकों से दो अंकों में पहुंचा
बात नगालैंड की करें तो यहां 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा 105 केस दर्ज हुए थे। पर यह दो साल के अंदर ही दो अंकों में पहुंच गए। एनसीआरबी के मुताबिक, 2018 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 75 केस दर्ज हुए, 2017 में 79 केस थे। आंकड़े 90 के पार जा सकते थे, पर कई ऐसे मामले भी थे, जो दर्ज ही नहीं किए गए। वास्तव में मणिपुर की पहाड़ियों पर जहां नगा रहते हैं, वहां भारतीय कानून के तहत किसी के खिलाफ केस दर्ज नहीं किए जा सकते। नागा समुदाय अभी भी अपनी संप्रभुता को बचाए रखने के लिए भारतीय सरकार से बातचीत जारी रखे हुए हैं।


छेड़छाड़ की रिपोर्ट इसलिए भी दर्ज नहीं हो पाती, क्योंकि इसे अभी भी शर्म माना जाता है
एनसीआरबी के 2017 के आंकड़े बताते हैं कि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा में महिलाओं के खिलाफ अपराध के केस केवल तीन अंकों में हैं। यह पूरे भारत के आंकड़ों का 1% भी नहीं है। हर कोई जानता है कि मिजोरम में अपराध दर सबसे कम है, पर यह इसलिए है, क्योंकि यहां केस दर्ज नहीं किए गए। अपराध, दुष्कर्म और छेड़छाड़ की रिपोर्ट इसलिए भी दर्ज नहीं हो पाती, क्योंकि समाज में इसे शर्म की बात माना जाता है। इसके अलावा चर्च का प्रभुत्व भी महिलाओं द्वारा केस दर्ज कराने के रास्ते में मुश्किल बनता है।


महिलाएं वोट करने में पुरुष से आगे हैं, पर विधानसभा पहुंचने में पीछे
नॉर्थ-ईस्ट में मेघालय लैंगिक समानता के लिहाज से सबसे ज्यादा बेहतर है। यह बात आंकड़े साबित करते हैं। फिलहाल मेघालय की 60 सदस्यीय विधानसभा में 4 महिलाएं हैं, यह सदस्यों का 6.6 % है। असम के 126 विधायकों में 8 महिला हैं। यह कुल सदस्यों का 6.34% है। नगालैंड ओर मिजोरम में एक भी महिला विधायक नहीं हैं। मणिपुर में 60 विधायकों में 2 महिला हैं। त्रिपुरा के 30 विधायकों में से 3 महिला हैं। सिक्किम की 30 सदस्यीय विधानमंडल में 4 महिला विधायक हैं। ताजुब की बात यह है कि नॉर्थ-ईस्ट में हर चुनाव में महिला मतदाता पुरुषों से वोट करने में आगे रहती हैं। लेकिन सिर्फ राजनीति ही ऐसी जगह नहीं है, जहां महिलाएं हासिए पर हैं।


असम के सिवाय इस क्षेत्र में एक दशक में साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ है
साक्षरता के मामले में जेंडर गैप बाकी देश की तुलना में इस क्षेत्र में कम है। 2001 और 2011 में राष्ट्रीय साक्षरता दर में जेंडर गैप क्रमशः 21.6% और 16.68% है। यह मिजोरम, मेघालय और नगालैंड के लिहाज से कम था। यहां अरुणाचल प्रदेश में साक्षरता दर में जेंडर गैप सबसे ज्यादा था। हालांकि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में साक्षरता दर बहुत सुधार हुआ है। असम को छोड़कर इस क्षेत्र के सभी राज्यों में साक्षरता में जेंडर गैप कम हो गया है। हैरानी की बात कि यह गैप असम में बढ़ गया है।


नॉर्थ-ईस्ट स्वास्थ्य और देखभाल के मामले में लगातार पिछड़ रहा है
नॉर्थ-ईस्ट स्वास्थ्य और देखभाल के मामले में लगातार पिछड़ रहा है। असम में मातृत्व मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। यहां एक लाख बच्चों के जन्म में औसतन 300 मांओं की जान जाती है। जबकि देश में औसत दर 178 है। शिशु मृत्यु दर भी असम में सबसे ज्यादा है। यहां 1000 बच्चों में से 48 की मौत होती है। एनएसएसओ के 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश में यह दर 37 है।


बदलाव के लिए आवाज उठानी होगी, क्योंकि हमें एक स्वस्थ लोकतंत्र और राजनीति चाहिए
दुर्भाग्य है कि नॉर्थ-ईस्ट की सरकारों की खामियों को दूर करने में कई अड़चनें आ जाती हैं। यह उस समाज की ओर से आती हैं, जहां आवाजों को पहले परंपराओं द्वारा दबाया जाता है फिर धर्मों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। लोगों को लगता है कि उनकी आवाज कोई नहीं सुनता। कई इसलिए भी आवाज उठाने में संकोची हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं समाज के लोगों, उनके साथियों और परिवार द्वारा उनकी आलोचना न हो जाए।


आवाज एजेंसी जैसी है और यह आवाज इसलिए जरूरी है, क्योंकि हमें एक स्वस्थ लोकतंत्र और राजनीति चाहिए।



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शिलॉन्ग स्थित सब्जी मार्केट, जिसे महिलाएं ही चलाती हैं।


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