Thursday, June 18, 2020

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15 जून की शाम चीनी सैनिकों ने लद्दाख की गलवान घाटी से निकल रही नदी के किनारे अचानक धोखे से हमला कर दिया। इस नदी के किनारे का रास्ता इतना संकरा है कि सिर्फ एक व्यक्ति के निकलने लायक जगह ही रहती है। अचानक धोखे से किए गए इस हमले से कई सैनिक करीब 5 फीट गहरी बर्फीली नदी में गिर गए।

खून जमा देने वाले इस पानी में चीनी सैनिकों से करीब पांच घंटे तक खूनी संघर्ष चला। हमारे करीब 250 जवान थे, जबकि चीन के सैनिकों की संख्या एक हजार से भी ज्यादा थी। इसके बावजूद हमने उन्हें करारा जवाब दिया। उसी दौरान चीनी सैनिकों ने मेरे सिर पर कटीले तार बंधे डंडों से पीछे से हमला कर दिया।

'चीनी सैनिक मुझे मरा समझकर छोड़ भागे'

भारतीय टुकड़ी को आते देखकर चीनी सैनिक मुझे मरा समझकर छोड़ भागे। हमारे सैनिक मुझे लद्दाख में मिलिट्री हॉस्पिटल लाए। मेरे सिर में 12 टांके आए हैं और हाथ में भी फ्रैक्चर है। करीब 15 घंटे तक बेहोश रहने के बाद बुधवार दोपहर मुझे होश आया। लद्दाख में ग्लेशियर होने के कारण वहां हथियारों का ज्यादा उपयोग नहीं होता। लाठी-डंडों और लट्‌ठ के साथ ही पेट्रोलिंग होती है।

उन लोगों ने कायरों की तरह हमला किया, आमने-सामने होते तो चीनी सैनिकों को वहीं धूल चटा देते। हमें दुश्मन देश के सैनिकों से किस तरीके से निपटा जाता है, यही सिखाया जाता है।

भाई ने कहा- सुरेंद्र का फोन आया तब पता चला कि वे घायल हुए हैं
सुरेंद्र के भाई रेशम सिंह ने बताया कि सुरेंद्र करीब 19 साल से सेना में हैं। जहां सुरेंद्र की पोस्टिंग है, वहां से फोन नहीं मिलता है, इसलिए भाई कभी-कभार ही फोन करता है। बुधवार दोपहर सुरेंद्र को होश आया तो सेना के अफसरों ने बात कराई। तभी उनके घायल होने का पता चला। सुरेंद्र घायल होकर पानी में गिर गए थे। सैनिकों ने उन्हें निकाला। उनका मोबाइल व अन्य कागजात भी नदी में कहीं गिर गए।

इधर...लेह में हिमस्खलन के कारण फिसलने से झुंझुनूं का जवान शहीद

लेह क्षेत्र में हिमस्खलन के कारण झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ क्षेत्र के जाखल गांव के सपूत अजय कुमावत (32) शहीद हाे गए। उनकी पार्थिव देह शुक्रवार को गांव पहुंचेगी। अजय 41 तोपखाना में नायक पद पर तैनात थे। सियाचिन ग्लेशियर में उनकी टीम एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रही थी, तभी ये हादसा हुआ। अजय की चार साल की एक बेटी हंसवी है।

अजय करीब 13 वर्ष पहले चूरू में आयोजित ओपन रैली के जरिए सेना में भर्ती हुए थे। वे करीब ढाई साल राष्ट्रीय राइफल्स में रहे।



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चीनी हमले में घायल सुरेंद्र को 15 घंटे बाद होश आया तो उन्होंने अलवर में अपने परिजन से आपबीती बताई।


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