Monday, September 14, 2020

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भारत में हर साल लाखों लोग इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर कॉलेज से निकलते हैं, लेकिन ज्यादातर रोजगार योग्य नहीं होते और नौकरी हासिल नहीं कर पाते। नेशनल एम्पलॉयबिलीटी रिपोर्ट 2019 के मुताबिक 80 प्रतिशत छात्रों को नौकरी नहीं मिल पाती। बेरोजगारी के चलते इंजीनियर बनने के बाद भी छात्र चौकीदारी करने को तैयार दिखाई देते हैं। इससे इंजीनियरिंग के डिग्री के प्रति पिछले कुछ वर्षों में आकर्षण कम हुआ है।

  • ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन के मुताबिक 2018-19 में इंजीनियरिंग के यूजी कोर्स में 37.70 लाख एनरोलमेंट हुए। भारत में 2010 से 2015 के बीच आईटी इंडस्ट्री के बूम पर होने से देश में सैकड़ो इंजीनियरिंग कॉलेज खुले। लेकिन 2015 से हर साल हजारों इंजीनियरिंग सीटें खाली हैं। ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) के मुताबिक 2019 में 15 लाख सीटों में से 10 लाख सीटें खाली थी। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह अनस्किल्ड इंजीनियर्स हैं।

  • कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर प्रभात अग्रहरि का कहना है कि इंडस्ट्री में बहुत तेजी से ऑटोमेशन बढ़ रहा है, जिससे कम लोगों में बेहतर काम हो जाता है। इसके अलावा भारत में इंजीनियर्स की डिग्री लेने वालों की संख्या डिमांड से चार गुना ज्यादा है। कुछ कॉलेजों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई ही नहीं कराई जाती। सरकार भी मॉनिटरिंग और इंस्पेक्शन के नाम पर औपचारिकता पूरी करती है। इससे कॉलेजों में सुधार नहीं हो रहा है।

भारत सरकार का क्वालिटी इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वर्ल्ड बैंक के साथ मिलकर अप्रैल 2017 से टेक्निकल एजुकेशन का इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम शुरू किया था। यह प्रोजेक्ट कम इनकम वाले राज्यों पर फोकस के साथ शुरू हुआ था। बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, सिक्किम और त्रिपुरा के साथ ही दो केंद्रशासित प्रदेशों में यह लागू हुआ था। तीन साल तक वर्ल्ड बैंक से टीचरों का खर्च उठाया गया, उसके बाद यह जिम्मेदारी राज्यों को दी गई थी। राज्यों में पहले से मौजूद इंजीनियरिंग संस्थानों में टेक्निकल एजुकेशन की क्वालिटी सुधारने के लिए टीईक्यूआईपी प्रोग्राम के तीन चरण शुरू किए गए थे।

इस प्रोजेक्ट के तीसरे चरण में अप्रैल 2017 में 10 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 53 इंजीनियरिंग कॉलेजों में 1,554 असिस्टेंट प्रोफेसर अपॉइंट किए गए थे। इनमें भी ज्यादातर भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (NITs) से पढ़े हुए हैं। शुरुआत में तीन साल के लिए इन्हें अनुबंध पर रखा गया। इनका कार्यकाल सितंबर में खत्म हो रहा है। इसके रिन्युअल को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है। इन टीचर्स ने प्रदर्शन किया तो 6 महीने के लिए कार्यकाल बढ़ा दिया। राज्यों ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है।

इस प्रोग्राम के तहत पढ़ा रहे टीचरों में 38% एमटेक हैं, 37% ऐसे हैं जो पीएचडी कर रहे हैं, 22% टीचर पीएचडी हैं और 3% पोस्ट डाक्टरेट हैं।



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Engineers Day today |Poor Quality Engineering Colleges in the Country | More than 50% of the Colleges have no Permanent Teachers | Private Colleges are Low Quality


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