Thursday, September 10, 2020

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ऑफिस जाने से पहले टिफिन के लिए हर रोज सलाद तैयार करना बड़ा उबाऊ लगता था, ऐसा लगता था कि लंच टाइम में यदि कोई फ्रेश सलाद दे दे तो कितना अच्छा हो। फिर सोचा क्यों न ये काम मैं ही करूं। न इसमें कोई इन्वेस्टमेंट करना था और न ही कोई रिस्क। 3 हजार रुपए से काम शुरू किया था, लॉकडाउन के पहले तक महीने की इनकम 75 हजार से 1 लाख रुपए तक पहुंच गई थी। पुणे की मेघा ने अपने स्टार्टअप की पूरी कहानी बताई...

मेघा ने स्टार्टअप शुरू किया, लेकिन जॉब नहीं छोड़ी। वे एक रियल एस्टेट कंपनी में 15 सालों से नौकरी कर रही हैं।

मेरा नाम मेघा बाफना है। पुणे में रहती हूं। पिछले 15 सालों से रियल एस्टेट सेक्टर में काम कर रही हूं। सलाद तैयार करना, उसमें एक्सपेरिमेंट करना मुझे बीते कई सालों से पंसद है। 2017 में सोचा कि क्यों न अपने टेस्ट से दुनिया को रूबरू करवाया जाए। बस यही सोचकर मैंने चार लाइन का एक क्रिएटिव ऐड तैयार किया और उसे वॉट्सऐप पर अपने फ्रेंड्स के ग्रुप में शेयर कर दिया।

पहले दिन मुझे 5 पैकेट का ऑर्डर मिला था। तब पैकेजिंग, डिलीवरी, क्वांटिटी का कोई आइडिया नहीं था। लेकिन, मुझे अपने सलाद के टेस्ट पर बहुत यकीन था। मैं सुबह साढ़े चार बजे उठती थी और साढ़े छह बजे तक सलाद की पैकिंग से पहले की तैयार करती थी। फिर सब्जियां लेने मार्केट चली जाती थी, तब तक जो मसाला तैयार करके जाती थी वो ठंडा होता था। साढ़े सात बजे से सब्जियों को साफ करने और काटने का काम शुरू करती थी और साढ़े नौ बजे तक पैकिंग हो जाती थी।

मेघा प्लास्टिक कंटेनर में सलाद पैक करके देती हैं। पैकिंग का कोई आइडिया नहीं था, सब एक्सपेरिमेंट करते-करते सीखा।

शुरूआत 5 तरह के सलाद से की थी। इसमें चना चाट, मिक्स कॉर्न, बीट रूट, पास्ता सलाद शामिल थे। घर में जो मेड काम करने आती थीं, उन्हीं के बेटे को डिलीवरी के लिए रख लिया था। मैं पैकिंग करके मार्केट चली जाती थी, फिर दस बजे तक डिलीवरी बॉय आता था जो अगले 2 घंटे में सलाद कस्टमर तक पहुंचा देता था। एक हफ्ते तक 6 पैकेट ही जाते रहे, फिर मेरे दोस्तों से उनके दोस्तों को पता चला। सभी को टेस्ट पसंद आ रहा था, तो अगले हफ्ते 25 पैकेट जाने लगे। तीसरे हफ्ते में 50 हो गए। फिर अगले 5 महीने तक यही चलता रहा।

फिर मैंने फेसबुक पर पुणे की लेडीज के एक ग्रुप पर अपने सलाद की फोटोज और मैन्यू को शेयर किया। वहां से मुझे बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला। कई कंपनियों, स्कूलों और घरों से फोन आए। मुझे सीधे 60 से 70 नए क्लाइंट मिल गए और करीब 150 कस्टमर्स बन गए। शुरुआत में मुझे क्वांटिटी की कोई नॉलेज नहीं थी। कभी सलाद बहुत कम पड़ जाता था, तो कभी बहुत ज्यादा बन जाता था। फिर मैंने क्वांटिटी लिखनी शुरू की, मेजरमेंट बनाया। कुछ दिनों में आइडिया होने लगा कि कितने पैकेट के लिए कितना मसाला तैयार करना है।

अब मेघा ने 19 लोगोंं को रोजगार दे रखा है। महिलाएं चॉपिंग करती हैं, पुरुष डिलीवरी करते हैं। हालांकि, लॉकडाउन में सब बंद रहा।

पैकिंग की भी कोई नॉलेज नहीं थी। शुरुआत में पेपर कंटेनर में डिलीवरी देती थी। उसमें लीकेज की प्रॉब्लम आती थी। फिर मार्केट में जाकर खोजबीन की और प्लास्टिक कंटेनर में डिलीवरी देनी शुरू की। पहले मैंने सलाद के दो प्राइज रखे थे, एक 59 और दूसरा 69। नो प्रॉफिट, नो लॉस पर शुरूआत करने का सोचा था, लेकिन डेढ़ महीने बाद ही मुझे प्रॉफिट होने लगा। हर महीने 5 से 7 हजार रुपए बचने लगे। धीरे-धीरे कस्टमर बढ़े तो प्रॉफिट बढ़ने लगा। लॉकडाउन के पहले तक मेरे पास 200 कस्टमर्स हो गए थे और महीने की बचत 75 हजार से 1 लाख रुपए तक थी। चार साल में इस स्टार्टअप से मैंने करीब 22 लाख रुपए जोड़े।

मेघा कहती हैं कि मेरी रेसिपी तो आपको गूगल पर भी नहीं मिलेगी।

अब फ्रेंचाइजी देने का प्लान है। बहुत लोगों की इंक्वायरी आ रही है। हालांकि जब तक ये महामारी खत्म नहीं होगी, तब तक फ्रेंचाइजी नहीं दूंगी। मुझे मेरे परिवार से बहुत सपोर्ट मिला। पति और सास-ससुर ने हर चीज में सपोर्ट किया, तभी मैं ये सब कर पाई। अगस्त से काम फिर शुरू किया है। जॉब भी साथ में चल रही है। मैंने एक्सपेरिमेंट करना अब भी बंद नहीं किया। कुछ न कुछ नया करती रहती हूं। पानी पुरी वाले फ्लेवर में पानी पुरी का ही टेस्ट आए, इसके लिए बहुत मेहनत की। मेरी ये रेसिपी गूगल पर भी नहीं मिलेंगी, क्योंकि ये मैंने खुद इन्वेंट की हैं और मेरे टेस्ट के चलते ही कस्टमर्स का रिस्पॉन्स मिला।

अब मैं 300 ग्राम क्वांटिटी का पैक देती हूं। इसे खाने के बाद लंच करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। प्राइज 100 और 110 रुपए है। 500 रुपए में वीकली पैकेज भी देती हूं। मेरी सफलता का राज यही है कि, मैंने वो काम चुना जिसे करने में मुझे बहुत मजा आता है। सलाद के फ्लेवर इधर-उधर से कॉपी करने के बजाए खुद इन्वेंट करता गई, जिससे कस्टमर्स बढ़ते गए। लॉकडाउन के पहले तक 10 डिलीवरी बॉय और 9 महिलाओं को मैं काम दे रही थी। कोरोनावायरस खत्म होने के बाद काम फिर से रफ्तार पकड़ लेगा।



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मेघा बाफना अपने 9 महीने के बेटे के साथ। लॉकडाउन के बाद अगस्त से फिर काम शुरू कर चुकी हैं।


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