Tuesday, June 9, 2020

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सूरज का एक सपना था कि मैं इंजीनियर बनूंगा। क्लास 8 से वो सपने को साकार करने में लगा था। पिताजी प्राइवेट कंपनी में साधारण पोस्ट पर थे मगर बच्चे की एजुकेशन में कोई कसर न छोड़ी। बढ़िया आईआईटी कोचिंग करवाई। आईआईटी में तो सिलेक्शन हुआ नहीं मगर एक ठीक-ठाक सरकारी कॉलेज में सीट मिल गई।

फिर क्या था? आपको एडमिशन मिल गया तो समझो ‘लाइफ बन गई।’ यूं तो हम लेते हैं दाखिला कुछ पढ़ने के लिए पर हकीकत में उतना पढ़ते हैं कि पास हो जाएं। कॉलेज में कई नामी प्रोफेसर थे, इक्विपमेंट थे, मगर सूरज ने इनपर ध्यान नहीं दिया। उसे चाहिए थे अच्छे मार्क्स और नौकरी। मेकैनिकल इंजीनियर हो तो क्या हुआ, आप भी आईटी कंपनी के एंट्रेस एग्जाम में बैठ सकते हो। फैक्टरी से बेहतर एक चिल्ड एसी ऑफिस मिलेगा। सूरज ने भी यही रास्ता अपनाया। प्लेसमेंट भी हो गया। घर पर सब खुश।

और फिर उथल-पुथल हो गई। मार्च में कोरोना फैला तो स्टूडेंट्स घर भागे। एग्जाम ऑनलाइन दिए या कैंसल हो गए। उससे भी बड़ी विपत्ति कि जॉब ऑफर कैंसल होने लगे। किसी कंपनी ने कहा जून में नहीं सितंबर में जॉइन करो। सूरज की कंपनी ने तो ऑफर ही वापस ले लिया। अब बैठे हैं जनाब बीटेक की डिग्री के साथ। मन मैं डिप्रेशन और घर में भी।

हम सोचते हैं कि शायद सपने पूरे होने तक, दुनिया वहीं की वहीं रुकी रहेगी। कोरोना ने बदलावों में तेजी ला दी। आईटी के रुटीन जॉब्स इंसानों के द्वारा नहीं, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से किए जाएंगे। ये ट्रेंड जानते हुए, क्या कॉलेज एजुकेशन में कोई बदलाव आ रहा है? नहीं। हम उसी स्पीड से ग्रैजुएट्स पैदा कर रहे हैं। जिनके पास ठप्पा तो है मगर नॉलेज या पैशन नहीं।

तो एक तरह से वो रोबोट ही तो हैं। मगर रोबोट का फायदा यह है कि ना तो उसमें फीलिंग है न उसे थकान महसूस होती है। तो अगर फुल-टाइम, ऑफिस से काम करने वाले जॉब कम हो रहे हैं तो क्या करें? पहली बात यह कि स्टूडेंट्स कॅरिअर चुनने में अपना इंटरेस्ट देखें, ना कि स्कोप या डिमांड। अगर आप बाल काटने में माहिर हैं तो उस फील्ड में आईटी की नौकरी से दो-तीन गुना कमाना बड़ी बात न होगी। बस आपको उस फील्ड में सबसे बेहतर और यूनीक बनना होगा।

अगर आप कंफ्यूज्ड हैं कि मुझे कौन-सा फील्ड पसंद है तो कॅरिअर को अरेंज्ड मैरिज की तरह देखिए। कोई भी एक फील्ड अपनाकर उसे प्यार करने लगें। उसके बारे में पढ़ते रहें, उसमें एक्सपर्ट बनें। आज जमाना लाइफ-लॉन्ग लर्निंग का है। अगले दस साल में यूनिवर्सिटी की डिग्री का होना इतना जरूरी नहीं होगा, जितना आज है। अगर आपमें ज्ञान की भूख है तो ऑनलाइन कोर्सेस से सब सीख सकते हैं। जैसे एकलव्य ने दूर से ही गुरु से ज्ञान पाया, वो एक उभरता हुआ मॉडल है। अपने दम पर, अपनी सोच से जॉब लें, न कि केवल डिग्री के बलबूते पर।
कल जिस रास्ते पर हम चल रहे थे, वो हमारे पैरों तले खिसक चुका है। सूरज जैसे लाखों फ्रेश ग्रैजुएट्स को एक ही सलाह है: इस समय का सही इस्तेमाल कीजिए। ऑनलाइन कोर्सेस, सेमीनार्स और किताबों से नॉलेज और स्किल्स बढ़ाइए। पुराना सपना छोड़कर एक नया सपना देखिए। और चाहे आपका जॉब हो या न हो, अपने आत्मसम्मान को प्रभावित न होने दें।

सारा खेल माइंड का है। अगर मन स्थिर है और आप पॉजिटिव इंसान हैं, कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा। मैं दो किताबें रिकमंड करना चाहती हूं: यू कैन हील योर लाइफ (लुईज हे) और पॉवर ऑफ योर सबकॉन्शियस माइंड (जोसेफ मर्फी)। इन दो महीनों में हमें बाहर की दुनिया से कटकर, अपने अंदर की दुनिया के निरीक्षण का मौका मिला। शायद पहली बार, एक हल्के स्वर में अपनी इनर वॉइस हमें सुनाई दी। वापस दुनिया में लौटकर, उस आवाज को न दबाएं। क्योंकि आत्मा की आवाज वो अकेली चीज है जो इंसान की पहचान है। वो कभी किसी रोबोट की नहीं हो सकती।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)



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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर


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