
लाइफस्टाइल डेस्क. अमूमन जहरीले पेड़ों से दूर रहने की सलाह दी जाती है, लेकिन जापान के अमामी ओशिमा द्वीप मेंजहरीले पेड़ जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। जरा सी चूक हो जाए तो इन पेड़ों सेलिवर डैमेज हो सकताहै,जान भी जा सकतीहै। इस पेड़ का नाम है सोतेत्सु। स्थानीय लोग इससे अपना पेट भरते हैं और आइलैंडपहुंचने वाले पर्यटकों के सामने भी डिश के तौर पर पेश भी करते हैं।

जापान के ज्यादातर हिस्सों में सोतेत्सु के पेड़ पाए जाते हैं। लेकिन अमामी ओशिमा द्वीप पर सैकड़ों सालों से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। सोतेत्सु नारियल के पेड़ की तरह दिखता है और 6.5 करोड़ साल यानी जुरासिक काल से जापान में मौजूद है। स्थानीय लोग कहते हैं कि सोतेत्सु में न्यूरोटॉक्सिन पाया जाता है डायनासौर इसे पचा लेते थे, लेकिन इंसानों के लिए यह घातक साबित होता है

द्वीप पर यही भूख मिटाने का जरिया
द्वीप पर रहने वाले 67 हजार लोगों के लिए सालों से यही भूख मिटाने का जरिया रहा है। इसे खाने लायक बनाने के लिए पेड़ के तने के छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैं। 4 हफ्ते तक इसके अंदर का जहर निकालने के बाद इसका स्टार्च तैयार होता है,जिसे स्थानीय भाषा में नारी कहते हैं। इससे नूडल और चावल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। आसपास के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां गरीबी और अनाज आसानी से उपलब्ध नहीं है। वहां ये पेड़ पेट भरने का जरिया हैं।

स्टार्च निकालने की प्रक्रिया आसान नहीं
स्टार्च से जहर निकालने की इस प्रक्रिया को अंजाम देने वाले ज्यादातर लोग बुजुर्गहैं। युवा काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर रुख कर चुके हैं। 79 साल की ईको कवुची कहती हैं, ‘‘अब उम्र हो चली है। पेड़ों को काटने के लिए कुल्हाड़ी नहीं उठती। इस लायक नहीं हूं कि लोगों को इससे स्टार्च निकालना सिखा सकूं। पेड़ से स्टार्च निकालने की प्रक्रिया मैंने अपने दादा-दीदी से सीखी थी। यह कठिन काम है।’’ आइलैंड पर 25 साल का केंसी फुकुनागा एकमात्र युवा है। वे कहते हैं किमैंने पेड़ से स्टार्च तैयार करने की कई बार कोशिश कर चुका हूं, लेकिनयह आसान नहीं है।

ब्राउन शुगर के बदले में मिलते हैंचावल
आइलैंड पर एक म्यूजियम से जुड़े नोबुहिरो कहते हैं, आइलैंड होने के कारण हर तरह की फसल को उगाना मुश्किल था। यहां के कुछ हिस्सों में खेती करके ब्राउन शुगर तैयार की जाती है। सत्सुमा कबीले केवल ब्राउन शुगर के बदले अमामी ओशिमा द्वीप के लोगों को चावल देते हैं। अगर फसल खराब हो गई तो भूखे मरने की नौबत आ जाती है इसलिए बुरी स्थितियों में लोगों को सोतेत्सु खाना पड़ा,जो धीरे-धीरे आदत में बदल गया।
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