
नई दिल्ली.आईआईटी दिल्ली ने ऐसा साॅफ्टवेयर बनाया है, जिससे इस मानसून से न केवल एक हफ्ते पहले बाढ़ की सटीक जानकारी मिल सकेगी, बल्कि गंगा में हो रहे प्रदूषण का भी पता चल सकेगा।आने वाले मानसून सेआईआईटी दिल्ली मौसम विभाग को बाढ़ के छोटे-छोटे क्षेत्राें के नाम और प्रभावितों की संख्या बताएगा। यह सॉफ्टवेयर आईआईटी दिल्ली और आईएनआरएम (इंटरग्रेटेड नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट) कंसल्टेंट्स ने मिलकर तैयार किया है।
आईएनआरएम कंसल्टेंस स्टार्टअप को आईआईटी दिल्ली ने प्रमोट किया है। यह स्टार्टअप आईआईटी दिल्ली में 20 साल पहले बनाया गया था। इस टीम में 10 वैज्ञानिक हैं। इन्हाेंने बारिश, नमी, तापमान, नदी जैसे एक दर्जन आंकड़ों का जटिल विश्लेषण कर यह सॉफ्टवेयर तैयार किया है। इसकी मदद से हर रोज पूरे देश की नदियों के फ्लो और बारिश की गणना एक साथ की जाती है। सॉफ्टवेयर से नदी संबंधी लाइव जानकारी मिलती है। आम लोग भी ऑनलाइन सॉफ्टवेयर की मदद से नदियों के फ्लो की जानकारी लाइव देख सकते हैं।
‘किसानों को बारिश का पहले ही पता चल जाएगा’
सॉफ्टवेयर बनाने वाली टीम का नेतृत्व करने वाले प्रो. अश्विनी कुमार गोसाई ने बताया,‘‘सॉफ्टवेयर से किसानों को 5-7 दिन पहले बताया जा सकेगा किकितनी बारिश होने वाली है और मिट्टी में कितनी नमी हो सकती है। अभी बारिश की जानकारी तो मिलती है, लेकिन यह पता नहीं चलता कि इससे खेतों में कितनी नमी हो जाएगी।’’ दावा है कि यह टेक्नाेलॉजी दुनिया में पहली बार इस्तेमाल हो रही है। इसमें डिजिटल एलिवेशन मॉडल (डीईएम) का इस्तेमाल किया गया। डीईएम के आंकड़े वैश्विक स्तर पर तैयार किया हुआ डाटा है। डीईएम से मौसम की स्थिित, किसी विशेष क्षेत्र में नदी, बाढ़, मिट्टी, तापमान संबंधी सारी जानकारी मिल जाती है।
यह भी बताएगा कि गंगा में कब कितना कचरा डाला
प्रो. गोसाई के मुताबिक, सॉफ्टवेयर के अगले स्तर पर काम चल रहा है। कुछ माह में इसकी मदद से गंगा नदी में प्रदूषण की सटीक जानकारी मिल जाएगी। इससे यह भी पता लग सकेगा कि गंगा में कब-कब कितना कचरा, इंडस्ट्रियल वेस्ट डाला जाता है। इतना ही नहीं, गंगा सफाई के लिए किए जा रहे प्रयासों की लाइव गणना भी हो सकेगी, जिससे पता लग सकेगा कि जो पहल हो रही है, वह कितनी स्थायी या अस्थायीहै।
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