
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) मामले में टेलीकॉम कंपनियों से कहा है कि बकाया राशि का फिर से आकलन (रीएसेसमेंट) करना कोर्ट की अवमानना है। अदालत ने कहा कि जब टेलीकॉम डिपार्टमेंट की डिमांड मानी जा चुकी है तो फिर से आकलन कैसे किया जा सकता है। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि रीएसेसमेंट और इस मामले को फिर से खोलने की इजाजत किसने दी? जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने कहा कि अदालत ने तो रीएसेसमेंट की इजाजत नहीं दी तो क्या हम मूर्ख हैं? इस मामले में जो कुछ भी हो रहा है वह चौंकाने वाला है। पूरे देश को गुमराह किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि कंपनियों ने कमाई की है, उन्हें भुगतान भी करना होगा।
एजीआर मामले में टेलीकॉम डिपार्टमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। विभाग ने एजीआर के बकाया भुगतान के लिए टेलीकॉम कंपनियों को 20 साल का समय देने के लिए कोर्ट की इजाजत चाही थी।
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