
नई दिल्ली.मध्य प्रदेश में जारी सियासी घमासान के बीच बुधवार को फ्लोर टेस्ट कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होगी। राज्यपाल की ओर से दो बार आदेश दिए जाने के बाद भी कमलनाथ सरकार ने बहुमत परीक्षण नहीं कराया। इसके खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और 9 भाजपा विधायकों ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है। इस पर अदालत ने सभी पक्षकारों राज्यपाल लालजी टंडन, मुख्यमंत्री कमलनाथ और विधानसभा स्पीकर एनपी प्रजापति को नोटिस देकर 24 घंटे में जवाब मांगा था। इसबीच, कांग्रेस ने भी एक अर्जी लगाई और बेंगलुरु में ठहरे 22 बागी विधायकों को वापस लाने का निर्देश देने की मांग की।
मंगलवार की सुनवाई में मध्य प्रदेश सरकार और कांग्रेस के पक्षकार मौजूद नहीं थे। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम दूसरे पक्ष को भी सुनेंगे। इसके बाद अदालत ने सभी पक्षकारों को ईमेल और वॉट्सऐप के जरिए नोटिस भेजे थे। इसके साथ ही ईमेल पर बागी विधायकों की अर्जी और याचिका की कॉपी भी पक्षकारों को भेजी गई। भाजपा की तरफ से पैरवी करने पहुंचे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि कांग्रेस के 22 विधायक पार्टी छोड़कर चले गए, उनके पास बहुमत नहीं है, इसलिए उनकी तरफ से कोई सुनवाई में नहीं आया।
ऐसे केस में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में क्या फैसला दिया?
भाजपा ने याचिका में 1994 के एसआर बोम्मई vs भारत सरकार, 2016 के अरुणाचल प्रदेश, 2019 के शिवसेना vs भारत सरकार जैसे मामलों का जिक्र किया है। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। अरुणाचल प्रदेश के मामले में कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल को लगता है कि मुख्यमंत्री बहुमत खो चुके हैं तो वे फ्लोर टेस्ट का निर्देश देने के लिए स्वतंत्र हैं। 2017 में गोवा से जुड़े एक मामले में फ्लोर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक और टिप्पणी की- ‘फ्लोर टेस्ट से सारी शंकाएं दूर हो जाएंगी और इसका जो नतीजा आएगा, उससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी विश्वसनीयता मिल जाएगी।’
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