
इंदौर. जम्मू-कश्मीर में 30 साल पहले आज ही के दिन 19 जनवरी 1990 को हुए अत्याचार की दुखद घटना अब भी कश्मीरी पंडितों के जेहन में है। इंदौर में रह रहे 90 कश्मीरी पंडितों के परिवारों का कहना है कश्मीर के लोग धारा 370 हटने के बाद इंटरनेट बंद होने से पांच माह में ही परेशान हो रहे हैं, लेकिन हमने तो पांच साल तक जुल्म सहे हैं। अपने ही देश में हमें परायों की तरह रहना पड़ा था। कश्मीरी समाज के अध्यक्ष अनिल कौल कहते हैं उस समय मैं 12वीं में पढ़ता था। मेरे सामने क्रिकेट मैच के दौरान जावेद मियादाद के सिक्सर पर वे लोग ताली बजाते थे।
1990 से 1995 के दौरान महिलाओं पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए। राजीव शालिया कहते हैं दहशत के बीच सभी लोग मुश्किल से जान बचाकर भागे। ठंडे स्थान पर रहने के कारण कई कश्मीरी हिंदू दिल्ली की मई-जून की गर्मी सह नहीं सके और मारे गए। इंदौर में ही रह रहे कई परिवारों के मुखिया उस समय कैंप में सांप-बिच्छू के काटने के कारण जान गंवा बैठे।
बच्चे कहते हैं वहीं घूमने चलेंगे, जहां रहते थे
सभी के मन में एक ही बात होती थी कि वह दिन कब जाएगा, जब धारा 370 हटेगी। धारा 370 हटने के बाद ऐसा लगा कि न्याय मिल गया। बच्चे कहते हैं छुटि्टयों में वहीं घूमने चलेंगे, ताकि बुरी यादें हमेशा के लिए खत्म हो जाए।
हम घर छोड़कर आए, हमें पत्थरबाजी आज भी याद है
डीएन कौल कहते हैं लोगों के साथ हुई ज्यादती आज भी याद है। घर से कमाने निकलते थे तो ऐसा लगता था कि कोई घटना न हो जाए। सैकड़ों परिवार ऐसे थे, जिन्होंने अपनों को खोया था। महिलाओं का कहना है घरों की कांच की खिड़की तोड़कर पत्र फेंके गए थे। उसमें लिखा था कि 24 घंटे में घर खाली कर दो, अन्यथा जिंदगी खत्म समझो। पुलवामा में रहने वाले एक परिवार की महिलाओं का कहना है तब पत्र मिलने वाली रात ही 15 से ज्यादा कश्मीरी पंडित परिवार ट्रक में बैठकर जम्मू आ गए।
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