Monday, January 13, 2020

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जीवन मंत्र डेस्क.इस साल मकर संक्रांति पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। सूर्य 14 जनवरी की रात करीब 2 बजे धनु से मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए 15 जनवरी को सूर्योदय के साथ स्नान, दान और पूजा-पाठ के साथ ये त्योहार मनेगा। लेकिन पिछले कुछ सालों से ये मकर संक्रांति कभी 14 तो कभी 15 जनवरी को मनाई जा रही है। सूर्य की चाल के अनुसार मकर संक्रांति की तारीखों में बदलाव होता है। आने वाले कुछ सालों बाद ये पर्व 14 नहीं बल्कि 15 और 16 जनवरी को मनाया जाएगा।

1902 से 14 जनवरी को मनाया जा रहा ये त्योहार

काशी हिंदू विश्व विद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्रा के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति पहली बार 1902 में मनाई गई थी। इससे पहले 18 वीं सदी में 12 और 13 जनवरी को मनाई जाती थी। वहीं 1964 में मकर संक्रांति पहली बार 15 जनवरी को मनाई गई थी। इसके बाद हर तीसरे साल अधिकमास होने से दूसरे और तीसरे साल 14 जनवरी को, चौथे साल 15 जनवरी को आने लगी। इस तरह 2077 में आखिरी बार 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसम्बर को पड़ा था। मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवन काल में यह त्योहार 11 जनवरी को मनाया जाता था।

ऐसा क्यों- ज्योतिषीय आकलन

  • पं मिश्रा के अनुसार सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है। दरअसल हर साल सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल में एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसके अनुसार सन् 2077 के बाद से 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति हुआ करेगी।
  • ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति हर साल 20 सेकेंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति 1 जनवरी को मनाई जाती थी। पिछले एक हज़ार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। ज्योतिषीयों के अनुसार सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फरवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी।

1 सेकेंड से भी कम समय में राशि बदलता है सूर्य

सूर्य जब एक राशि छोड़कर दूसरी में प्रवेश करता है तो उसे सामान्य आंखों से देखना संभव नहीं है। देवीपुराण में संक्रान्ति काल के बारे में बताया गया है कि स्वस्थ एवं सुखी मनुष्य जब एक बार पलक गिराता है तो उसका तीसवां भाग तत्पर कहलाता है, तत्पर का सौवां भाग त्रुटि कहा जाता है तथा त्रुटि के सौवें भाग में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है।

संक्रांति का अर्थ

जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्तिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बांटकर बारह राशियां बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रान्ति कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रान्ति कहते हैं। 12 राशियां होने से सालभर में 12 संक्रांतियां मनाई जाती हैं।

मकर संक्रांति - एक ऋतुपर्व

सूर्य के राशि परिवर्तन से दो-दो माह में ऋतु बदलती है। मकर संक्रांति एक ऋतु पर्व है। यह दो ऋतुओं का संधिकाल है। यानी इस समय एक ऋतु खत्म होती है और दूसरी शुरू होती है। मकर संक्रांति सूर्य के दिनों यानी गर्मी के आगमन का प्रतीक पर्व है। ये त्योहार शीत ऋतु के खत्म होने और वसंत ऋतु के शुरुआत की सूचना देता है। इस दिन शीत ऋतु होने के कारण खिचड़ी और तिल-गुड़ का सेवन किया जाता है। यह अन्न शीत ऋतु में हितकर होता है।

सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व

  • सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन होता है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इससे उल्टा होता है। धर्मग्रंथों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था।
  • आधे वर्ष यानी साल के 6 महीनों तक सूर्य आकाश के उत्तरी गोलार्ध में रहता है। उत्तरायण के छह महीनों में सूर्य, मकर से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है। इसे सौम्य अयन भी कहते हैं। जब सूर्य मकर राशि में यानी 14-15 जनवरी से लेकर मिथुन राशि तक यानी 15-16 जुलाई तक रहता है। ये 6 महीनों का समय उत्तरायण कहलाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह माघ मास से आषाढ़ मास तक माना जाता है।

पड़ोसी देशों और भारत के राज्यों में मकर संक्रांति

भारत के सभी राज्यों में मकर संक्रांति पर्व अलग-अलग नाम और रीति-रिवाजों के साथ उत्साह से मनाया जाता है। इस त्योहार को मकर संक्रांति के नाम से छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, और जम्मू में मनाया जाता है। यह पर्व भारत के साथ ही नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, कंबोडिया, म्यांमार और थाइलेंड में भी अलग-अलग परंपराओं और नाम के साथ मनाया जाता है।



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